500 साल पुरानी परंपरा…एक गांव,जहां महिलाएं ही खेलती हैं होली…पूर्वजों की परंपरा का पालन आज भी बड़ी ही शिद्दत के साथ किया जाता है

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भारत की संस्कृति बहुत ही अनोखी है।आज हम बात करेंगे एक ऐसे गांव के बारे में जहां 500 वर्षो से केवल महिलाएं होली मनाती है। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले का एक गांव है कुंडौरा। कुल आबादी करीब 5 हजार। यहां पर पुरुषों के होली खेलने पर रोक है। सिर्फ महिलाओं की टोली ही होली पर ठुमके लगाती है। महिलाएं और लड़कियां सुबह के वक्त ढोल-नगाड़ों के साथ निकलती हैं और घर-घर जाकर फाग गाती हैं। यह परंपरा करीब 500 साल पुरानी है। इस दिन महिलाएं पूरी तरह आजाद रहती हैं। यहां तक कि गांव के बुजुर्गों के सामने हमेशा पर्दे में रहने वाली बहुएं भी होली के दिन किसी से घूंघट नहीं करतीं, बल्कि पुरुषों को घरों में कैद कर होली में धमाल करती हैं। अगर गांव का कोई पुरुष गलती से भी महिलाओं के बीच पहुंच जाता है तो कभी-कभार पिटाई भी हो जाती है। कई बार उसे लहंगा-चोली पहनाकर गांव का दौरा कराया जाता है।

घूंघट वाली महिलाएं लगाती हैं ठुमके
गांव के पूर्व प्रधान अवधेश यादव ने फोन पर बताया कि गांव में महिलाओं की होली का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। पूर्वजों की परंपरा का पालन आज भी बड़ी ही शिद्दत के साथ किया जाता है। इन दिनों इस परंपरा को लेकर महिलाओं ने तैयारी शुरू कर दी है।

अवधेश यादव बताते हैं कि होली के पहले दिन पुरुष छककर रंग खेलते हैं, लेकिन दूसरे दिन सिर्फ महिलाएं और लड़कियां एकजुट होकर रंगों के इस पर्व को मनाती हैं। उनकी टोलियां पूरे गांव में स्वतंत्र होकर घूमती हैं। बहुओं को इस कार्यक्रम में कोई बाधा न आए इसलिए सभी पुरुष घरों में कैद रहते हैं या फिर गांव से बाहर खेत-खलिहान जाकर खेतीबाड़ी देखते हैं। सूर्यास्त के साथ पुरुष घर लौटते हैं। किसी भी पुरुष को देखने की मनाही होती है। अगर रास्ते में कोई पुरुष दिखे तो गांव में आते ही उनको रंगों से सराबोर कर दिया जाता है।

मंदिर से होती फाग की शुरुआत
अवधेश बताते हैं कि पूरे गांव की महिलाएं राम जानकी मंदिर से फाग निकालकर आयोजन का आगाज करती हैं। फाग निकलते वक्त कोई भी पुरुष उन्हें देख नहीं सकता है। यहां तक कि फोटो या वीडियो बनाने पर भी मनाही होती है।

जब कोई अनूठी परंपरा के दौरान बिना परमिशन के फोटो लेते पकड़ा जाता है तो उसे इसका अंजाम भुगतने को तैयार रहना पड़ता है। कई बार उस पर तगड़ा जुर्माना भी लगाया जाता है। साथ ही लट्ठ लेकर गांव से खदेड़ दिया जाता है।

सास-बहुएं जमकर करती हैं डांस
महिलाओं का कहना है कि गांव में जब वह ब्याह कर आईं, तभी से ही इस परंपरा का हिस्सा बन रही हैं। यह बुंदेलखंड का अकेला ऐसा गांव है, जहां आज भी यह परंपरा कायम है। फाग निकलने के दौरान सास और बहुएं एकसाथ डांस करती हैं।

होली के अगले दिन सभी महिलाएं राम जानकी मंदिर में एकत्रित होती हैं। इसमें हर घर से महिलाएं शामिल होती हैं। बुजुर्ग महिलाएं ढोल और मजीरा बजाती हैं। देर शाम तक चलने वाले आयोजन में एक-दूसरे को गुलाल लगाती हैं। शाम को महिलाएं स्नान के बाद पकवान बनाती हैं और पुरुषों को खिलाती हैं। महिलाओं की खास टोली आकर्षण का केंद्र होती है।

यह गांव महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण है। महिलाओं के सम्मान के लिए पर्व पर पुरुष पीछे हट जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई दशक पहले होली के ही दिन गांव के लोग राम जानकी मंदिर में फाग गा रहे थे। उस समय एक इनामी डकैत मेम्बर सिंह ने राजपाल नाम के शख्स की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इसके बाद कई सालों तक गांव में होली का पर्व नहीं मनाया गया।

जब महिलाओं ने पुरुषों को होली मनाने के लिए समझाया तो उनके न मानने पर सभी राम जानकी मंदिर में इकट्ठा हुईं। इस दौरान यह फैसला लिया गया कि होली त्योहार के अगले दिन केवल महिलाएं ही इस त्योहार को मनाएंगी। पुरुष इसमें हिस्सा नहीं ले सकेंगे।

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