*कृषि चौपाल…प्रधानमंत्री का दरवाजा फिर खटखटाया आईफा नें,फिर लिखा पत्र…कहां नाकाफी है घोषणाओं की राशि,मांगी किसानों के लिए तात्कालिक नगद राहत..किसानों के लिए यह पैकेज,उनकी पहुंच से परे, पक्षियों के लिए पेड़ों पर लदे सुपारी के फल की तरह हैं: राजाराम त्रिपाठी*

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आइफा के द्वारा फिर से पत्र लिखे जाने की जरूरत के बारे में बताते हुए डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि,वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एलानों पर लगभग 52 किसान संगठनों से चर्चा करने के उपरांत देश की खेती तथा किसानों की तत्कालिक राहत तथा ढांचागत सुधार हेतु विगत दिनों एक पत्र प्रधानमंत्री जी को लिखा गया था खेती-किसानी के लिए एक समग्र पैकेज की जरूरत थी, जिसे पूरा करने की कोशिश की गई। उन्होंने खेती और किसानों के लिए केंद्र सरकार की घोषणाओं को नाकाफी बताते हुए इनका स्वागत किया व धन्यवाद देते हुए, तालाबंदी के कारण कई स्तरों पर पीड़ित किसानों को तत्काल राहत प्रदान करने की अपील भी की।

उन्होंने कहा कि आईफा ने प्रधानमंत्री जी को कृषि संबंधी इन घोषणाओं के लिए धन्यवाद देते हुए पीड़ित किसानों को तत्काल नगर राहत प्रदान करने हेतु एक पत्र लिखा है तथा उम्मीद जताई कि इस पर शीघ्र अति शीघ्र प्राथमिकता के आधार पर कार्यवाही होगी।कृषि के लिए घोषित पैकेट के संदर्भ में डॉक्टर त्रिपाठी ने बिंदुवार प्रकाश डालते हुए कहां कि, खेती के नाम पर की गई घोषणाओं तथा पैकेज का स्वागत होना ही चाहिए।

यहां पर, सर्वप्रथम तो हमे यह समझने की जरूरत है कि 20 लाख करोड़ के महापैकेज में देश की खेती किसानी के लिए सभी योजनाओं की प्रावधानित राशियों को अगर जोड़ा जाए तो कुल मिलाकर यह लगभग 1.5 लाख करोड़  से 1.60 लाख करोड़,(एक लाख साठ हजार करोड़)  के आसपास बैठता है,अर्थात कुल पैकेज का लगभग 7 -8 सात आठ प्रतिशत मात्र  राशि किसानों तथा संपूर्ण कृषि सेक्टर के समग्र में विकास के नाम आवंटित की गई है, जबकि देश की लगभग 70% जनसंख्या खेती से सीधे अथवा परोक्ष रूप से न केवल जुड़ी है बल्कि रोजगार भी प्राप्त करती है । यह गौरतलब है कि यह राशि सीधे-सीधे विभिन्न योजनाओं में शासकीय गति से प्रवाहित होगी तथा बहुस्तरीय सरकारी छलनिओं से फिल्टर होकर यह  कृषि सेक्टर में आएगी। इन योजनाओं की मलाई चखने की बात तो छोड़िए इनकी छाछ का भी एक घूंट किसानों को मिलना दुष्कर होता है।दरअसल किसानों के लिए यह पैकेज सुपारी के पेड़ पर लदे दिखाई दे रहे ऐसे फलों के गुच्छे हैं, जिसमें पक्षियों की जमात कितने भी चोंच मारे ,भले उनकी चोंच टूट जाए, पर हासिल कुछ भी नहीं होगा। तो अब तय है कि, इस कथित महा पैकेज से किसानों  को कोई फौरी राहत नहीं मिलने वाली।

दरअसल संपूर्ण पैकेज में लाक डाउन के दौरान साग सब्जी, डेरी फार्म , फल ,फूल उत्पादन, नर्सरी, पाली हाउस, सहित खड़ी फसलों को ओला बारिश आदि के कारण हुए नुकसान तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ना बिकने के कारण हुए भारी नुकसान आज से बर्बाद हुए किसान को राहत देने का कोई इरादा नजर नहीं आता।कृषि के आधारभूत संरचना के विकास में जो जब होगा तब होगा, परन्तु  वह किसानों की तात्कालिक तरलता मांग को आखिर कैसे पूरा कर पाएगा?

उपरोक्त सभी घोषणाओं, दीर्घकालिक उपायों से पीड़ित किसान के जेब में  तात्कालिक रूप में तो ₹1भी जाता नहीं दिखता है। इसे समझने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का अर्थशास्त्री होना कतई जरूरी नहीं है कि, इस लंबी तालाबंदी के दरमियान आर्थिक गतिविधियां शून्य होने के कारण किसानों की गांठ में जो थोड़े बहुत पैसे थे,वह इतने दिनों तक रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने तथा खेतों की देखभाल आदि में खर्च हो चुके हैं।
अब आखिर किसान खरीफ की खेती की तैयारी करें तो कैसे करें  ?

ट्रैक्टर की जुताई डीजल का खर्चा बीज खाद दवाई मजदूरी आदि सब की व्यवस्था करने के लिए कोई संचित नगद राशि किसानों के पास नहीं बची।इस 20 लाख करोड़ के भारी-भरकम पैकेज में किसानों को नगदी के नाम पर  चिड़िया के चुग्गा जैसा भी कुछ हासिल होता नहीं दिखता।सरकार को चाहिए कि वह तत्काल पहले देखे, कि सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में  पच्चीस प्रतिशत बढ़ाकर न्यूनतम खरीद मूल्यों पर किसानों के उत्पाद खरीदे, तथा जिन किसानों को इस दरमियान नुकसान हुआ है उसका समुचित जांच बनकर उन्हें सीधे सीधे नगद सहायता प्रदान की जाए।

न्यूनतम खरीद मूल्य से कम दर पर अगर किसी किसान का उत्पाद किसी के भी द्वारा खरीदा जाता है , तो इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए।अंत में एक बार फिर सरकार से कृषि के क्षेत्र में सुधार हेतु किए गए घोषणाओं के लिए धन्यवाद देते हुए उनसे गुजारिश के साथ ही यह उम्मीद की जाती है कि, सरकार इस लॉक डाउन से हुए भारी  नुकसान से पीड़ित किसानों के दर्द को समझेगी, और  बिना छोटा बड़ा किसान का भेदभाव व पक्षपात किए, उन्हें तात्कालिक नगद राहत मुहैया करायेगा।

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