कर्म परमात्मा को अर्पित करते चलें उस पर आसक्त ना हो यही है अनासक्ति कर्म योग…संत श्री राम बालक दास जी

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पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग उनके भक्त गणों के लिए प्रातः 10:00 से 11:00 बजे प्रतिदिन उनकी विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में संचालित किया जाता है जिसमें भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं

आज गिरधर सोनवानी बांधाबाजार ने जिज्ञासा रखी की
आज के एकादशी व्रत महिमा पर प्रकाश डालने कि कृपा हो
बाबा जी ने बताया कि वैसे तो हमारे हिंदू धर्म में सभी एकादशी का बहुत महत्व है लेकिन आज की एकादशी भगवान विष्णु की योग मुद्रा रूप की उपासना की है आज के दिन भगवान विष्णु के योग मुद्रा रूप का स्मरण करते हुए उनसे अपने स्वास्थ्य की कामना करते हैं, और आज के दिन सभी स्वास्थ्यवर्धक चीजें जैसे तिल, लड्डू,गुड़ फल आदि का दान किया जाता है और गुड़ से बनी चीजों को खाया जाता है क्योंकि यह समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है तो सभी स्वास्थ्यवर्धक चीजे खाई जाती है

तिलक दुबे जी ने आज के सत्संग में अमृत वचन मैं कहा की “भूख लगे तो खाना प्रकृती है, भूखे को खिलाना संस्कृति है, और भूख ना लगे तो खाना विकृति है ।”

इसके मूल को समझाते हुए बाबा जी ने इस पर भर्तीहरी जी की कथा सुनाइ, कि जब भर्तीहरि जी बाबा गोरखनाथ जी के पास सन्यास लेने जाते हैं तो तो बाबा गोरखनाथ जी उन्हें अपनी मां से अनुमति लेने को कहते हैं , भर्ती हरि अपनी मां के पास जाते हैं तो माँ उनसे कहती है कि तुम सन्यास अवश्य ले सकते हो यदि तुम मुझे 3 बचन दो हमेशा छप्पन भोग ही खाओगे और मखमल की शैया पर ही सोयोगे और किले में रहोगे, जब भर्तीहरि महाराज वापस गुरु गोरखनाथ के समक्ष आते हैं और बाबा गोरखनाथ उनसे पूछते हैं क्या तुम्हें मा से आज्ञा प्राप्त हुई तो भर्ती हरि बताते हैं कि मां ने आज्ञा दी भी है और नहीं भी,और उनके द्वारा दिए गए तीनों वचन को उन्हें बताते हैं तब बाबा गोरखनाथ ऐसी माता को नमन करने के लिए उत्साहित हो जाते हैं और उनके दर्शन हेतु जाते हैं, भर्ती हरि की मां को प्रणाम करते हैं और भर्ती हरि को समझाते हैं कि जब हमें भूख लगती है तभी हमें भोजन करना चाहिए तो उस समय हमें सूखी रोटी भी छप्पन भोग के समान प्रतीत होती हैं, जब बहुत तेज नींद आती है तभी सोना चाहिए क्योंकि तब तेज नींद में हर जगह मखमल की सेज के समान ही प्रतीत होती है किले के अंदर रहना अर्थात अपने गुरुदेव की शरण में बने रहना

संदीप मल्होत्रा महासमुंद ने आज जिज्ञासा रखी की अनासक्ति कर्म योग क्या है कृपया प्रकाश डालें गुरुदेव
बाबा जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में अर्जुन को बार-बार इसी योग के विषय में बताते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन आनासक्त होकर कार्य करो इंद्रियां इंद्रियों में बरत रहे हैं अर्थात इंद्रियां अपना अपना कर्म कर रही है हम उस में क्यों बंधे,हमारा मन,चित,बुद्धि यह सब अलग-अलग श्रेणियों में बटा हुआ है,इन सब की अलग अलग कार्य श्रेणी है और सबकी अलग-अलग जिम्मेदारी है हम बहुत सारे कर्म करते हैं और उसमें आसक्त हो जाते हैं जैसे हम शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन उसको जीवीकोपार्जन का माध्यम बना देते हैं, यह केवल जीविकोपार्जन का माध्यम नहीं यह ज्ञान का केंद्र है इस तरह से हम शिक्षा के ऊपर आसक्त हो जाते हैं हमें इसमें आसक्त ना होकर इस के ज्ञान का मूल देखना चाहिए, उपरांत पति पत्नी एक दूसरे पर आसक्त हो जाते हैं एक दूसरे पर आसक्त ना होकर अपनी अपनी जिम्मेदारियों और अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए पत्नी को पत्नी धर्म का तो पति को पति धर्म का निर्वाह करना चाहिए, संतान होने पर हम संतान पर आसक्त हो जाते हैं पुत्र मोह में बंध जाते हैं, हमें दशरथ के समान उदार हृदय का होना चाहिए जो भगवान राम से कितना अधिक प्रेम करते थे फिर भी जनकल्याण के लिए उन्हें ऋषि विश्वामित्र को प्रदान किया और सीख लेना चाहिए धृतराष्ट्र से,जो अपने पुत्र दुर्योधन पर आसक्त होने के कारण महाभारत जैसा युद्ध हुआ अतः हमें आसक्ति से ऊपर उठकर अपने जीवन कल्याण के साथ-साथ दूसरों के भी कल्याण के विषय में अवश्य सोचना चाहिए

इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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