सुप्रीम कोर्ट:घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक महिला पति के रिश्तेदारों के घर में रहने की मांग कर सकती है, घरेलू हिंसा पीड़ित बहू को सास-ससुर के घर में रहने का भी हक

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सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अगर यह घर ससुराल वालों द्वारा किराए पर लिया गया है या उनका है और पति का इस पर कोई अधिकार नहीं है तो भी बहू को बाहर नहीं किया जा सकता
इससे पहले वर्ष 2006 के फैसले में दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि पत्नी केवल एक शेयर्ड हाउसहोल्ड में रहने का दावा कर सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा एक्ट में शेयर्ड हाउस होल्ड की परिभाषा का दायरा बढ़ाते हुए अपने एक फैसले में कहा है कि बहू का सास-ससुर के उस घर में रहने का हक है जिसमें वह अपने संबंधों के कारण पहले रह चुकी है।

उसे पति या परिवार के सदस्यों द्वारा साझा घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। यह फैसला 15 अक्टूबर को जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्‌डी और एम आर शाह की पीठ ने सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट की चार सदस्यीय पीठ ने घरेलू हिंसा से जुड़े मामले में कहा कि इस देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा होती है और हर महिला को इसका कभी न कभी सामना करना पड़ता है।

2005 में घरेलू हिंसा कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस देश में इस कानून को लागू करना महिलाओं की सुरक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा है कि एक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उस घर में भी रहने का अधिकार मांग सकती है, जो सिर्फ उसके पति का नहीं बल्कि साझा परिवार का हो और जहां वह अपने रिलेशन की वजह से कुछ समय के लिए रह रही हो। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अगर यह घर ससुराल वालों द्वारा किराए पर लिया गया है या उनका है और पति का इस पर कोई अधिकार नहीं है तो भी बहू को बाहर नहीं किया जा सकता।

उम्मीद की जा रही है कि इस फैसले की महिलाओं की दशा सुधरेगी।
अदालत ने कहा है कि ”एक महिला अपनी जिंदगी में एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी, एक मां, एक साथी या एक महिला के तौर पर हिंसा और भेदभाव का सामना करती हैं। वह इसे अपनी किस्मत मान लेती हैं। यहां तक कि सामाजिक कलंक के डर से घरेलू हिंसा के ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट कभी नहीं की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के रिश्तेदारों के घर में भी रहने की मांग कर सकती है जहां वह अपने घरेलू संबंधों के कारण कुछ समय के लिए रह चुकी हो। शीर्ष अदालत ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (एस) में दिए गए ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ की परिभाषा का मतलब सिर्फ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि संयुक्त परिवार है और पति एक सदस्य है या उस घर में महिला के पति की हिस्सेदारी है। इससे पहले वर्ष 2006 के फैसले में दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि पत्नी केवल एक शेयर्ड हाउसहोल्ड में रहने का दावा कर सकती है।

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