उम्मीद…जिन्दगी में दो ही विकल्प होते हैं,या तो छोड़ दो या चुनौतियां स्वीकार करो।पालोमी ने हालात से भागने के बजाय चुनौती स्वीकार करना बेहतर समझा…हादसे ने हाथ लिए,हौसला नहीं…आज दो मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट हैं, जिनका पूरा एडमिनिस्ट्रेशन वह खुद देखती हैं

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माता-पिता की इकलौती संतान, पूरे परिवार की लाडली पालोमी। उस वक्त 12वीं की छात्रा थी। गर्मियों में चचेरे भाई-बहनों के साथ छुट्टियां मनाने हैदराबाद गई थी। बालकनी में खेलते-खेलते हाथ में ली रॉड 11000 वोल्ट की हाईटेंशन लाइन से छू गई। इसके बाद छह महीने तक पालोमी अस्पताल में रही। उसके हाथ 75 फीसदी तक झुलस चुके थे। बहुत कोशिश के बाद भी दायां हाथ बचाया नहीं जा सका, उसे काटना पड़ा। हालांकि दूसरा हाथ भी जला, लेकिन उसे डॉक्टरों ने बचा लिया।

छह महीने बाद घर लौटी पालोमी ने पहले अपनी पढ़ाई पूरी की। हालांकि उनके लिए समझना मुश्किल था कि उन्हें हुआ क्या है। मम्मी-पापा की दी हिम्मत ने उनका हौसला बढ़ाया और वह हादसे को भुलाकर आगे बढ़ीं। चेहरे पर मासूमियत देख कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि इस प्यारी सी लड़की ने कोई दुख झेला होगा। पालोमी कहती हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा एक्सीडेंट मेरे साथ होगा, खैर हुआ। पर मेरे हादसे ने मेरे हाथ लिए, मेरा हौसला नहीं।

एमबीए इन फैमिली बिजनेस
कॉमर्स से ग्रेजुएट, फिर एमबीए इन फैमिली बिजनेस करने के बाद पालोमी अपने पापा भद्रेश पटेल का सहारा बनीं। दो मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट हैं, जिनका पूरा एडमिनिस्ट्रेशन वह खुद देखती हैं।पालोमी कहती है,जिन्दगी में दो ही विकल्प होते हैं, या तो छोड़ दो या चुनौतियां स्वीकार करो। मैंने हालात से भागने के बजाय चुनौती स्वीकार करना बेहतर समझा।’

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