जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी अपनाओ, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा, क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर काबू रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त

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मानव सभ्यता आज हिंसा और पर्यावरण संकट की जिन चुनौतियों से जूझ रही है, उनमें गांधी का जीवन और उनके विचार ही हमें सही रास्ता दिखाते हैं। दुनिया भर में लोकतंत्र पर आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण पर्यावरण का संकट अन्य संकटों को जन्म दे रहा है। यहीं नहीं, बेरोजगारी की समस्या भी एक बड़ी चुनौती है। इन तमाम संकटों के बीच फंसी मानव जाति के लिए गांधी पथप्रदर्शक की तरह हैं, यही वजह है कि दुनिया भर में आज गांधी को याद किया जाता है और कहा जाता है कि गांधी के जीवन मूल्यों और उनके विचारों को याद रखना होगा।

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट के मौजूदा दौर में तो गांधी के विचार और भी प्रासंगिक हो उठे हैं। उन्होंने कहा था कि पृथ्वी के पास सभी की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन हर किसी के लालच के लिए नहीं। आज दुनिया भर के पर्यावरणीय आंदोलनों में इसे दोहराया जाता है। पर्यावरण के बारे में आज हम जितना सोचते हैं, उससे ज्यादा अहिंसक समाज की उनकी कल्पना में, उनके ग्राम स्वराज की कोशिश में पर्यावरण के संरक्षण का भाव निहित है।

गांधी जी सदैव साधारण शब्दों और शांत शैली में भाषण देते थे। परंतु जब उनको लगा कि अब अंग्रेजों को भारत छुड़ाने का समय आ गया है परंतु उनकी पार्टी ही उनसे असहमत हो रही थी तब उनके द्वारा गोवालिया टैंक बंबई में दिया गया भाषण इतिहास के सबसे प्रेरक भाषणों में से एक बन गया। उनके इस अंतिम सार्वजनिक भाषण के बाद प्रत्येक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता बन गया और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा

गांधी जी का स्वदेशी का विचार प्रकृति के खिलाफ आक्रामक हुए बिना स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग की बात करता है। उन्होंने कृषि और कुटीर उद्योगों पर आधारित एक ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था का आह्वान किया। वह हाथ से काते, हाथ से बुने खादी के कपड़े की बात करते थे, क्योंकि वह पर्यावरण के लिहाज से सही था। उसमें कोई धुआं, कोई प्रदूषण नहीं होता था। उसमें मशीन का इस्तेमाल नहीं होता था, बल्कि लोग स्वयं काम करते थे।

जबसे मशीनों के जरिये उत्पादन होने लगा, तभी से लोगों का शोषण भी बढ़ता चला गया। गांधी का खादी का विचार एक मूल्य था, जिसे अपनाने से न केवल प्रदूषण से मुक्ति मिलती थी, बल्कि मानव पूंजी का इस्तेमाल होने से बेरोजगारी की समस्या का भी हल होता था। अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में उन्होंने औद्योगिक सभ्यता को मानवता के लिए खतरा बताया था। भारत के लिए गांधी की दृष्टि प्राकृतिक संसाधनों के समझदारीपूर्ण उपयोग पर आधारित है, न कि प्रकृति के दोहन और विनाश पर। उनके अनुसार, असली सभ्यता अपने कर्तव्यों का पालन करना और नैतिक व संयमित आचरण करना है। उनका मानना था कि लालच पर अंकुश लगना चाहिए।

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