जैव विविधता का तात्पर्य विभिन्न प्रकार के जीव−जंतु और पेड़-पौधों का अस्तित्व धरती पर एक साथ बनाए रखने से होता है. जैव विविधता की कमी से बाढ़, सूखा और तूफान आदि जैसी प्राकृतिक आपदा का खतरा बढ़ जाता है. पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखने तथा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में भी जैव विविधता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता का उद्देश्य ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव विविधता में समृद्ध, टिकाऊ एवं आर्थिक गतिविधियों हेतु अवसर प्रदान कर सके. इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व और उसके न होने पर होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है.
जैव विविधता सभी जीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता और असमानता को कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने भी विशेष रूप से कहा कि साल 2030 के सतत विकास एजेंडा के लिए जैव विविधता आवश्यक है.वैश्विक नेताओं ने भविष्य की पीढ़ियों हेतु एक जीवित नक्षत्र सुनिश्चित करते हुए वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘सतत विकास’ की एक व्यापक रणनीति पर सहमति व्यक्त की थी. इस पर 193 सरकारों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2000 को 55/201 प्रस्ताव पारित करके 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाये जाने का संकल्प लिया. इस दिवस का मुख्य उद्देश्य 22 मई 1992 को पारित किये गये नैरोबी एक्ट का पालन करना तथा इस संबंध में लोगों को जागरुक करना है. अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस अधिकारिक घोषणा से पहले 29 दिसंबर को मनाया जाता था.