परंपरागत जनजातीय कला में भी बहुत अवसर हैं…छोटे से गांव से आने वाली दुर्गाबाई चित्रकारी के दम पर ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं,जहां पहुंचने का सपना लगभग हर भारतीय का होता है… दुर्गाबाई को उनकी कला के लिए पद्मश्री के लिए चुना गया है

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चाह बड़ी हो तो उड़ान के लिए आसमान भी छोटा पड़ जाता है..कुछ ऐसी ही कहानी है मध्यप्रदेश के डिंडोरी के एक छोटे से गांव से आने वाली दुर्गाबाई की। 6 साल से चित्रकारी करने वाली दुर्गाबाई ने कभी स्कूल की दहलीज भी नहीं पार की लेकिन अपनी कला के दम पर ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं, जहां पहुंचने का सपना लगभग हर भारतीय का होता है। दुर्गाबाई को उनकी कला के लिए पद्मश्री के लिए चुना गया है।

दुर्गाबाई कहती हैं कि यह हमारे पूर्वजों की कला है, जिससे मुझे पहचान मिली है। मैंने यह कला अपनी दादी से सीखी थी। मैं घर की दीवारों पर ठिगना और मिट्टी से आकृतियों को उकेरती थी। यह कार्य हमारे घर की स्वच्छता और घर को सुंदर बनाने के लिए किया जाता था। मुझे 30 साल हो गए हैं इस कला से जुड़े हुए। मुझे नहीं पता था कि मेरी यह परंपरागत कला मुझे इतनी प्रसिद्धि दिला देगी कि आज मुझे पद्मश्री के लिए नामित किया गया है। मैं खुद को खुशनसीब समझती हूं कि पिछले साल हमारे ही मध्य प्रदेश से जनजातीय कला के क्षेत्र में भूरी भाई को यह सम्मान मिला और इस वर्ष मेरा नाम इस सम्मान के लिए नामित हुआ है।

डिंडौरी जिले के सनपुरी गांव की निवासी दुर्गा ने बताया कि 1996 में मैं पहली बार भोपाल आई थी। तब मेरे पति सुभाष व्योम को लोकरंग समारोह में लकड़ी की आकृतियां बनाने काम मिला था। गोंड चित्रकार जनगढ़ सिंह श्याम के माध्यम से जनजातीय संग्रहालय के अधिकारियों ने उन्हें बुलाया था। पति के साथ अपने तीनों बच्चों को लेकर मैं भी भोपाल आ गई। हम जनगढ़ सिंह के घर पर ही रुके थे। इस दौरान मेरे बेटे की तबियत बिगड़ गई और हमें अधिक समय तक भोपाल में रुकना पड़ा। फिर हमने किराए का घर लिया था। इसके बाद यही रुकने का मन बनाया और भारत भवन से जुड़ गई। भारत भवन में पहली बार 1997 में मेरी पेंटिंग प्रदर्शित हुई थी, जिसे काफी सराहना मिली थी। इसके बाद चित्रकारी की यात्रा चल पड़ी। इससे हमें सीख मिलती है कि जनजातीय कला में भी बहुत अवसर हैं। अब मैं चाहूंगी कि इस कला को और आगे लेकर जाऊं और इसमें अच्छे से अच्छा काम करूं। हमारे डिंडौरी क्षेत्र के बच्चे भी इस कला में माहिर हैं और मैं चाहूंगी कि ये बच्चे इस कला को और अच्छे से सीखे और हमारी प्राचीन परंपराएं हमेशा बरकरार रहें। सम्मान से प्रोत्साहन मिलता है। इस तरह से जनजातीय कला को आगे बढ़ाना सरकार का बहुत ही अच्छा कार्य है। यह जनजातीय समाज को प्रोत्साहित करने का अच्छा तरीका है।

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