कृषि विशेष…एफपीओ बनेगा भविष्य की खेती का आधार…क्या है एफपीओ…क्या हैं इसके वित्तीय प्रावधान

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कृषि कारोबार में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि विभाग आधुनिक योजना लेकर आया है। इसके तहत किसान अपने उत्पादों को फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) के तहत कृषि विभाग के पास कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड कराएंगे, और अपने उत्पादों की मार्केटिंग भी खुद करेंगे। इसमें बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं होगी और उत्पाद विशेष के ब्रांड की बाजार में यह पहचान भी खुद ही स्थापित करेंगे।

क्या है एफपीओ
केंद्र सरकार ने 29 फरवरी 2020 को उत्‍तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पड़ने वाले चित्रकूट जिले से 6865 करोड़ रूपए के बजटीय प्रावधान वाले इस योजना की शुरूआत की थी। इस योजना का लक्ष्य खेती-किसानी के विकास के साथ-साथ छोटे किसानों का आय बढ़ाना था। योजना के तहत 2023-24 तक देशभर में 10,000 नए कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित करने का लक्ष्य है। इस दौरान पहले सत्र 2020-21 के दौरान 2200 से अधिक एफपीओ का आवंटन किया गया।

एफपीओ एक ऐसी व्यवस्था है जो किसानों से फल, सब्जी, फूल, मछली व बागवानी से संबंधित फसलों को खरीदकर सीधे कंपनियों को बेचा जाता है। इसमें किसान जुड़े होते हैं और केंद्र सरकार का दावा है कि किसानों के पास मोलभाव का ताकत होने के कारण उन्हें अधिक आय की प्राप्ति होती है। इन एफपीओ से अब तक देश के लाखों किसान जुडकऱ लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

यह लघु व सीमांत किसानों का एक समूह होता है। इससे जुड़े किसानों को न सिर्फ अपनी उपज का बाजार मिलता है, बल्कि खाद, बीज, दवाइयों और कृषि उपकरण आदि भी खरीदना आसान हो जाता है। इससे सेवाएं सस्ती हो जाती हैं और बिचौलियों के मकड़जाल से भी किसानों को मुक्ति मिलती है, ऐसा सरकार का दावा है।सरकार का कहना है कि एफपीओ सिस्टम में किसान को उसके उत्पाद के भाव अच्छे मिलते हैं, क्योंकि सिर्फ एक किसान नहीं बल्कि किसानों के एक बड़े समूह के पास मोलभाव की ताकत होती है। वहीं अगर अकेला किसान अपनी पैदावार बेचने जाता है, तो उसका मुनाफा बिचौलियों को मिलता है।

कश्मीर, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और अरुणाचल प्रदेश में एफपीओ का निर्माण हुआ है। अन्य राज्यों जैसे छत्तीसगढ़ में भी एफपीओ का पंजीकरण कार्य जारी है। ये एफपीओ पारंपरिक फसलों के साथ-साथ सेब, बादाम, शहद, चाय, मूंगफली, कपास, सोयाबीन, अलसी, गन्ना, सब्जियों आदि से भी संबंधित हैं।

हालांकि हाल में आई अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बैंगलुरू की रिपोर्ट बताती है कि अब तक देश में बने एफपीओ में 50 प्रतिशत से ज्यादा सिर्फ पांच राज्यों (महाराष्ट्र, यूपी, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और तेलंगाना) में ही स्थित हैं। यानी देश के ज्यादातर हिस्सों में इनकी पहुंच कम है। कृषि कानूनों को लेकर कराए गए सर्वे में भी यह सामने आया था कि 49 फीसदी किसान एफपीओ के बारे में जानते ही नहीं हैं।

सर्वे के नतीजों में सामने आया कि किसी समूह का हिस्सा रहे ऐसे किसी दूसरे किसान के बारे में न जाने वाले ऐसे किसानों में 55.4 फीसदी किसान छोटे और सीमांत किसान थे, जबकि मध्यम और बड़े किसानों में यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा था। बड़े किसानों में 64.8 फीसदी किसान ऐसे किसी दूसरे किसान के बारे में नहीं जानते थे जो एफपीओ या किसी समूह का हिस्सा हों।

जबकि एफपीओ को लेकर जारी केंद्र सरकार की दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि हर एक एफपीओ में 50 प्रतिशत छोटे, सीमान्त और भूमिहीन किसान शामिल होंगे। इसके अलावा प्रत्येक एफपीओ के उसके काम के अनुरूप 15 लाख रुपए का अनुदान भी दिया जाएगा। इसके लिए देश भर की सहकारी समितियां एफपीओ के गठन में सहयोग करेंगी ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में निवेश को बढ़ाया जा सके।

क्या हैं इसके वित्तीय प्रावधान?
एफपीओ योजना के तहत किसानों एवं एफपीओ के लिए तकनीकी व वित्‍तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। क्लस्टर आधारित व्यवसाय संगठनों द्वारा एफपीओ को 5 साल की अवधि के लिए व्यावसायिक हैंडहोल्डिंग समर्थन सरकार द्वारा दिया जाता है। वहीं तीन सालों के लिए एफपीओ के कर्मचारियों के वेतन, पंजीकरण, भवन किराया, उपयोगिता शुल्क, उपकरण लागत, यात्रा एवं अन्‍य खर्चों के लिए 18 लाख रूपए प्रति एफपीओ दिए जाते हैं।

एफपीओ के किसान सदस्यों को 2 हजार रू. (अधिकतम 15 लाख रू. प्रति एफपीओ) इक्विटी अनुदान के रूप में प्रदान किया जाता है। एफपीओ को 2 करोड़ रू. की बैंक योग्य परियोजना के लिए 75% तक क्रेडिट गारंटी कवर की सहायता सरकार द्वारा प्रदान की जाती है, जबकि एक करोड़ रू. की बैंक योग्‍य परियोजना के लिए 85% तक क्रेडिट गारंटी कवर की सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के लिए 6865 करोड़ रूपये के बजट का प्रावधान किया गया है।

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान
केंद्र सरकार ने किसानों के लिए एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत देश में कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाए जाने के लिए कदम उठाए जा रहे है। इस एक लाख करोड़ रुपए के एग्री इंफ्रा फंड का इस्तेमाल गांवों में कृषि क्षेत्र से जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में किया जाएगा। इस फंड से कोल्ड स्टोर, वेयरहाउस, साइलो, ग्रेडिंग और पैकेजिंग यूनिट्स लगाने के लिए लोन भी दिया जाएगा।

इस फंड के तहत 10 साल तक वित्तीय सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी, वहीं खेती से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया जाएगा। इस फंड को जारी करने का उद्देश्य गांवों में निजी निवेश और नौकरियों को बढ़ावा देना है।

आल वालेंटरी एसोसिएशन फाउंडेशन छत्तीसगढ़ में गांव गांव जाकर एफपीओ बनाने के लिए किसानों को जागरूक कर रहे है

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