शहीदों की विधवाओं की जिंदगी संवारने वाली महिला की प्रेरणादायक कहानी

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जब सुभाषिनी वसंत ने शहीद पत्नियों के साथ एक प्रोजेक्ट के तहत फंड जुटाने के लिए बेंगलुरु में कॉर्पोरेट्स के पास जाने की कोशिश की, तो यूनाइटेड ब्रेवरीज ग्रुप में मिले एक अधिकारी के ने उनसे पूछा कि क्या हम इस समारोह में बियर सर्व कर सकते हैं।

वे चुपचाप वहां से चली गईं। लेकिन ये सोचने पर मजबूर हो गईं कि साउथ इंडिया में शहीदों की पत्नियों को लेकर जागरूकता कितनी कम है। वे शहीद जिन्होंने अपने देश के लिए जान की बाजी लगा दी, उनकी पत्नियों को जो सम्मान मिलना चाहिए, वो आज भी यहां नहीं मिला है।तभी सुभाषिनी ये ठान लिया कि वे शहीदों की विधवाओं के हक में काम करेंगी। इसी विचार के साथ उन्होंने आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत की। ये संस्था कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली जवानों की विधवाओं की मदद के लिए बनाई गई है।

सुभाषिनी के पति कर्नल वसंत वेणुगोपाल जम्मू-कश्मीर में 31 जुलाई, 2007 में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। पति की मौत के तीन महीने बाद सुभाषिनी ने ”वसंतरत्न फाउंडेशन फॉर आर्ट्स” की नींव रखी जिसका मकसद शहीदों की विधवाओं की जिंदगी को नई राह दिखाना है।उनके लिए अपने फाउंडेशन के लिए पैसा जुटाना भी मुश्किल था। इसलिए उन्होंने ‘द साइलेंट फ्रंट’ नाम से एक नाटक लिखा, जो ऐसे शहीदों के लिए था, जिनकी शहादत की कहानी वक्त के साथ खो गई थी। इस नाटक को दिल्ली और बेंगलुरु में प्रदर्शित किया गया और जो राशि जमा हुई, उसे फाउंडेशन में लगाया।

सुभाषिणी शहीदों की विधवाओं को डांस, आर्ट, प्ले, एजुकेशनल प्रोग्राम आदि के माध्यम से उम्मीद की किरण दिखा रही हैं। वे कहती हैं शहीदों की पत्नियों को आर्थिक मदद के साथ-साथ उन्हें एक नए उद्देश्य की जरूरत भी है, उन्हें खुद स्टैंड लेने की जरूरत हैं। उनकी संस्था की मेंबर्स सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में महिलाओं की मदद करती हैं।

सुभाषिनी बेंगलुरु की रहने वाली हैं। वे एक क्लासिकल डांसर के तौर पर भी अपनी खास पहचान रखती हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकांश समय सदाशिव नगर में बिताया। उनके वैवाहिक जीवन के 15 सालों के दौरान वे 7 साल तक पति से अलग रहीं क्योंकि वसंत वेणुगोपाल की पोस्टिंग फील्ड में ही होती थी। इस दौरान परिवार से मिलना उनके लिए मुश्किल होता था।

उसके बाद सुभाषिनी कर्नाटक के ग्रामीण इलाके के 30 परिवारों से मिलीं। वे कहती हैं मैंने इन जवानों के घर जाकर ये महसूस किया कि इनकी विधवा पत्नियों को सहारे की जरूरत है। तब मैंने सैनिकों की श्रद्धांजलि के रूप में कल्चरल सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम आयोजित किया।

अपने अनुभवों के आधार पर सुभाषिनी ने ये महसूस किया कि जवानों की पत्नियों को कानूनी और वित्तीय मदद मिलना चाहिए। तब उन्होंने पेगासस इंस्टीट्यूट के साथ बेंगलूरु के बाहरी इलाके में तीन दिन के शिविर का आयोजन किया।यहां वित्तीय, कानूनी, मनोवैज्ञानिक सलाह को सक्रिय मॉड्यूल में बदल दिया गया। उनके सराहनीय कामों के लिए 2016 में सुभाषिनी को ”नीरज भनोट पुरस्कार” से नवाजा जा चुका हैं।

सुभाषिनी के अनुसार आम महिलाओं की तरह जवानों की पत्नियां भी अपने पति के साथ रहते हुए घर की तमाम जिम्मेदारियों को निभाती हैं। बस यही उनकी दुनिया होती है। ऐसे में जब पति के शहीद हो जाने के बाद वे अकेली हो जाती हैं तो उनके जीवन में खालीपन घर कर जाता है। मैंने अपने प्रयासों के माध्यम से इस खालीपन को भरने की कोशिश की है

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