एक डाकू था। उसका नाम था रत्नाकर। उसे एक भीलनी ने पाला था। लोगों को लूट कर वो अपना घर चलाता था। शादी हो चुकी थी, बच्चे भी थे। एक दिन रत्नाकर जंगल से गुजर रहा था, उसने कुछ साधुओं को देखा। उसे लगा आज इन्हें ही लूट लेता हूं।
वो साधुओं के पास पहुंचा। साधुओं के पास कुछ कीमती सामान तो था नहीं। रत्नाकर ने सोचा, इन लोगों की हत्या ही कर देता हूं। वो साधुओं को मारने के लिए आगे बढ़ा तो एक साधु ने उससे पूछा कि तुम ये सब पाप कर्म किस लिए करते हो। रत्नाकर ने कहा, अपनी पत्नी और संतान का पेट पालने के लिए।
साधुओं ने फिर पूछा- इस पाप का मृत्यु के बाद या भविष्य में तुम्हें जो दंड भुगतना पड़ेगा, क्या उसमें तुम्हारा परिवार साथ देगा। रत्नाकर ने कहा, पता नहीं। साधु ने कहा- जाओ पहले अपनी पत्नी और संतान से ये तो पूछ कर आओ कि जिनके पालन-पोषण के लिए तुम इतने पाप कर रहे हो, वो उन पापों की सजा में तुम्हारे भागीदार बनेंगे भी या नहीं।
रत्नाकर ने कुछ विचार किया और फिर परिवार से पूछने के लिए चल पड़ा। उसने घर पहुंच कर अपनी पत्नी और बच्चों से पूछा कि जो पाप किए हैं, उसमें वो भागीदार बनेंगे कि नहीं। पत्नी और बच्चों ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने जवाब दिया कि ये पाप तो आपके हैं, आप कर रहे हैं, इसमें हम क्यों भागीदार बनें। हमें पालना-पोसना आपकी जिम्मेदारी है, लेकिन हम में से किसी ने आपसे ये नहीं कहा कि आप लूटपाट या हत्या करके धन कमाइए।
रत्नाकर जवाब सुनकर फिर साधुओं के पास लौट आया और सारी बातें बताईं। साधुओं ने कहा, सोचो तुम्हारे कर्मों में वे भी हिस्सेदार नहीं बनना चाहते, जिनके लिए तुम ये सब कर रहे हो। रत्नाकर ने कहा, महाराज फिर मैं क्या करूं, कैसे मुझे मेरे पापों से मुक्ति मिलेगी। साधुओं ने रत्नाकर को राम नाम दिया और कहा- इसका दिनभर जाप करो, इससे पाप मिटेंगे। रत्नाकर पढ़ा-लिखा तो था नहीं, साधुओं के जाने के बाद ही वो नाम भूल गया और राम-राम की जगह मरा-मरा जपने लगा।
लेकिन, फिर भी उस नाम जाप का असर हुआ और आगे चलकर ये ही रत्नाकर आदि कवि वाल्मीकि बने। जिन्होंने रामायण लिखी।
सीखः संत-महात्मा और ज्ञानी लोगों की सलाह मान लेना चाहिए, इससे कल्याण ही होता है। रत्नाकर ने साधुओं की सलाह मानी और अपने परिवार से पूछने चला गया कि उसके पाप में कोई भागीदार बनेगा या नहीं। इस सलाह ने ही उसका पूरा जीवन बदल दिया।