खोजी यात्रा वृतांत बचेली की सैर…छत्तीसगढ़ बस्तर के चर्चित अन्तर्राष्ट्रीय खोजी लेखक युवा हस्ताक्षर विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर की स्पेशल स्टोरी… दंतेवाड़ा का छोटा शहर की यात्रा आधारित अनछुई कहानी में चुभते प्रश्नों के बीच सफर की दास्तान

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यूं तो छत्तीसगढ़ का नाम लेते ही एक ऐसी तस्वीर सामने आती है | जिस तरह से जो बस्तर की तस्वीरें देश दुनिया के सामने पेश की जाती है | वह जो लाल लकीरों से घिरी हों और यत्र तत्र खून से लथपथ तस्वीरें मन के सामने घूमने लगती हैं | खासकर छत्तीसगढ़ के बाहर के लोग तो बस्तर के लोगों को बड़े शक नीयत और संदेह भरी नजरों से देखते हैं,परन्तु उन्हें देखकर भी पहली दफा विश्वास नहीं होता है तो कई बार तो तस्दीक तक कर लेते हैं कि वाकई छत्तीसगढ़ का बस्तरिया है या नहीं | बस्तर नक्सलवाद के मांद के रूप में जाना जाता है | यहां का आम बस्तरिया आज भी संदेह के दायरे में है | वह आज भी अपने आप को नक्सली माने जाने के डर से कई बार डर कर शहरों की ओर भी नहीं आता है | परिणति आज तक अंदरूनी कई गांवों के कई लोगों के आधार कार्ड तक नहीं बने हैं,साथ प्रयाप्त संसाधन के अभाव में आधार कार्ड बनाना भी प्रशासनिक अमला के लिए बहुत तकलीफ देह हो जाता है, कई लोग चल फिर नहीं सकते हैं तो कई शहर तक पहुंच नहीं पाते हैं |यह अलग बात है कि हम अनभिज्ञ बनते हैं पर ग्रामीण प्रशासन को तक यह बात अच्छी तरह से पता होता है | पर करें तो क्या करें लक्ष्य और विकास जैसे शब्द ग्रामीण जीवन पर भारी पड़ जाते हैं | जिससे यह बात कतई साबित नहीं होती कि वो दूसरी विचार धारा का पक्षधर हैं | यह उनकी हम सभ्य और शिक्षित लोगों द्वारा थोपी गई पूर्वाग्रह है |बल्कि ऐसे गांवों का व लोगों का चिन्हांकन कर आधार कार्ड और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आगे आना आम बस्तरिया की नैतिक जिम्मेदारी तो बनती ही है | आज भी लोग छत्तीसगढ़ के बस्तर में अथाह वन संपदा के बीच गरीबी और बेकारी की मार झेल रहे हैं | यहां पर्याप्त शिक्षा व्यवस्था और स्थानीय संसाधनों से आर्थिक आजादी का आंदोलन चलाने की आवश्यकता समय की मांग है | बचेली और आस पास के इलाकों का तटस्थ होकर अध्ययन किया जाय तो कई बातें सामने आती हैं | बचेली के आसपास अंदरूनी इलाके और बस्तर की यात्रा पर सब कुछ हूबहू दिखता है | बस्तर अकूत वन संपदाओं और जैव विविधता की खान है | पूरी दुनिया में अपनी तरह का इकलौता क्षेत्र है जो हर किसी के दिल को भा जाता है,रमा जाता है,वश में कर तर कर देता है,सराबोर कर देता है इसलिए तो यह पावन माटी बस्तर है | ग्रामीण जन जीवन के साथ ही यहां की लोक संस्कृति और वन,नदी,पहाड़,झरने,घाटियाँ आदि किसी के भी मन को लुभा जाती हैं |

बस्तर के जनजातीय समाज और लोक संस्कृति की बात करते हुए जब बस्तर की वादियों का लुफ्त ना उठायें तो वह पल तो निसंदेह पीड़ादायी होगी | इन आँखों में छलकते दुख के बीच भी मरहम लगे कई दास्तांन हैं,हम अल्हड़ बस्तर की खोज में आज बस्तर के बचेली की ओर निकलते हैं तो मन मोर नाच उठता है और वह कैसे आइये आपको भी ले चलते हैं -,

समय दोपहर के बाद | गाड़ियों के पहिये कोंडागांव से दंतेवाडा़ के लिए सरपट दौड़ते हुए दंतेवाडा़ की पावन माटी की सौंधी खुशबु से सराबोर हो जाते हैं | जीवनदायिनी शंकनी डंकनी तट पर आदिशक्ति जगदंबा पीठ पर दंतेश्वरी मांई जी के दर्शन कर हम अपने अपने दायित्विक कार्यों में लग जाते हैं | सच कहें तो मन तो मांई के ईर्द गिर्द ही घूम रहा था,पर जिस काम के लिए आये थे वह जरूरी था | फिर हम वहां से निकलकर दंतेवाडा़ के बस स्टैंड पर चाय की चुस्कियों और मलाई पुड़ी के लजीज अजीज स्वाद के साथ हम वहां के स्टाफ के साथ कार्य क्षेत्र की बातों में उलझ जातें है,जैसा कि प्राय: दो चार छोटे कर्मचारी मिल जातें तो कैसी चंडाल चौकड़ी सजती हैं विचारों के | फिर मन में कुछ विचार मंद मंद मुस्कुराते हैं कि सभी हमारे जैसे नहीं होते | तभी अचानक से हमारे आफिसर चाय की तश्तरी टेबल पर रखकर उठ जाते हैं और यह कहकर हमें छुट्टी दे देते हैं कि जाओ तुम बचेली की सैर कर आना तब तक हम अपना शहर से काम निपटा लेते हैं | वैसे सुनकर तो सुखद आश्चर्य भी होता है कि आफिसरों के रौब होते हैं | दो चार कर्मचारी आगे पीछे घूमें तभी लगता है कि ये आफिसर हैं,पर ये क्या! ये तो अजीब वाकया हो गया | हमारे साहब,अपनी गाड़ी हमको देकर वहां से मिलने आये स्टाफ की मोटरसाइकिल पर चलते बने | हमें भी लगा कि चलो पहली बार किसी नेक अफसर से पाला पड़ गया | और आफिसर अच्छे हों तो दिलेर से तारीफ भी तो करनी चाहिये | पर नसीब और समय की बात है,सबके अच्छे दिन जरूर आते हैं | आप भी हमारी तरह स्टाफ हैं तो उम्मीद रखिये जरूर कोई ऐसा सिंघम आयेगा | और आप अधिकारी हैं तो आप बिलकुल हमारे साहब की तरह बनने की कोशिश कीजियेगा | फिर क्या था,हम भी चले बचेली की सैर करने के लिए,आप भी चलिये |

मांई जी की आंखों के किरण रज की तरह उंचे पहाडों के बीच सूरज की ढलती रोशनी की छटाओं के बीच दंतेवाडा़ के शहर और कस्बाई इलाके को पार करने के बाद हम वहां पहुंचते हैं वहां पर, जिस स्थान के बारे में सुना था कि घन घोर स्थल है | हम पहुंचते हैं सातधार चौक | सातधार चौक पर हमारे मित्रों के पुराने खट्टे और मीठे अनुभवों के साथ ही यहां कि सघन प्रकृति की वादियां मन मोहक के साथ-साथ यह भी संकेत करती हैं कि सुंदरता ही सबकुछ नहीं है बल्कि तटस्थ होना भी जरूरी है | सातधार चौक से सुरम्य वादीयों की खिलखिलाहट के बीच पक्षियों की चहचहाहट कलरव का अंतरिम आनंद प्राप्त करते हुए हम पहुंचते हैं ग्राम पंचायत गमावाड़ा | यूं तो ग्राम पंचायत गमावाड़ा प्रकृति की वादियों बसा हुआ है | फिर उसकी सुंदरता देखते ही बनती है,ठेठ बस्तरिया और ग्रामीण अंदाज | जहां कि देवगुड़ी का सौंदर्य प्रकृति और कलाकृति का मिश्रण हो गया है | मन रम जाता है घंटो यूं ही चुपचाप मौन बैठने का मन करता है | फिर बचेली देखने की आतुरता भी अपनी ओर खींच लेती है।

चलते हुए,हम शाम की अंधेरे में और झुरमुठों के बीच सूरज और चांद की धीमी रोशनी के बीच सघन वनों और पहाड़ियों में सरपट दौड़ने की खुशी एक पल के लिए आँखों में डर भी पैदा कर देता है कि यह इलाका तो संवेदनशील क्षेत्र है | पर ऐसा कुछ भी नहीं है | भाव तो हर किसी के मन में आते और जाते रहते हैं | फिर मन का लगाव बचेली की और चलने लगता है | हमारी गाड़ी पहाड़ी में आसमान में चमकते सितारों की तरह एक ऐसे बेहद खूबसूरत और मंत्र मग्ध कर देने वाले शहर में जाकर पहिये रूक जाते हैं | फिर महानगरों की शैली में बने कुछ मकान होटल और कैफे किसी का भी मन मोह लेते हैं | दूर जंगल के बीच और पहाड़ी की उंची चोटियों में आधुनिक जीवन शैली में मदमस्त लोग | ऐसा कहीं भी नहीं लगता है कि हम बस्तर में हैं | गार्डन और दक्षिण भारतीय शैली के इडली डोसे के बड़े होटल व रोस्टोरेंट बचेली की शान हैं | वहीं मुख्य मार्ग पर धूलखाती गाड़ियां और खस्ताहाल सड़क देखकर मन मे यह विचार आता है कि जब व्यक्ति मदमस्त होता है तो दरवाजे पर कौन है यह देखना भी भूल जाता है | युवक युवतीयों के आधुनिक जीवन शैली से लबरेज और मंहगी जीवन शैली आपको किसी बड़े महानगर में होने का एहसास कराती हैं | यहां के लोग भी महानगरों की तरह अपने काम मे मदमस्त और गुमसुम लगते हैं | छत्तीसगढ़ सहित पूरे हिन्दुस्तान व विदेश से भी लोग यहां नौकरी करते हैं | यह स्वाभाविक है कि यहां कि जीवन शैली भारत की विविधता में एकता के दर्शन कराती हैं | इसे यहां कि लोक संस्कृति को देखते हुए छोटा हिन्दुस्तान कहा जा सकता है | सभी नेक और अच्छाई कूट कूट कर भरी हुई है | फिर हम जिस इलाके में यह सोंच रहे थे वहां के दरबान ने हमें समय होने और रात को गेट बंद होने का संकेत दिया और हम गंतव्य की ओर चल पड़े |

फिर,हमारी गाड़ी एक साधारण से सरकारी क्वाटर में जाकर रूकी | हमे बताया गया कि हमारे लिये वहां पर भोजन का प्रबंध किया गया है | हम मेन दरवाजे से जैसे ही दाखिल हुए हाथ में पानी लेकर हमारा परिवार स्वागत कर रहा है | परिवार हो तो ऐसा | सहज शालीन और सम्यक | अपने परिवार में होने का बोध हुआ हमें | बस्तर और बचेली की विभिन्न सुख दुःख के पहलूंओं पर विचार मंथन करते हुए हमने भोजन ग्रहण कर लिया | औपचारिक और अनौपचारिक खानापूर्ति के बीच मन में सुकून भरे अपनत्व के एहसास के साथ बचेली से निकलना जरूरी था | फिर,कभी आने और मिलने मिलाने के वादों के साथ विदा हुए | फिर,हमारे मित्रों के अनुसार ड्रायवर साहब की गाड़ी सड़क पर जाने लगी |

बचेली की वो सुहानी शाम रह-रह कर मन में हिलोरें लेने लगती हैं | बस्तर और बस्तर की वादियां मन को लुभाती,बुलाती हैं | बहुत याद आती हैं,,,,,वो सुहानी शाम में बचेली की सैर |
*©®✍🏽विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़

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