रचनात्मक पढ़ाई से सुर्खियों में आए नवाचारी शिक्षक की प्रेरणादायी कहानी…बाइक पर छतरी,चॉक और डस्टर लिए जैसे ही घंटी बजाते है, सभी बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए इस क्रिएटिव क्लास का हिस्सा बन जाते है

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रायपुर:आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है।। कोरोना काल मे एक शिक्षक का नवाचारी प्रयोग इन दिनों काफी सुर्खियों में है। मन में यदि अपने काम के प्रति जज्बा हो तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं है। आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के नवाचारी शिक्षक रुद्र प्रताप सिंह राणा के बारे में। बाइक पर छतरी, चॉक और डस्टर लिए राणा जैसे ही घंटी बजाते हैं, सभी बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए इस क्रिएटिव क्लास का हिस्सा बन जाते हैं। शिक्षक राणा, कोरिया जिले के विकासखंड-खड़गवां, शा.प्रा. शाला सकड़ा में पदस्थ है। सभी विद्यार्थियों को इस रचनात्मक पढ़ाई से काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। बच्चों ने भी पूरे उत्साह से अपने शिक्षक का भरपूर सहयोग किया है।

गृह ग्राम – परासी (मरवाही ) जिला —गौरेला -पेंड्रा -मरवाही है। पिताजी श्री अमर सिंह राणा (सेवानिवृत्त शिक्षक) ने बचपन से ही अनुशासन का पाठ पढ़ाया है। माता जी श्रीमती पार्वती सिंह के दिये हुए संस्कार सभी परिस्थितियों में मार्ग प्रशस्त करता है। घर का माहौल शुरुआत से ही शिक्षामय रहा है।

प्रेरणा
राणा जी बताते है कि “मेरे पिता जी श्री अमर सिंह राणा, जिन्हें आज भी श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में सम्मान प्राप्त होता है, उनकी परंपरा को आगे बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है। साथ ही बगैर किसी विशिष्ट योग्यता के इस गरिमामय पद पर पहुँचना बेशक ईश्वर की असीम कृपा है। इस सेवा कार्य को निष्ठापूर्वक करना है। मेरे इस सफर में मेरे प्रेरणा स्रोत हैं श्री राम ललित पटेल जी (मेरे पूर्व BEO ,प्रतापपुर), श्री दीपक राजदान (डाइट कोरिया) सुश्री आई संध्या रानी जी (SCERT ,रायपुर), श्री जितेंद्र गुप्ता जी (ABEO खड़गवां) , श्री राजकुमार चाफेकर जी (APC कोरिया), श्री अली मोहम्मद जी (ब्याख्याता अंग्रेजी) शशि भूषण पाण्डे (साथी शिक्षक) अश्फाक उल्ला खान (जिन्होंने हमारे विद्यालय की गतिविधियों को प्रचारित किया)

उद्देश्य :—कोविड 19 के बढ़ते संक्रमण से स्वयं को एवं बच्चों को सुरक्षित रखते हुए अधिक से अधिक बच्चों को सीखने -सिखाने की प्रक्रिया से जोड़े रखना ।

संदेश
देश मे सभी घरों में कोई न कोई पढ़ा -लिखा (शिक्षित )है। हम- आप मिलकर सिर्फ इतना कर लें कि हमारे पड़ोस अथवा मोहल्ले के सारे बच्चों को एक निर्धारित समय (10:00 से 01:00 अथवा सुविधानुसार) पर किताब लेकर बैठने की आदत डालें। हो सके तो ऐसी जगह बैठाएं की मोहल्ले के अन्य बच्चे भी उसे पढ़ते हुए देख पाएं, ताकि उसे देख अन्य बच्चे भी प्रेरित हों। फिर पालक अथवा मोहल्ले के नवयुवक- युवतियाँ सीखने की प्रक्रिया में उनकी मदद करें। शिक्षक अलग अलग मोहल्ले में जाकर इस प्रक्रिया को कर सकते हैं। बस इतना ध्यान रखना होगा कि हम सुरक्षा नियमों का पालन जरूर करें।

सुझाव
आज शासकीय विद्यालयों के प्रति लोगों का नजरिया सकारात्मक नहीं है, क्यों? क्या हमारे शिक्षक ईमानदारी से प्रयास नही कर रहे हैं ? नहीं!इसका कारण सिर्फ एक है कि बच्चे विद्यालय में जो सीख रहे हैं वह समाज को दिख नही पा रहा है। उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नजर नही आ रहा है। इनके लिए आवश्यक है बच्चे जो सीख रहे हैं दैनिक जीवन में उसका उपयोग करे। आय- व्यय का हिसाब, अंग्रेजी शब्दों का घर मे उपयोग, किताबों में लिखे कहानी – कविताओं को घर पर सुनाना आदि के लिये प्रेरित करें, ताकि उनके आत्मविश्वास एवं अभिब्यक्ति कौशल में विकास हो। अगर हम ऐसा कर पाए तो निश्चित ही शिक्षकों का खोया हुआ सम्मान पुनः प्राप्त कर सकते हैं।

पारिवारिक विवरण
मेरे परिवार में 4 बहनें श्रीमती हितकारिणी सिंह (प्राचार्य ,गोल्ड मेडलिस्ट ), श्रीमती सुधा सिंह (शिक्षिका), श्रीमती सत्या सिंह (शिक्षिका), श्रीमती अनामिका सिंह व्याख्याता) एवं भाई श्री मृगेंद्र सिंह राणा भी शिक्षा विभाग में निष्ठापूर्वक अपनी सेवा दे रहे हैं। मेरे अतिरिक्त सभी पढ़ाई में अव्वल थे ।11 वर्ष की उम्र में ट्रेक्टर चलाना सीख गया और किसान बन गया था इस कारण विद्यार्थी जीवन मे पढ़ाई की ओर रूझान कम था। संगीत में विशेष रुचि। जब भी कहीं स्टेज प्रोग्राम देने जाता था तो पिता जी से डांट पर माँ का सपोर्ट प्राप्त होता था।

नवाचारी शिक्षक रुद्र प्रताप सिंह जिस भी मोहल्लों में मोहल्ला क्लास लेने जाते है, तो सबसे पहले मोहल्ला पहुंच कर अपनी मोटरसाइकल को स्टैंड पर खड़ा कर घंटी बजाते है। जिसे सुन कर मोहल्ला के सभी बच्चे अपने-अपने घरों के किताब व कापियां लेकर बाहर आ जाते हैं। सभी बच्चे निश्चित दूरी पर चटाई बिछाकर बैठ जाते हैं।सत्यदर्शन लाइव चैनल नवाचारी शिक्षक रुद्र प्रताप सिंह के प्रेरणादायी शिक्षकीय कार्य की प्रशंसा करता है।

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