बच्चों को लाड दुलार करने का तरीका पूरी दुनिया में एक ही है…चाहे पेरेंट्स किसी भी देश या कल्चर के हों…दुनिया में 6,500 भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन इन सबसे खास और अलग है मां बच्चे की भाषा… ‘मअम’, ‘हप्पा’, ‘चीज्जी’, ‘गप्प’, ‘ताअअअआ’, ‘निन्नी’ इन शब्दों ‘कोई अर्थ नहीं है…बस इसमें है मां और बच्चे के बीच की भावनाएं और एक दूसरे के साथ संवाद

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बच्चों को लाड दुलार करने का तरीका पूरी दुनिया में एक ही है। चाहे पेरेंट्स किसी भी देश या कल्चर के.. हों, लेकिन उनका दो महीने के बच्चे से बात करने का तरीका एक ही होता है। इसमें भाषा आड़े नहीं आती है। जैसे ‘अआ… आआ… बा-बा… गू-गू शब्दों की साउंड को बेबी कैच करता है और आवाज को पहचानने की कोशिश करता है। इसीलिए बेबी इन्हें सुनकर खुश होता है और मुस्कराता है। उसे लगता है कि कोई उससे बात कर रहा है।

हाल ही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जब पेरेंट्स बच्चे के साथ गा गाकर बात करते हैं तो वो इस आवाज को पहचानने की कोशिश करते हैं। रिसर्च में बताया गया कि दुनिया के किसी भी कोने, किसी भी देश के बच्चे से उसकी मां गा गाकर बात करती है जिसे ‘बेबी टॉक’ कहते हैं और इसे टेक्निकली ‘पैरेंटीज़’ कहा जाता है।

इस विषय पर 40 से अधिक वैज्ञानिकों ने 18 अलग-अलग भाषा के 410 पेरेंट्स की 1,615 आवाजों को रिकॉर्ड किया। इस रिकॉर्डिंग से यह जाना कि 2 महीने का बच्चा किन आवाजों और शब्दों को समझता है। वैज्ञानिकों ने यह रिसर्च छह महादीपो में की। रिसर्च में शामिल पेरेंट्स अलग देशों, समुदायों और शहरी व ग्रामीण परिवेश के थे। रिसर्च के लिए कॉस्मोपॉलिटन, इंटरनेट सेवी और तंजानिया की हद्ज़ा जनजाति से लेकर बीजिंग में रहने वाले माता पिता को शामिल किया गया। इसके लिए एंथ्रोपॉलजिस्ट कैटलिन प्लेसेक ने भारत की जनजाति जेनु कुरुबा के कुछ लोगों की आवाज भी रिकॉर्ड की थी। रिसर्च से यह भी पता चला है कि अलग-अलग संस्कृतियों वाले माता-पिता 2 महीने के बच्चे से बात करने के लिए एक ही तरह से संवाद करते हैं।

यह रिसर्च हाल ही में नेचर ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट की गई कि हर संस्कृति में पेरेंट्स दूधमुंहे बच्चे से गा गाकर बात करते हैं। बच्चे से बात करने का तरीका बड़ों से बात करने के तरीके से अलग होता है।

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और लेखक कोर्टनी हिल्टन ने कहा कि बच्चों से बात करते हैं वो व्यस्कों की बातचीत से 11 तरीके से फर्क है। हम बच्चों से ऊंची आवाज में बात करते हैं, उनसे गा गाकर बोलते हैं,उन्हें लोरी सुनाते हैं।रिसर्च से जुड़े कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ग्रेग ब्रायंट का कहना है कि बेजुबान जानवर भी अपनी फीलिंग साउंड से दर्शाते हैं। सेक्शुअल इमोशन, डर, खुशी और उदासी में उन के मुंह से भी आवाज निकलती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बेबी के विकास में साउंड बहुत महत्वपूर्ण है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि आप किसी कबीले में रहते हों या मेट्रो सिटी में रहने वाले पेरेंट्स है, सभी बच्चों से ऊऊऊ… ईईईई… क्यूयूटी…क्यूयूटी… गोलू गोलू जैसे शब्दों से बात करते हैं। ये मम्मी डैडी की फीलिंग हैं, जिन्हें सुनकर बेबी खुश होता है। आइए, हम मम्मियों से जानते हैं कि वो कौन-कौन से शब्द और साउंड हैं, जिन पर बेबी जल्दी रिएक्ट करते हैं।

अम्मा को ‘माअ मा’ बोलते हैं। घूमने जाना हो तो ‘घूमी घूमी’, गर्म चीज जैसे दूध या चाय को ‘गअम’ से पहचानना और फिर इन्हें बोलने की कोशिश करना। दरअसल ये उनकी अपनी लैंग्वेज होती है जिसे पेरेंट्स के साथ शेयर करते हैं। यह प्यार की लैंग्वेज है जिसमें संवाद होता है। आप बच्चे से पूछेंगे कि आज उसने कौन से कलर की टी शर्ट पहनी है तो गुलाबी नहीं गुssलअअ बोलेगा।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधांशु तिवारी बताते हैं कि बच्चे साउंड सुनते हैं। साउंड डेवलपमेंटल माइलस्टोन होती है जिसे हम चार भागों में बांटते हैं। वो इस तरह हैं- ग्रॉस मोटर, फाइन मोटर, लैंग्वेज मोटर और सोशल एंड एडॉप्टर। यह चारों चरण बेबी की स्किल्स को बढ़ाते हैं, सभी पेरेंट्स को इसकी जानकारी होनी चाहिए।

डॉक्टर सुधांशु बताते हैं कि जब बच्चा 3 दिन का होता है तो अपनी मां की आवाज पहचानने लगता है। मां की आवाज सुनकर रोना बंद कर देता है। नौ दिन का बच्चा आंखों से आवाज का पता लगाने की कोशिश करता है। जन्म से 3 महीने के दौरान बच्चा ध्वानि को पहचानने लगता है। इसलिए इस समय बेबी के साथ बात करते समय उन शब्दों को बोलना चाहिए जिनको थोड़ा ऊंचा कहा जाता है जैसेः-ओओओ, हेलो बेएबी।

ग्रॉस मोटर स्किल में बॉडी की नेक हैंडलिंग होती है, इसमें गर्दन संभालना स्पोर्ट के साथ बैठना, गुलाटी मारना, पलटना या विदआउट सपोर्ट बैठना, खड़ा होना या चलना ये सभी ग्रॉस मोटर में आता है।फाइन मोटर स्किल इसमें सारी फाइन एक्टिविटी होती है। जैसे कि बच्चे को आप कोई चीज पकड़ाएंगे तो वो हथेली से पकड़ेगा। उंगली से नहीं पकड़ेगा लेकिन नौ महीने का होने पर उंगली से पकड़ेगा। ये सारी बातें डेवलपमेंट माइंड से जुड़ी हुई हैं। इसी में सोशल एडाप्टर होता है।

दो महीने में पहली सोशल स्माइल
एक-दो महीने के आसपास बच्चा मां को पहचानना शुरू करता है। इसमें सबसे पहले उसकी सोशल स्माइल आती है। मां अपने बच्चे को देखकर मुस्कराएगी तो वह भी मुस्कराएगा। इसके बाद 3 महीने में ‘कुइंग’ आती है आवाज। बच्चा ‘आअआआआ’ करता है। अब बच्चा फैशियल एक्सप्रेशन देखता है। लाड दुलार की आवाज उसके कानों में जाती है तो ब्रेन में डेवलपमेंट के अनुसार जो भी आर्गन हैं उसे समझने की कोशिश करती है। ये वो भाषा होती है जो बच्चा भी समझता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधांशु तिवारी कहते हैं कि बच्चे के सामने आप चाबी उछालते हैं या आप उसके सामने रेड कलर की बॉल रखेंगे तो उसको कैच करने की कोशिश करेगा।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधांशु तिवारी कहते हैं कि बच्चे का पहला वर्ष बदलावों की झड़ी वाला होता है। उसकी पहली मुस्कान, गुदगुदी और ‘माअअमा’ या ‘दादा’ कहना सीखने तक। बच्चे आपके साथ बात करना पसंद करते हैं और वे चाहते हैं कि आप उनके साथ बात करें।

बच्चे के साथ मुस्कुराएं, बात करें और गाना गाएं
डॉक्टर सुधांशु तिवारी कहते हैं कि पहले वर्ष के दौरान आप अपने बच्चे की कम्युनिकेशन स्किल बढ़ाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं और यह आसान है। आपको बस अपने बच्चे के साथ मुस्कुराना, बात करना, गाने गाना और स्टोरी सुनान है।अपने बच्चे पर अक्सर मुस्कुराएं, खासकर जब वह ‘कोइंग’ कर रहा हो, गुर्रा रहा हो, या मुखर हो रहा हो। धैर्य से अपने शिशु के अशाब्दिक संचार को डिकोड करने का प्रयास करें। जैसे चेहरे के भाव, गुर्राहट, या बड़बड़ाने वाली आवाजें जो कि निराशा या खुशी का संकेत दे सकती हैं।

अपने बच्चे की नकल करें
शुरू से ही, बेबी टॉक टू-वे होना चाहिए। अपने बच्चे की नकल करके, आप यह जान सकेंगे कि वे क्या महसूस कर रहे हैं और आपसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं।

बच्चे के स्वरों का अनुकरण करें
‘बा-बा’ या ‘गू-गू’ और फिर उनके द्वारा एक और आवाज करने का इंतजार करें और उसे वापस दोहराएं। जवाब देने की पूरी कोशिश करें, तब भी जब आपको समझ में न आए कि आपका शिशु क्या कहना चाह रहा है। साथ ही आपके बच्चे के हावभाव की नकल भी करिए, क्योंकि हावभाव ऐसा तरीका है जिससे बच्चे बोलने की कोशिश करते हैं।

बच्चे से अक्सर बात करें
बच्चे को जब आप दूध पिला रही हों, कपड़े पहना रही हों, कहीं ले जा रही हों और नहला रही हों, तो बात करें, ताकि वे भाषा की इन ध्वनियों को रोजमर्रा की वस्तुओं और एक्टिविटी से जोड़ना शुरू कर दें। ‘मां’ और ‘बोतल’ जैसे सरल शब्दों को बार-बार और स्पष्ट रूप से दोहराएं ताकि आपका बच्चा परिचित शब्दों को सुनना शुरू कर दे और उन्हें उनके अर्थ से जोड़ सके।

माता-पिता अक्सर आश्चर्य करते हैं कि सीखने की अवस्था में उनके बच्चे की बोलने की क्षमता कहां है। प्रत्येक बच्चे के लिए समय-सीमा बहुत अलग होती है। कुछ बच्चे 12 महीनों में कुछ शब्द कह सकते हैं, लेकिन अन्य 18 महीने की उम्र तक बात नहीं करते हैं और फिर छोटे वाक्य बोलते हैं।

1 से 3 महीने में:
शिशु पहले से ही आपकी आवाज सुनना पसंद करते हैं और जब आप उनसे बात करते हैं या गाते हैं तो वे मुस्कुरा सकते हैं, हंस सकते हैं, शांत हो सकते हैं और अपनी बाहों को हिला सकते हैं। आपके शिशु की बातचीत आमतौर पर ‘कोइंग’ और गुर्राहट के साथ शुरू होती है, कुछ स्वर ध्वनियों के साथ, जैसे ‘ऊह’ लगभग दो महीने में सुनाई देती है।

4 से 7 महीने में:
शिशुओं को अब एहसास होता है कि उनकी बातों का उनके माता-पिता पर असर पड़ता है। वे अधिक बड़बड़ाते हैं और अपने माता-पिता की प्रतिक्रिया को देखते हैं। अब वे बड़बड़ाते हैं, वे अपनी आवाजों की पिच को उठाना और कम करना शुरू कर देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वयस्क प्रश्न पूछते समय या जोर देते समय करते हैं।

8 से 12 महीने में:
माता-पिता के लिए अपने बच्चे को पहली बार ‘मां’ या ‘दादा’ कहते हुए सुनना एक अनोखी खुशी होती है। इस उम्र में बेबी टॉक में मुख्य रूप से ‘गा-गा’, ‘दा-दा’, और ‘बा-बा’ जैसी ध्वनियां होती हैं। इस उम्र में, बच्चे आपके साथ आमने-सामने बातचीत करना पसंद करते हैं। उन्हें ‘इट्सी बिट्सी स्पाइडर’ और ‘पैटी-केक’ जैसे भाषा वाले गेम और गाने भी पसंद हैं।

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