“श्रीकांत वर्मा सृजन संवाद” में वरिष्ठ साहित्यकार संजीव बख्शी ने किया कविता पाठ…सब कुछ में कभी माँ होती थी माँ को पता होता बेटे की पसंद सब कुछ में मेथी भाजी की खुशबू थी

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कोई नहीं में विज्ञान
वहाँ कोई नहीं था उसने कहा था ‘‘हैलो अंकल’’
उसने कहा था पूरी ईमानदारी से
पर वहाँ कोई नहीं था कोई नहीं में
ऐसा नहीं कि
कोई है ही नहीं कोई नहीं था में
विज्ञान था।
विज्ञान यानी टेक्‍नोलाजी
उधर सैकड़ों मील दूर
अंकल ने कहा था ‘‘खुश रहो बेटा’’
वहाँ के कोई नहीं में
एक भीड़ थी पर
भीड़ का अर्थ
कोई नहीं था इस कोई नहीं में
विज्ञान था टेक्‍नोलाजी
कोई नहीं में सब कुछ था सब कुछ में कोई नहीं
सब कुछ में कभी माँ होती थी माँ को पता होता बेटे की पसंद
सब कुछ में मेथी भाजी की खुशबू थी
मुँह में उसका स्‍वाद था सब कुछ में पिता होते
भाई ,बहन होते
पड़ोसी होते
गाँव होता पूरा का पूरा
पर अब सब कुछ में कोई नहीं है
कोई नहीं में यहाँ तक कि
अँधेरा भी नहीं है
टेक्‍नोलाजी है सिर्फ
चाहे इसे कोई नहीं कहें
या सब कुछ
सब की पसंद में है आज
टेक्‍नोलाजी

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