नई दिल्ली:कहते हैं भारत गांवों में बसता है,लिहाजा गांव की बात जरूरी है।कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के युग में देश की रीढ़ रहा गांव आज संक्रमण के दौर में है। ऊपर से कोरोना का दौर। लेकिन दौर कोई भी हो, देश को किसान,जवान और श्रमिक देने वाला गांव यूं ही हार नहीं मानने वाला है। दौर की आवश्कताओं के अनुरूप गांवों में भी नई व्यवस्था आकार लेते दिख रही है। शहरों से लौटे परिवारों ने आवश्यकताओं को विस्तार दिया है, तो शहरों से लौटे युवा नई संभावनाएं गढ़ रहे हैं। पिछली गर्मी में खाली रहे गांव के युवाओं के पास भी अब सांस लेने की फुर्सत नहीं है।
मौके को भुनाने की जिद
कोरोना संकट के इस काल को गांवों ने मौके की तरह भुनाया है। यह वही गांव हैं, जहां पिछली गर्मियों में दुपहरिया सुनसान सन्नाटे में गुजर जाया करती थीं, लेकिन इस बार की गर्मी में यहां हलचल ज्यादा है। रमना, नरोत्तमपुर, टिकरी, तारापुर, डाफी, नैपुरा, मुड़ादेव, सराय डंगरी, अखरी, गजाधरपुर आदि गांव के युवा इस बार काम में तल्लीन हैं। कोई सुपर मार्केट के लिए सामान लेने जा रहा है तो कोई राशन की होम डिलीवरी कर रहा है।
गांव के सुपर मार्केट में है हर चीज
रमना गांव में संतोष और राजेश ने सुपर मार्केट की तर्ज पर दुकान खोली है। यहां लोगों को सारा सामान मिल जाता है। डाफी के विनोद पांडेय, संदीप और प्रमोद ने मार्च में बगल के टिकरी गांव में दुकान खोली थी। उस समय तो बिक्री कम थी, लेकिन बाद में उन्होंने दुकान को सुपर मार्केट में बदल दिया। आज उन्हें ऑर्डर लेने और सामान पैक करने से फुर्सत ही नहीं मिल रही है। यहां राहत भरी बात यह है कि सभी अपने-अपने ग्राहकों को शारीरिक दूरी बनाए रखने पर जोर देते हैं और सबके हाथ पर आते-जाते समय सैनिटाइजर लगाते हैं।