किक्की बेशक दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले बेहद बुलंद हैं…कोरे पन्नों और कलम से दोस्ती कर अपने मन की भावनाएं कहानी,कविताएं एवं लेखों के रूप में उन पर लिखने लगीं आज एक अच्छी लेखिका हैं

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घर में जब कोई नन्हा मेहमान कदम रखता है, तो पूरा घर खुशियों से भर जाता है। बच्चे के जन्म के साथ ही मां-बाप उसको लेकर हजारों सपने संजोने लगते हैं। रांची की किक्की सिंह ने जब जन्म लिया, तो परिवार खुशियों से भर गया। लेकिन जब किक्की बड़ी हुईं, तो परिवार को पता चला कि उनको सेरेब्रल पाल्सी बीमारी है, जिस कारण वो कभी चल नहीं पाएंगी। पर परिवार ने हार नहीं मानी और किक्की का लालन-पालन बेहद ढंग से किया। आज किक्की एक अच्छी लेखिका हैं। उनका एक उपन्यास और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है। फिलहाल किक्की एक ऐसी कंपनी खोलने की दिशा में काम कर रही हैं, जिसमें समाज में उपेक्षित लोगों को ही काम दिया जाएगा, जिससे वो आत्मनिर्भर हो सकें।

किक्की के पिता एयरफोर्स में थे। उनका तबादला गाजियाबाद हो गया और किक्की भी परिवार सहित गाजियाबाद आ गईं। यहां हिंडन एयरफोर्स में सर्विस के दौरान पिता ने एयरफोर्स स्कूल में उनका एडमिशन कराना चाहा, लेकिन स्कूल प्रशासन को डर था कि कहीं इससे अन्य छात्रों को कोई हानि न हो, क्योंकि एक अन्य दिव्यांग छात्रा कई बार छात्रों और टीचर को चोट पहुंचा चुकी थी। ये 2001 की बात है। पिता की गुजारिश पर स्कूल की स्पेशल मीटिंग हुई। प्रिसिंपल ने किक्की का इंटरव्यू लिया और पाया कि उनके अंदर पढ़ने की ललक है और उनको कोई मानसिक विकार भी नहीं हैं। उनको एडमिशन दे दिया गया। पहली क्लॉस में किक्की ने टीचरों को तब चौंका दिया जब, मैथ, जीके और कंप्यूटर के स्कूल टेस्ट में उन्होंने सौ में से सौ अंक प्राप्त किए। उनके प्रदर्शन से टीचरों को भरोसा हो गया कि ये लड़की खूब आगे बढ़ेगी। कक्षा एक से छह तक पढ़ाई किक्की ने एयरफोर्स स्कूल हिंडन से पूरी की।

छोटी उम्र में ही किक्की समझने लगी थीं, उनको आगे बढ़ने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। जब वो कक्षा चार में थीं, तो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने कविता, कहानी लिखना शुरू किया। लेखन से नजदीकी बढ़ाने की एक वजह ये भी थी कि उनकी बीमारी की वजह से लोग उनको ताने मारा करते थे। किक्की छोटी सी उम्र में दुख और बदकिस्मती की परिभाषा बहुत अच्छे से समझ चुकी थीं। लोगों के तानों के कारण वे अपना मानसिक संतुलन ना खो बैठे इसलिए कोरे पन्नों और कलम से दोस्ती कर अपने मन की भावनाएं कहानी, कविताएं एवं लेखों के रूप में उन पर लिखने लगीं और इस तरह चौथी कक्षा से किक्की ने लेखन की शुरुआत की। चौथी कक्षा से ही उनकी रचनाएं अखबारों में प्रकाशित होने लगीं। हिंडन एयरफोर्स स्कूल में कक्षा छह तक उन्होंने पढ़ाई की। 2007 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद पिता रांची शिफ्ट हो गए, तो परिवार समेत वे रांची चली गईं। आगे की पढ़ाई उन्होंने रांची से पूरी की। रांची यूनिवर्सिटी से किक्की ने 2018 में ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद 2020 में पॉलटिकल साइंस से एमए किया।

प्रकाशित हो चुकी हैं दो पुस्तक
2018 में किक्की का लिखा उपन्यास ”शादी का सपना” प्रकाशित हुआ, जिसे खूब सराहा गया। डायमंड बुक्स से प्रकाशित इस उपन्यास की साहित्यकारों से लेकर नेताओं तक ने तारीफ की। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसका विमोचन किया। हाल ही में 2021 में उनका कविता संग्रह ” तेरा नाम का ‘ प्रकाशित हुआ है जिसका विमोचन शरद पवार द्वारा किया गया। किक्की के उपन्यास को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सराहा और उन्हें सम्मनित किया। उनकी लेखनी को देखते हुए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। झारखंड की गर्वनर द्रौपदी मूर्म, सांसद संजय सेठ समेत अनेक नेता उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। बॉलीवुड के गीतकार संतोष आंनद भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, रांची प्रेस क्लब, डायमंड अचीवर्स अवार्ड समेत उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं।

समाज के लिए कुछ अलग करने की तैयारी में किक्की
किक्की बेशक दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले बेहद बुलंद हैं। किक्की एक ऐसी कंपनी खोलने की तैयारी में, जिसमें केवल समाज के ऐसे लोगों को रोजगार दिया जाएगा, जो समाज में उपेक्षित हैं। किक्की का कहना है कि हमें हारना नहीं है, आगे बढ़ना है और समाज को आगे ले जाना है। अगर हम परेशानियों से हार मान लेंगे, तो जिंदगी से हार जाएंगे।

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