शोधार्थी के देशी लिबाज ने सबको चौंकाया, अलग अंदाज में शोध प्रस्तुत कर दिया सामाजिक संदेश…वे ऐसे उत्कृष्ठ बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जो न केवल पिछले कई सालों से सामाजिक भेदभाव व आदिवासी संस्कृति के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं बल्कि अकादमिक और सामुदायिक स्तर पर भी लड़ाई लड़ रहे हैं

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बस्तर:आधुनिक परिवेश में एक ओर जहां लोक संस्कृति विलुप्तता की ओर अग्रसर है तो वहीं इस वरिष्ठ शोधार्थी ने उस वक्त सबको चौंका दिया जब वो अपना शोध प्रस्तुत करने के दौरान आदिवासी लिबाज और अपने एक अलग ही अंदाज में पहुंचे। उनके इस वेषभूषा ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

शोधार्थी दीनानाथ यादव ऐसे उत्कृष्ठ बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जो न केवल पिछले कई सालों से सामाजिक भेदभाव व आदिवासी संस्कृति के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं बल्कि अकादमिक और सामुदायिक स्तर पर भी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे पिछले 5 सालों से बाल अधिकार संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं साथ ही निरंतर प्रयासरत भी हैं। इसी क्रम में उन्होंने छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में सृजनात्मक पहल किए हैं जिसमें बाल अधिकार आयोग का भी विशेष सहयोग रहा है। उन्होंने स्तरीय बाल संरक्षण समिति के गठन पर जोर दिया है साथ ही इसके क्रियान्वयन के लिए व्यवस्थित मॉडल भी प्रस्तुत किया है जिससे इसे प्रभावी रुप से जमीनी स्तर पर लाया जा सके। इसके साथ-साथ उन्होंने जिला प्रशासन रायपुर के सहयोग से दो विद्यालयों में बाल संरक्षण समिति की संरचना बनाकर स्कूल स्तर पर क्रियान्वयन भी किया जो एक शोधार्थी के रुप में उत्कृष्ट व हस्तक्षेपी प्रयोजन है। इसी विशिष्ट कार्य के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य बाल आधिकार आयोग ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्कृष्ठ बाल अधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित किया है। इन्होंने वर्तमान में महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में समाजकार्य में अपना शोध कार्य पूर्ण कर थीसिस प्रस्तुत किया है जिसकी हमने अभी चर्चा की है। इनके शोध मार्गदर्शक के रूप में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार राय हैं। इनके शोध का विषय छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में पोक्सो एक्ट के क्रियान्वयन का मूल्यांकनात्मक अध्ययन है। सबमिशन के बाद उन्होंने पत्रकारों को बताया कि ये पीएचडी सिर्फ उनके पढ़ाई के लिए नहीं रही है बल्कि उससे कहीं ज्यादा यह उनके परिवार और समाज में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन व सुधार के लिए किया गया है। इसका सबसे बड़ा कारण उन्होंने बताया कि उनके परिवार को ग्रामीण और सामाजिक स्तर पर हमेशा कमजोर आंका गया है। उनके साथ विभिन्न तरीके से भेदभाव और उन्हें परेशान करने की तमाम कोशिशें की गई है। इसलिए वे अपने पीएचडी को इसका जवाब बताते हैं। उन्होंने अपनी उपलब्धि का श्रेय अपने परिवार, गुरुजन और शुभचिंतकों को दिया है। इस दिन को हमेशा याद रखने के लिए उन्होंने शोध जमा करने का दिन अपने माता जी के जन्मदिन को चुना। इनके लगन और कार्यों को देखकर ही विदर्भ आदिवासी संगठन के अध्यक्ष चन्द्र शेखर मंडावी ने शोधार्थी दीनानाथ यादव को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए गोंडवाना भूषण से सम्मानित करने की बात कही है क्योंकि उन्होंने एक शोधार्थी रहते हुए आदिवासी समाज की संस्कृति, अधिकारों और मूल्यों के लिए अकादमिक और सामाजिक स्तर पर निरंतर जमीनी लड़ाई लड़ी है।

देश के विभिन्न संगठनों ने किया सम्मानित
बाल आधिकार के क्षेत्र में शोधार्थी को 4 राष्ट्रीय और 5 राजकीय व सांस्थानिक सम्मान प्राप्त है। सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों व रूढ़िवाद को समाप्त करने के प्रयास के लिए इन्हें 2018 में छत्तीसगढ़ के जन चेतना सम्मान से सम्मानित किया गया। दिव्यांग बच्चों के कल्याण हेतु विशेष पहल के लिए निःशक्त कल्याण सेवा समिति पामगढ़ (छ. ग.) के द्वारा 2021 में उत्कृष्ठ बाल आधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित किया है। इसके अलावा हाल ही में इसी सम्मान से इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य बाल आधिकार संरक्षण आयोग ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्कृष्ठ बाल अधिकार सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सम्मानित भी किया है।

विभिन्न राष्ट्रीय फेलोशिप में चयनित
शोधार्थी का चयन भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (ICSSR) व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के फेलोशिप प्रोग्राम में हुआ है। तथा बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाली राष्ट्रीय नोडल नोडल एजेंसी चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) ने भी सम्मानित किया है।

कठिनाइयों का सामना कर बने गोल्ड मेडलिस्ट
गांव में तो इन्होंने और इनके परिवार ने पहले ही विभिन्न समाजिक भेदभाव का सामना किया था, लेकिन प्रारंभिक उच्च शिक्षा के दौरान भी ग्रामीण क्षेत्र से आने और इनके वेशभूषा और भाषा के कारण इनका मजाक बनाया जाता था। जिसका जवाब इन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और इस मुकाम पर पहुंच कर दिया। अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा में सोशल वर्क में 2015 में मास्टर की पढ़ाई में ये टॉप कर गोल्ड मेडलिस्ट बने और एमफिल करते हुए ही पीएचडी की प्री परीक्षा पास कर अपनी उत्कृष्ट योग्यता परिचय देते हुए 2016 में पीएचडी में प्रवेश लिया।

अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय शोध पत्रों का प्रकाशन
इनके शोध पत्र की बात करें तो इस क्षेत्र में इनके 30 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रों का प्रकाशन हो चुका है। और आगे भी ये इसके किए प्रयासरत हैं। इस समय श्री यादव जी अपनी सामजिक बहिष्कार : एक सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिरोध नामक शीर्षक की पुस्तक का लेखन कर रहे हैं। शोधार्थी दीनानाथ यादव ने एक छोटे से गांव से निकलकर संघर्ष किया और अंत तक हार नहीं मानी और जिस वेषभूषा और भाषा बोली का मजाक बनाया जाता था उसी अंदाज में उन्होने अपने शोध को प्रस्तुत कर सामाजिक संदेश देने का प्रयास किया और अपने कार्यों से पूरे छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया। वर्तमान में ये शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर (छ. ग.) में समाज कार्य विभाग में सहायक प्राध्यापक (अतिथि) के रुप में अपनी सेवा दे रहे हैं।

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