बुदरू आज बहुत शांत और प्रसन्नचित मुद्रा में है,सामने घर की छोटी सी बगिया में बैठकर कर कहां खो गया है,शायद उसे गांव याद आ रहा होगा,जब वो गांव में रहता था,खेला कूदा हंसी ठिठोली किया तब जीवन की वास्तविक छबि को करीब से देखा होगा | जीवन के सफर ने शहर तक पहुंचा दिया, पर गांव तो गांव है,शीतल छांव,अपना पन अजीब सा लगाव |
आखें बंद हैं,चेहरे पर खुशी की चमक है,(बुदरू सोंच रहा है……) चारों ओर छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरा,हरियाली से आच्छादित गांव,नदी की कल-कल,छल-छल बहती जल धाराएं | तट पर चरते,भेड़,बकरी,बैल,भैंसे, रंभाती दौड़ती गायें | चरवाहे की दहाड़ पेड़ों पर बच्चों के झुले और उछल कूद खेल,कभी दौड़ना कभी पदाना | गांव की युवतियों का मटकी लेकर पानी के लिए आना,लचकती कमर मटकते पांव,बनिहारों के खेतों की ओर जाना,किसी का चिल्लाना,इतराना फिर हंसी ठाहकों में गुम हो जाना,पेड़ों पर चिड़ियों का चहचहाना,कौवे की कांव-कांव तो कोयल की कूहू-कूहू का समानांतर ध्वनिवाद जैसे कोई सांगीतिक प्रस्तुति की छटा बिखेर रही हो,कोलाहल से दूर मांथ की थाप और रेला की मंद- मंद ध्वनित होना जैसे गांव की सुहागिनों द्वारा खुशियों के मंगल गीत गा रही हैं,मन खुले आसमान के नीचे जी भर कर थिरकने को मन करता है, गांव उन्मुक्त जीवन पद्धति का वो सुनहरा नाम है |
चौराहे पर बरगद पीपल के पेड़,पेंड़ पर चिड़ियों का फलों को कुतर-कुतर कर फेंकना,गिराना,बंदरों का गांव में धमक तो कबूतरों उड़ता गुटुर गुटूर करता हूजूम,तालाब पर सारस की चमक,नाव पर बैठा नाविक, मछली पकड़ता मछुआरा,खलिहानों में बाली की महक,वट और पीपल के चारों ओर लिपटी धागायें,मां वट सावित्री के पुजारन सुहागिनों के असंख्य दास्तान गा गाकर सुना रही हों,बरगद के नीचे चौपाल पर गांव के बुजुर्गों की महफिल,चोंगा,बीड़ी और माचिस की तिकड़ी के बीच,गोटे की तम्बाकू की तलब,मुखिया जी का चौपाल पर सयानी मुंछें ताव पर रखकर एक से बढ़कर एक दांव पेंच की बातें सुनाना मन को मोह लेता हैं |
घर में दादी की दहाड़, बहुओं की खुसुर फुसुर,बच्चों का पिपरमिंट और हाट के गुल गुल भजिया के लिए हल्लाबोल,दादी का डंडा और गांव का पंडा दोनों की घंटो बैठक पर पुराण पर चर्चा | भुँजवा के चने और चूड़ी वाले का चूड़ी ले लो,दर्जी का झोला, रमलू काका के होटल का गरमा गरम टमाटर की चटनी और भजिया,चटखारे के साथ खाना और नदी में डुबक डुबक कर नहाना,भाईयों के साथ छुट्टी पर खेतों में काम करना, बहुओं का खेतों पर पेज लेकर जाना,नमक मिर्च की चटनी और कटी प्याज, न कोई उधार न कोई ब्याज |
होली पर हुड़दबंग हमीद एंथोनी हरजिंदर विवेक के साथ मस्ती,नफीसा,आयशा,करमजीत,सुमन की दोस्ती,एक वो भी था जमाना,जब अपनी सी खुशबू थी अपना सा था नजराना |
सायकिल था खटारा,बोरी में रखते थे पिटारा, हम दोस्त जात धरम अलग भले थे,पर हम में भारतीयता कूट कूट कर भरे थे | मंगलू को सांप काटा,शेख हकीम दवाई लाता,विलियम्स दर्द से कराहता बीरबल पीठ दबाता,तेजिन्दर की लारी बिगड़ी,सब मिलकर धक्का लगाते खिचड़ी | किसी से कोई बैर था,न किसी का कोई दुश्मन, सब गले लगाकर बरकत करके जन-मन | एक वो भी नजरिया था, गांव का जीवन बढ़िया था |
अचानक सामने रखी मोबाइल बजने लगती है,बुदरू काल उठाता है… अंदर से आवाज आती है,…सुनो जी,कितनी देर बैठे रहेंगे बगीचे में बोर नहीं लगता क्या,जाकर बैठ देते हैं,घंटे भर हो गया,आफिस नहीं जाना क्या… ‘ | सामने बगीचे के फूल लह लहा मुस्कुरा रहे हैं | फूलों को देखकर बुदरू मन ही मन कहता है- एक वो भी था जमाना |
बीती यादों के झुरमुटों से निकल कर,फिर निकल पड़ा जिंदगी की पगडंडी पर रोज की तरह मंजिल को पाने खुशियों तलाश में |
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़
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