क्या हैं सैटेलाइट इंटरनेट के फायदे और नुकसान, क्या 5g की तुलना में मिलती है बेहतर कनेक्टिविटी? यहां जानिए सब कुछ
इन दिनों सैटेलाइट इंटरनेट चर्चा में है। दूरदराज के ऐसे क्षेत्र जहां अब तक इंटरनेट नहीं पहुंचा है या फिर जहां लोगों को अभी भी हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा नहीं मिल रही है वहां पर सैटेलाइट इंटरनेट यूजफुल हो सकता है।
आज इंटरनेट लोगों के लिए लाइफलाइन की तरह है, पर अभी भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है या है भी तो उसकी स्पीड अच्छी नहीं होती। अब तक जहां आप्टिकल फाइबर नहीं पहुंचा है, वहां सैटेलाइट इंटरनेट यूजफुल हो सकता है। आने वाले दिनों में एलन मस्क का स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट भी भारत आ सकता है।
जानें सैटेलाइट से कैसे मिलता है इंटरनेट
दूरदराज के ऐसे क्षेत्र जहां अब तक इंटरनेट नहीं पहुंचा है या फिर जहां लोगों को अभी भी हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा नहीं मिल रही है, वहां पर सैटेलाइट इंटरनेट यूजफुल हो सकता है। लाकडाउन के दौरान जब आनलाइन क्लासेज शुरू हुईं, तो इस तरह की बहुत-सी खबरें देखी-सुनी गईं, जहां बच्चों को इंटरनेट एक्सेस के लिए ऊंचे स्थान पर जाना पड़ रहा था या फिर वे इंटरनेट की सुविधा न होने की वजह से क्लासेज लेने से वंचित रह गए। अब ऐसी जगहों पर रहने वाले लोग भी हाई स्पीड इंटरनेट का इस्तेमाल कर पाएंगे, क्योंकि SpaceX के फाउंडर Elon Musk ने कहा है कि Starlink सैटेलाइट इंटरनेट जल्द भारत आ सकता है। इसके लिए नियामक से अनुमति लेने की प्रक्रिया चल रही है। केवल मस्क ही नहीं, बल्कि Amazon जैसे कई अन्य दिग्गज भी भारत में सैटेलाइट इंटरनेट लाने के लिए नियामक के साथ बातचीत कर रहे हैं।
क्या है स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट ?
स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट प्रोजेक्ट है, जिसका टारगेट उन क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाना है, जहां अभी भी कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। Starlink जैसे सैटेलाइट इंटरनेट के लिए ट्र्रेडिशनल ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं होती है। यह वायर से नहीं, बल्कि लेजर बीम का इस्तेमाल कर डाटा ट्रांसफर करता है। Starlink की आफिशियल वेबसाइट के अनुसार 99 डालर यानी करीब 7,200 रुपये में इसकी प्री-बुकिंग शुरू हो चुकी है। ध्यान रखें कि यह दर सिर्फ बीटा कस्टमर के लिए है। जब यह सेवा आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी, तो कीमतों में कमी या बढ़ोत्तरी भी हो सकती है।
कैसे काम करता है स्टारलिंक?
स्टारलिंक सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सर्विस है, जो आपके घरों तक सिग्नल भेजने के लिए सैटेलाइट का इस्तेमाल करता है। इसके लिए लोअर आर्बटि सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है। लोअर आर्बटि सैटेलाइट की वजह से लेटेंसी दर काफी कम हो जाती है। लेटेंसी दर का मतलब उस समय से होता है, जो डाटा को एक प्वाइंट से दूसरे तक पहुंचाने में लगता है। लो लेटेंसी की वजह से आनलाइन बफरिंग, गेमिंग और वीडियो कालिंग की क्वालिटी बेहतर हो जाती है। दिलचस्प बात यह है कि की कार्यप्रणाली काफी हद तक डिश टीवी सर्विस की तरह ही है। Starlink को इंस्टाल करने के लिए यूजर द्वारा एक डिश का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक मिनी सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करता है।
भारत में अधिकतर इंटरनेट यूजर्स फाइबर आधारित प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं, जो सैटेलाइट इंटरनेट की तुलना में हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा देती है। हालांकि जो चीज स्टारलिंक की इंटरनेट सेवाओं को एक बढ़त देती है, वह यह है कि इसके लिए किसी वायर्ड कनेक्शन की जरूरत नहीं होती है। साथ ही, इसे दुनियाभर में कहीं से भी आसानी से एक्सेस किया जा सकता है। फिलहाल स्टारलिंक की इंटरनेट स्पीड 50 mbps से 150 एमबीपीएस के बीच है। कंपनी का लक्ष्य इसे 300 mbps तक पहुंचाना है।
अब सवाल यह भी है कि क्या सैटेलाइट इंटरनेट पर मौसम का असर होता है, तो इसका जवाब है-हां। सैटेलाइट इंटरनेट के लिए साफ आसमान का होना जरूरी है। इसका मतलब है कि भारी बारिश या तेज हवा कनेक्शन को बाधित कर सकती है, जिससे या तो इंटरनेट की स्पीड धीमी हो सकती है या कई घंटों के लिए आउटेज यानी इंटरनेट ठप भी हो सकता है।
सैटेलाइट इंटरनेट के फायदे
सैटेलाइट इंटरनेट को कहीं से भी एक्सेस किया जा सकता है।
आमतौर पर जो वादे किए जाते हैं,कई बार स्पीड उससे अधिक तेज होती है।
दूरदराज के क्षेत्रों और आपदा में उपयोगी।
आपदा की स्थिति में आसानी से रिकवर किया जा सकता है।
सैटेलाइट इंटरनेटके हो सकता हैं ये नुकसान
फिलहाल लेटेंसी की समस्या ।
इसके लिए आसमान का साफ होना जरूरी।
भारी बारिश या तेज हवा कनेक्शन को बाधित कर सकती है, जिससे इंटरनेट की स्पीड प्रभावित हो सकती है।
VPN का सपोर्ट नहीं मिलेगा।
5g की तुलना में सैटेलाइट इंटरनेट कहां
विश्वसनीय सेवा और स्पीड के मामले में 5g स्टारलिंक से आगे है, क्योंकि इसे टाप सेलुलर इंफ्रास्ट्रक्चर पर बनाया गया है। Starlink की तुलना में 5g कहीं ज्यादा तेजी से डाटा ट्रांसफर करने में सक्षम होगा। हालांकि कनेक्टिविटी के मामले में ग्रामीण कस्बों, छोटे शहरों या फिर दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सैटेलाइट इंटरनेट एक मौका हो सकता है, क्योंकि इसमें सेलुलर टावर जैसे बुनियादी ढांचे की जरूरत नहीं होती है। इसके अलावा, ऐसे क्षेत्र जहां तूफान, भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा रहता है, वहां के लिए यह एक आदर्श ऑप्शन हो सकता है, क्योंकि आपदाओं के बाद इस तरह की इंटरनेट सेवा को फिर से रिकवर करना आसान होता है
सैटेलाइट इंटरनेट से कितनी मिलेगी स्पीड
स्टारलिंक अभी बीटा स्टेज में है। अगर इसकी स्पीड की बात करें, तो स्पीडटेस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्राडबैंड ने 50.5 mbps डाउनलोड स्पीड, 14mbps अपलोड स्पीड और 52.5 M/s लेटेंसी हासिल की। अमेरिका में इसकी अपलोड और डाउनलोड स्पीड 13mbps और 50mpbs थी, जबकि लेटेंसी 57 M/s रही। इसके अलावा, कनाडा में डाउनलोड और अपलोड स्पीड 49mbps और 14mbps रिकार्ड की गई, जबकि लेटेंसी 52M/s दर्ज की गई।
साभार:सोशल मीडिया