रायपुर :जीत क्या है,कोशिश के बाद मिलने वाला एक अहसास।हार क्या हैं,कोशिश के बाद मिलने वाली एक और अहसास।इन सारे अहसासों में बस एक सच है,और वो है कोशिश।आज हम बात करेंगे पूजा देवांगन से, जो अभी आरक्षक के पद पर दूरसंचार पुलिस भिलाई में पदस्थ है।
डोंगरगढ में माँ बम्लेश्वरी के गर्भगृह में ड्यूटी के तैनाती के दौरान 2 अक्टूबर को एक लकवाग्रस्त वृद्ध महिला जो कि अस्थमा से पीड़ित भी थीं, उन्हें गोदी में उठाकर 100 सीढ़ियों के फ़ासला तय कर माता के दर्शन को दरबार तक ले गई,व वापिस उतनी ही सीढ़ी उतर कर उन्हें प्राथमिक उपचार केंद्र तक पहुँचाया।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
चंगोराभाठा रायपुर के मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली पूजा देवांगन के पिताजी श्री दुर्गेश देवांगन प्राइवेट जॉब करते है।माताजी श्रीमती मंजू देवांगन गृहणी है, जो हमेशा प्रेरित करती है।सफलता का सारा श्रेय माताजी को ही जाता है।जो समय समय पर उत्साहवर्धन करते रहती है।
शिक्षा
इलेक्ट्रॉनिक एंड टेलीकम्युनिकेशन शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय,जगदलपुर से है।
आदर्श
प्रत्येक व्यक्ति के सफलता के पीछे एक गुरु का हाथ जरूर होता है ,जिसे हम कोच कहते है जिनके अनुशासन और सही मार्गदर्शन से ही सफलता सम्भव है।फिजिकल ट्रेनर सुश्री अनिता यादव के अथक मेहनत और भरोसा से ही आज सफलता सम्भव हो पाया है।
संघर्ष
पूरे परिवार में पहला शासकीय नौकरी में पदस्थ पूजा देवांगन काफी संघर्षों से जूझते हुए आगे बढ़ी है।60 से भी अधिक एग्जाम दिलाई है।निराशा भी हाथ लगा लेकिन मन मे एक ही लय मुझे कुछ करना है,परिवार के लिए समाज के लिए अंतर्मन की आवाज सुनकर आगे बढ़ी।
साहित्य
मन के किसी कोने में अपने भावों को शब्दों में पिरोने का बचपन से ही उद्देश्य रहा।उड़ती चिड़ियों के बारे में लिखना या फिर प्रकृति के अनकही बातो से बात करना।कविता कहानियां से शुरू से ही लगाव रहा है।
सम्मान
इंद्रधनुष सम्मान(पुलिस विभाग), माननीय गृह मंत्री के द्वारा प्रशंसा पत्र,सामाजिक मंचो द्वारा सम्मान
सन्देश
संघर्ष करते हुए नवयुवकों को यही कहना चाहूंगी कि अपने लक्ष्य से कभी नही हटे।सफलता असफलता को दरकिनार करके केवल अपने कर्म के ऊपर भरोसा रखे।निरंतर प्रयास सफलता का मूलमंत्र है।
सपना
शिक्षा का मतलब तब रहता है जब हम किसी जरूरतमंद व्यक्ति का सहयोग करे।मानवता हमारा पहला धर्म हो।अमीर गरीब की खाई को हम मिटा दे।मानव सेवा ही मुख्य उद्देश्य बगैर किसी स्वार्थ के।न प्रशंसा की चाह बस खुद को सेवा की राह में लेकर जाए।