गांव में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होने के बाद गांव के लोगों ने बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन शुरू किया. इसका परिणाम यह हुआ कि अब बारिश के मौसम में जब सब्जियों की खेती कम होती है, हर रोज गांव सें 250-300 क्विंटल सब्जियां स्थानीय बाजारों में भेजी जाती है.
झारखंड की राजधानी रांची जिले के बुढ़मू प्रखंड अंतर्गत लावागड़ा गांव के किसान खुशहाल है. कुएं और तालाब लबालब पानी से भरे हैं. सालोंभर यहां की जमीन पर खेती हो रही है. इससे लोगों की आमदनी बढ़ी है. इसके साथ साथ उनके जीवनस्तर में सुधार आया है. जल संरक्षण के जरिये इस गांव में यह सकारात्मक बदलाव आया है. क्योंकि पानी के बिना कृषि संभव नहीं है. जब गांव में पानी होगा तब कृषि होगी पशुपालन भी होगा इसके अलावा अन्य कृषि आधारित कार्य हो सकेंगे.
लगभग तीन साल पहले तक गांव के हालात ऐसे थी का पर्याप्त मात्रा में बारिश होने के बाद भी बारिश के मौसम को छोड़कर गांव की अधिकांश जमीन खाली रहती थी. क्योंकि दूसरी फसल लगाने के लिए लोगों के पास पानी की कमी हो जाती थी, पीने के लिए पानी के बारे में भी लोगों को सोचना पड़ता था. खेती नहीं हो पाने की सूरत में काम की तलाश में ग्रामीण शहर का रूख करते थे और यहां आकर दैनिक मजदूरी करते थे.
इस तरह हुआ बदलाव
यहां के मुखिया सत्यनारायण मुंडा बताते हैं कि गांव के लोगों की समस्या को देखते हुए लावागड़ा गांव को पानी गांव बनाने का संकल्प लिया गया. इसके बाद गांव में बड़े पौमाने पर टीसीबी की खुदाई की गयी. आज गांव में लगभग 800 टीसीबी है. इसके अलावा चार तालाब खोदे गये. इसका परिणाम यह हुआ की एक बारिश का मौसम पार होने के बाद गांव में जलस्तर काफी उंचा हो गया. कुओं और तालाबों में पानी सालोंभर के लिए उपलब्ध हो गया. इससे ग्रामीणों को खेती करने में आसानी हुई.
बढ़ा कृषि उत्पादन
गांव में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होने के बाद गांव के लोगों ने बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन शुरू किया. इसका परिणाम यह हुआ कि अब बारिश के मौसम में जब सब्जियों की खेती कम होती है, हर रोज गांव सें 250-300 क्विंटल सब्जियां स्थानीय बाजारों में भेजी जाती है. जबकि दिसंबर जनवरी में यहां के कई वाहनों में भर कर सब्जियां बाजार भेजी जाती है. इससे किसानों की आय बढ़ी है. अब लोग अपने लिए पक्का मकान बना रहे हैं गांव में समृद्धि आयी है.
बागवानी और पशुपालन पर जोर
पानी की मौजूदगी ने ग्रामीणो के सामने रोजगार के कई अवसर खोल दिये. गांव में ही लगभग 14 एकड़ जमीन में आम की बागवानी की गयी है. इसके अलावा लोग पशुपालन भी कर रहे हैं. गांव से हर रोज 250-300 लीटर दूध डेयरी में भेजा जाता है. मुखिया बताते हैं कि पहले पानी नहीं होने के कारण पशु चारे का भी आभाव हो जाता था इसलिए लोग पशुपालन नहीं करते थे. इसके साथ ही अब मछली पालन और बत्तख पालन भी लोग कर रहे हैं.
एक नजर में लवागड़ा गांव
लवागड़ा गांव रांची का सुदूरवर्ती गांव है. यहां लगभग 300 की आबादी रहती है. गांव के 95 फीसदी लोग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. पानी उपलब्ध होने के बाद अब गांव पूरे साल हरा भरा दिखाई देता है.