किस्से कहानियां, बस्तर के युवा साहित्यकार विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता की कलम से…. *मंजू जी:मेरी नई पड़ोसन*

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कल अचानक रात के करीब 2 बजे पड़ोसन ‘मंजू’ जी का फोन आया कहने लगी कि- सर मुझे अस्पताल लेकर चलिये,मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है,मैं तो डर गया फिर तबीयत का सवाल है,उनको लेकर अस्पताल गया,’मंजू’ जी के सीने में दर्द चकराहट हो रहा था,मैंने अस्पताल पहुंचते ही गार्ड से पूछा- डॉक्टर साहब हैं क्या? उन्होने कहा- नहीं,आज एक डॉ साहब की शादी है,तो सारे स्टॉफ वहीं चले गये हैं,अब कल रविवार है तो जिनकी ड्यूटी है वो कल ही आ पायेंगे,आप इन्हें कल लेकर आ सकते हैं | मैंने उनकी तरफ देख कर कहा-देखते नहीं हैं,मैडम जी कितनी तकलीफ में हैं,वरना इतनी रात को इन्हें क्यों लाता अस्पताल में | गार्ड ने सहानुभूति जताते कहा- सॉरी,सर मैं कुछ करता हूं,वह भागकर अस्पताल के अंदर चला गया | अब तक हम अस्पताल के अंदर पहुंच चुके थे | ‘मंजू’ जी का दर्द कम नहीं हो रहा था,अब वो मेरे कंधों का सहारा लेकर चलने लगी थी,मैंने रिसेप्सन के एक बैंच पर बिठा दिया और एडमिशन की पर्ची कटवाने लगा | तभी गार्ड के साथ दो नर्सें आयीं और ‘मंजू’ जी को लेकर वार्ड पर ले गई और मुझे वार्ड के बाहर ही रूकने को कहा |
ये सब अस्पताल में भर्ती एक बुजुर्ग महिला की अटेंडर देख रही थी,दिखने में तो बिलकुल नर्स की तरह पर नर्स नहीं थीं, मैं स्टॉफ नर्सों से कुछ कहता उससे पहले वो सब डॉक्टर्स के पास फोन ट्राई कर रहे थे,फोन नहीं लग रहा था,सब एक दूसरे को देख रहे थे,मैंने चेहरे के भावों को समझकर पूछा- क्या हुआ? एक नर्स ने हल्की सी मुस्कान के साथ,कहा-कुछ नहीं सर,आप इंतजार कीजिये |
मेरी नई पड़ोसन ‘मंजू’ जी एक स्कूल में शिक्षिका हैं और अभी अभी कुछ ही महीनों पहले शादी हुई थी,पति दूसरे जॉब में और परिवार से दूर गांव में जॉब के कारण अकेली रहती थी,मेरा परिचय उनसे पिछले दिनों जगदलपुर के किसी कार्यक्रम में हुआ था,तो उन्होंने यह कहकर फोन नंबर लिया था कि मेरे शहर में कोई परिचित नहीं हैं,और मैं भी आपके पड़ोस में ही रहती हूं,कभी कोई कार्यक्रम हो और चलने का मन रहेगा तो फोन कर लूंगी |
कुछ देर के बाद दो नर्स निकली,और बड़ी ही मुस्कुराहट के साथ कहने लगीं- अंदर जो मैम हैं सर आप ही हैं न..? जी नहीं,कहता कि तपाक से उन्होंने कह दिया- बधाई हो मैंम ठीक हैं, फिर वो हल्की हंसी जो छुपायी जा रही हो के साथ चली गईं | अब मेरे मन में सैकड़ों सवाल पर हर सवाल का जवाब मौन ही सहीं था | तब तक करीब चार बज चुके थे,’मंजू’ जी का दर्द कम हो चुका था,वो सो रहीं थीं |
वो महिला जो दिखने में बिल्कुल नर्स जैसी थी वो अंदर से निकल कर मेरे पास आकर पूछीं- शादी को कितने महीने हो गये, ‘मंजू’ के सीने में दर्द तुम्हारे जीवन में खुशियां भी लेकर आई है,सीने में का दर्द तो मैंने देखकर ही समझ गई थी,नई नवेली है न,तो उसको कुछ समझ ही नहीं आया होगा| मैं भी दूसरे शहर के अस्पताल में नर्स हूं,मेरी बहन यहां भर्ती है,संयोग डॉक्टर्स छुट्टी पर,फिर तो आप किस्मत वाले निकले,सीने में दर्द का इलाज भी और खुशी भी | इन सारी बातों को सुनते हुए पीछे खड़ी नर्सें मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी,मुझे काटो तो खून नहीं,फिर समय की नजाकत को समझ कर चुपचाप सुनता रहा,अस्पतालों में बीती कितनी आपबीतियां कह रहीं थी,भली क्यों न कहे वो एक बहन,बेटी,नर्स,मित्र और सबकुछ सहने वाली मां थी,उसके अनुभव ऐसे लग रहे थे कि सुनता ही जाउं,किसी को कानोंकान खबर नहीं कि मैं ‘मंजू’ जी का पति नहीं हूं,पता ही नहीं चला कब सुबह के 5 बज गये |
फिर मैंने देखा- मेरी नई पड़ोसन ‘मंजू’ जी वार्ड से निकल रही थीं,उनके चेहरे पर गजब का उत्साह और छुपी हुई खुशी थी,जिसे वो कसमकश में छुपाई थीं,वो पास आई और कहने लगी-चलिये सर,हम पार्किंग तक आए, वो महिला हमें बार-बार देख रहीं थी,मुस्कुरा रही थी,’मंजू’ जी गाड़ी की पीछे सीट पर बैठीं,वो देख रहीं थी,रास्ते में ‘मंजू’ जी ने बताया कि आज डॉक्टर्स नहीं थे, थैंक गॉड दूसरे अस्पताल की सीनीयर नर्स इसी अस्पताल में थी,जिसने मेरे सीने के दर्द का इंजेक्शन लगवाया,मैं डर गई थी फिर वो बोली कि- डरो मत मैं भी नर्स हूं,और उससे पहले मां हूं,मुझे सब पता हैं,इतने सालों के अनुभव से | मैं रिलेक्स हो गई,फिर ‘मंजू’ जी चुप हो गई,और धीरे से मुस्कुराकर मुझे-थैंक यू बोली,मैं समझ चुका था,पड़ोसन ‘मंजू’ जी बहुत खुश थीं,उनके चेहरे पर अदृश्य चमक छलक रही थी,क्योंकि अब वो मां थीं | हम उनके घर पहुंच चुके थे,अब मैं भी अपने घर निकल चुका था,कुछ अच्छा करके खुशी हुई थी अपार,अंतरात्मा कर रहा था साक्षात्कार |
आज शुकून था मन में,
दिल में अजीब सी ठसन,
याद आ रहे थे वो पल,
‘मंजू’ जी…मेरी नई पड़ोसन |
✍🏾 *©®मुस्कुराता बस्तर*

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