राजपुर गांव चो सवकार करिया सेठ,टोंड जितरो ढाय-ढाय पादरा आय ठीया ठेट | बीड़ापान टोंडे सदरे,केबे नी गुचे टोंड ले अदरे |
धमड़ धस बाप चो लाडरा बेटा,
बनक टंगिया चो टूटहा ढेटा | बाप चो कमई के उड़ाये,बाप नी दिले डरान खाये,बिन गोसेया चो गाय रन भन जाय | सागले कहनी बलले गारी,चाल ना ओज कसन अये बुहारी |
सवकार चो नानी बेटा सुकालू आली पाली ने बीर,लोहा दखुन पानी आरू लकड़ी दखुन चीर | गरीब काजे टेकना,गरब करू के बाखना | गांव ने डारा बले नी हले सुकालू डर काजे | जमाय जामूआत की सुकालू महाउबडंगी मनुख आय | मान्तर खूबे लोक सुकालू के देव असन मानुआत | सुकालू चो मुरूख के छाडूंन दिले नंगत चे माने आय | संगात गलत लोक संगे होलोर काजे लोक सुकालू के बयडंडू बलूआत नाहले सुकालू मन चो राजा मनुख बले आय |
सुकालू नंदी धड़ी बसुन काय बिचार करेसे आजी | खड़कघाट ने नंदी रेटे कालेज झोरा धरू दुय जोड़ी लेका-लेकी बसुन भाती काय मंजा मया गोठ ने भुरल ला सत | सुकालू चो नंजर पड़ते बलेसे- ये मन आया बूबा चो पैसा के उड़ासत,बसून कालेज ने पड़तोर बेरा इता मस्टी मार सोत बलते बिरबिकाल होयसे | फेर खिंडिक नंजर किंदरेसे तो दखेसे- ये तो पखना खाउ नेता चो बेटा आय,हुनी दिने तो कजरी संगे बुलते रहे,केबे तो दिनेक सोमारी संगे दखादये,आज मैनामोती संगे बुलेसे |
सुकालू चो मन ने मया चो कया भेदेसे जीव कावली बिवली होयसे,फेर रिस काजे तो थर-थरे,बिगर बल चो काय करे | मने मन बिचार करेसे – ये संवसार नाट घर आया बारा बरन चो नाट होयसे,जोन बले आसे सिरप ससरंग करेसे,एक दूसर के लंदी फंदी करेसे | मान्तर मय तो बुदरी के सते चे बलु रहें कि बुदरी तुके मय खूबे मया करेंसे,मान्तर बुदरी बले अई संवसार चो नाट घरे आसे,धन रे तकदीर,कोनी खायसे पसेया कोनी खायसे खीर | दात नाजून अकरे मया होली,डोकरा नाजून केंश पाकली,पसना पोसू भूके सोयसे,कुर्ची बसू राजा होयसे,धन धन रे तकदीर,कोनी खायसे पसेया कोनी खायसे खीर |
सुकालू आजी नंदी खंडे बसून पानी चो मछरी चिंगड़ा के दखते,खूबे गियान जानलो |
फेर घर काजे रेंगलो मान्तर आज रेंगा बदलली से,ये घर के छांडून कोन बाटे जायसे सुकालू – सुकालू चो पांय हिंडा,बोंडकी डोकरी चो घर बाटे जायसे,सुकालू बोंडकी दखते जाउन पांय पड़ेसे – मके,माफी दियास बुबू, मय संवसार चो कहनी के नी जानते रलें,मैं बुदरी चो हात मांगतो काजे तुमके झगड़ा करू रलें,’
बोड़की हरिक होली – सुकालू चो मुंडे हात देउन आसीद दयसे बलेसे-
बिहान चो निकरलो सांजे घरे इले, हुनके हजु रहे नी बलत भाचा सुकालू | ये संवसार चो डीर आय,जानले खीर,नाहले पसेया नोन चटनी आय,तुम तो पढ़े लिखे आहास ओ मन के मडांन ससरंग के नाट दखतोर चे आय, सुनलासीत काय भाग बिना भोग नहीं करम बिना जोग,धन रे तकदीर कोनी खायसे पसेया कोनी खायसे खीर |
✍©®
*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़