अगर हौसला हो बुलंदियों को छूने का तो फिर कोई उसे रोक नहीं सकता…कुछ ऐसे ही हौसले के साथ एक बार फिर से दुनिया की नंबर एक तीरंदाज बन गई हैं दीपिका कुमारी

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विश्व कप के तीसरे चरण में गोल्डन हैट्रिक लगाने वाली भारत की स्टार धर्नुधर दीपिका कुमारी फिर से दुनिया की नंबर एक तीरंदाज बन गईं हैं। रांची की 27 वर्षीय खिलाड़ी ने पहली बार 2012 में नंबर एक रैंकिंग हासिल की थी और डोला बनर्जी के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाली दूसरी भारतीय तीरंदाज थीं। दीपिका अब टोक्यो ओलंपिक में निशाना साधेगी। वह एकमात्र भारतीय महिला तीरंदाज होंगी जो टोक्यो ओलंपिक में खेलेंगी। यह उनका तीसरा ओलंपिक होगा। उन्होंने रविवार को रिकर्व की तीन स्पर्धाओं में महिलाओं की व्यक्तिगत, टीम और मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक जीते। दीपिका ने पहले अंकिता भगत और कोमोलिका बारी के साथ मिलकर रिकर्व टीम स्पर्धा में मैक्सिको को 5-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद मिश्रित टीम स्पर्धा के फाइनल में पति अतानु दास के साथ मिलकर सोना जीता। आखिर में दीपिका ने व्यक्गित स्पर्धा के फाइनल में रूस की एलिना ओसिपोवा को 6-0 से हराकर लगातार तीसरा स्वर्ण जीता। दीपिका विश्व कप में अब तक कुल नौ स्वर्ण, 12 रजत और सात कांस्य पदक जीत चुकी हैं।

पेड़ से आम तोड़ने से शुरू हुआ सफर
दीपिका का जन्म 13 जून 1994 में झारखंड राज्य की राजधानी रांची के रातू नामक स्थान में ऑटो चालक शिवनारायण महतो और रांची मेडिकल कॉलेज में नर्स गीता महतो के घर हुआ था। बचपन से ही दीपिका अपने लक्ष्य पर केंद्रित रही हैं। दीपिका की मां गीता की मानें तो बचपन में दीपिका एक दिन मेरे साथ कहीं जा रही थी कि रास्ते में एक आम का पेड़ दिखा। दीपिका ने कहा कि वो आम तोडे़ंगी। मैंने उसे मना किया कि आम बहुत ऊंची डाल पर लगा है, वो नहीं तोड़ पायेगी, तो उसने कहा, नहीं आज तो मैं इसे तोड़ कर ही रहूंगी। उसने जमीन से पत्थर उठा कर निशाना साधा। पत्थर सीधे टहनी से टकराया और आम गिर गया। दीपिका का वो निशाना देख कर मुझे हैरानी हुई। ठीक वैसे ही जिंदगी में भी दीपिका जो लक्ष्य बना लेती है, उसे हासिल करके दिखाती है। वर्तमान में दीपिका टाटा स्टील कंपनी के खेल विभाग की प्रबंधक हैं।

अवॉर्ड पर अवॉर्ड जीते 
दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब उन्होंने पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी ज्वाइन किया। यह अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा ने खरसावां में शुरू की थी। तीरंदाजी में उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 2006 में हुई जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी ज्वाइन किया। उन्होंने यहां तीरंदाजी के दांव-पेच सीखे। इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा मेक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंट एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं। यहां से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नंबर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया। सबसे पहले वर्ष 2009 में महज 15 वर्ष की दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप जीत कर अपनी उपस्थिति जाहिर की थी। फिर 2010 में एशियन गेम्स में कांस्य हासिल किया। इसके बाद इसी वर्ष कॉमनवेल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ दो स्वर्ण हासिल किए। राष्ट्रमण्डल खेल 2010 में उन्होंने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया। फिर इस्तांबुल में 2011 में और टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता। इस तरह एक-एक करके वे जीत पर जीत हासिल करती गईं। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया गया। 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दीपिका को पद्म श्री से सम्मानित किया था।

पति संग मिलकर जीता स्वर्ण 
विश्व कप तीरंदाजी की मिश्रित टीम स्पर्धा में दीपिका कुमारी ने अपने पति अतनु दास के साथ मिलकर गोल्ड पर निशाना साधा। 30 जून को शादी की पहली वर्षगांठ के पहले दोनों ने एक-दूसरे को गोल्ड मेडल जीत का शानदार तोहफा दिया। दीपिका और अतनु की प्रेम कहानी भी काफी दिलचस्प रही है। तकरार के बाद हुई दोस्ती बाद में शादी के बंधन तक ले गई और पिछले साल कोरोनाकाल में ही दोनों 30 जून को शादी के बंधन में बंध गए। दोनों पहला एक साथ स्वर्ण पदक पाकर बेहद खुश हैं। दीपिका की मानें तो अब उनका ध्यान केवल ओलंपिक पर है।

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