गोपी साहू:नृत्य प्रकृति के अभिवादन का प्रतीक है किसी ने ठीक ही कहा है संगीत और नृत्य सब कुछ हमारे आसपास मौजूद है।पैदल चलना भी नृत्य की एक कला है।आज हम बात करेंगे आदिवासीयों द्वारा की जाने वाली नृत्य के बारे में।आदिवासी नृत्य में दिलचस्प बात यह कि यहां के समस्त लोक नृत्य व संगीत सामूहिक होते हैं। जितने प्रकार के नृत्य हैं उतने ही प्रकार के लय ताल और राग भी।आदिवासी नृत्यों में गीतों की प्रधानता होती है। आदिवासी समाज के सभी नृत्य पारंपरिक होते हैं क्योंकि यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।नृत्य के दौरान प्राकृतिक चीजों जैसे फूल, पंख, पत्ते आदि का उपयोग किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में रहने वाली महिला सोनाय सोड़ी ने छोटे छोटे बच्चों को इस पारम्परिक विधा में पारंगत कर रही है।विश्व आदिवासी दिवस के दिन कोंडागांव जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर चलका परगना में प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम में महिला श्रीमती सोनाय सोड़ी स्कूली बच्चों को पारंपरिक चिटकुली और तुड़मुड़ी पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया है।सभी लोग नृत्य को देखकर भाव विभोर हो गए।खोजी लेखक और वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ देवांगन द्वारा बच्चों का उत्साहवर्धन किया गया।