जन्मदिवस विशेष…सुरता….बस्तरिया तुलसी चो…हल्बी के मूर्धन्य साहित्यकार स्व.रामसिंह ठाकुर..फिजां की रंगत अब बदल रही है…,आबो ए हवा साहित्य की चल रही है.. बस्तर के युवा कलमकारों ने याद किया,बस्तर के तुलसी कहे जाने वाले साहित्यकार श्री रामसिंह ठाकुर की जयंती पर मनाई ऑनलाइन काव्य मय संध्या.. सुरता…बस्तरिया तुलसी चो.

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सुरता…….बस्तरिया तुलसी चो, बस्तर की माटी का लाडला सपूत जिसने कई साहित्य रचे बस्तर की हल्बी भाषा में,जिन्हें बस्तरिया तुलसीदास कहा जाता है |आज उनकी जयंती पर ‘बस्तर के युवा कलमकार मंच’ ने ऑनलाइन काव्यमय संध्या “सुरता…..बस्तरिया तुलसी चो” कार्यक्रम आयोजित कर उनकी जयंती मनाई | कार्यक्रम का शुभारंभ हल्बी में गणपति वंदना श्री विश्वनाथ देवांगन ने प्रस्तुत किया | साथ ही स्व.श्री राम सिंह की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनकी जीवनी पटल को विस्तार पूर्वक प्रस्तुत किया गया |

राम चरित्र मानस में भगवान राम के साथ दंडकारण्य का उल्लेख हमेशा आता है। दंडकारण्य में ही उन्होंने वनवास गुजारा था। यहीं से होकर वह लंका तक गए थे। राम से जुड़े कई स्थल यहां पर आज भी विद्यमान हैं। इधर दंडकारण्य की पावन भूमि पर एक तुलसीदास भी हुए हैं, जिनका नाम है रामसिंह ठाकुर। बस्तर के नारायणपुर में रहकर उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए। उन्होंने रामचरित मानस और गीता का स्थानीय हल्बी भाषा में अनुवाद किया है। हल्बी की रामायण की वजह से उन्हें बस्तर का तुलसीदास कहा जाता है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामसिंह ठाकुर ने किशोरावस्था से लेकर मृत्युपर्यंत बस्तर के लिए कई उल्लेखनीय काम किए। वह कुशल चित्रकार, फोटोग्राफर, व्याकरणाचार्य, लेखक, मूर्तिकार, शिक्षक और पत्रकार थे। किशोरावस्था में उन्होंने जगदलपुर में ज्योति टॉकीज में सिनेमा मशीन के ऑपरेटर के तौर पर काम किया।

उस दौरान वह फिल्मों के पोस्टर भी खुद ही बनाया करते थे। उनकी प्रतिभा को देखते हुए 60 साल पहले तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने आदिवासियों के बीच अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए उन्हें चुना। तब गांवों में सिर्फ पगडंडियां हुआ करती थीं। लोग सड़कों के महत्व को समझने को तैयार न थे। सड़क निर्माण के लिए कोई मजदूर न मिलता।

रामसिंह ने इसका हल निकाला फिल्मों से। उन्होंने सड़क निर्माण के काम में आने वाले मजदूरों को मजदूरी के अलावा रात में ज्ञानवर्धक फिल्में देखने की सौगात दी। उनके हल्बी में लिखे गीतों का प्रसारण आकाशवाणी जगदलपुर से 70 के दशक से किया जा रहा है, जो आज भी जारी है। इन गीतों ने अब पारंपरिक लोकगीतों का रूप ले लिया है। ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में अनेक शोधग्रंथों में उनके काम को शामिल किया गया है।

बीहड़ अबुझ माड़ में सड़को की शुरूआत,
अबूझमाड़ में 70 के दशक में ओरछा तक बनी पक्की डामर की सड़क रामसिंह ठाकुर की देन है। उन्होंने ग्रामीणों को सड़क बनाने के लिए तैयार किया। वह वनवासियों को सड़क का महत्व समझाने में कामयाब रहे। जो आदिवासी पहले मजदूरी लेकर भी सड़क बनाने को राजी नहीं थे, वे जनसहयोग से सड़क बनाने की मुहिम में शामिल हो गए। सुदूर इलाकों की कई सड़कें उनके योगदान से बनी हैं।

हल्बी के व्याकरणाचार्य
रामसिंह ठाकुर हल्बी के व्याकरणाचार्य रहे। उन्होंने रामचरित मानस का हल्बी में पद्यानुवाद कर इस महाग्रंथ को आदिवासियों तक पहुंचाया। मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 1990 में व छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग ने 2015 में हल्बी रामायण का प्रकाशन किया है। वर्ष 2015 में ही छत्तीसगढ़ सरकार ने हल्बी में गीता का प्रकाशन भी किया। इस काम के लिए उन्हें छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र समेत कई राज्य सरकारों ने सम्मानित किया। दिसंबर 2019 में रामसिंह ठाकुर अपनी कृतियां और यादें छोड़ इस दुनिया से विदा हो गए।

तत्पश्चात श्रीमती गिरिजा निषाद ने अपनी रचना –
घूरती है मुझे ये किराये का मकान,आश्वासन है बरकरार,
सुनाकर पटल में समां बांध लिया | अगली प्रस्तोता सुश्री गीता चौहान ने- हास्टल के वो दिन, सुनाकर मन मोह लिया,नामी व्यंग्यकार श्री उमेश मंडावी ने अपनी चिरपरिचित अंदाज में – नामकरण प्रस्तुत कर हंसने पर मजबूर कर दिया | लोकप्रिय साहित्यकार श्री हितेन्द्र कोंडागयां ने -‘ फिजां की रंगत बदल रही है’ सुनाकर तालियां बटोरी |

इस अवसर पर लिटिल निषाद ने “तुतली बोली में….आया मोचो दंतेश्वरी बूबा भैरम आय” गीत गाकर कार्यक्रम का समापन किया।कार्यक्रम का संचालन मुस्कुराता बस्तर ने किया | इस अवसर पर सुश्री किरण सोम व अन्य सभी साहित्यकारों ने पटल पर हौसला अफजाई किया |

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