*प्राचीन बौद्ध चैत्य गृह:भगवान बुद्ध (डोकरा बाबा उर्फ डोडा मुदिया)*
छत्तीसगढ़ पुरातन विरासत की खान है,यहां हम कई ऐतिहासिक स्थलो को जानते हैं और कई ऐसे स्थल हैं जो बस खाना पूर्ति से लबरेज हैं,आज हम बात करेंगे भोंगापाल के डोडामुदिया उर्फ डोकरा बाबा की आपको मालूम होगा कि 36 के आदिवासी बाहुल्य जिला कोंडागांव के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग से कुछ ही दूरी पर फरसगांव जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत बड़ेडोंगर के निकट ही ग्राम पंचायत मुख्यालय भोंगापाल है, यह दोनों और यानी जिला मुख्यालय नारायणपुर के ग्राम पंचायत रेमावंड से मैनपुर कसाईफरसगांव होते हुए भी भोंगापाल पहुंचा जा सकता है, पगडंडी राहों व ग्रामीण सड़कों की बानगी देखते ही बनती है और कुछ दूरी तय करने के बाद पहुंचते हैं एक पुरातात्त्विक ऐतिहासिक स्थल भोंगापाल है,जहां पर हम आज बात करेंगे डोडा मुदिया की जिसे स्थानीय लोग डोकरा बाबा के नाम से भी जानते हैं,यह ग्राम बंडापाल,मिसरी,बड़गई ग्रामों के मध्य ग्राम भोंगापाल स्थित है, जहां बौद्ध कालीन ऐतिहासिक टीले एवं अवशेष मौजूद हैं,ये ऐतिहासिक टीले एवं अवशेष मौर्ययुगीन एवं गुप्तकालीन हैं, इतिहासकारों का अनुमान है कि यह स्थल प्राचीन काल में दक्षिणी राज्यों को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है, विशाल बौद्ध चैत्य मंदिर है,यह चैत्य बौद्ध भिक्षुओं के धर्म प्रचार प्रसार एवं निवास का प्रमुख केंद्र था, और देखने से भी ऐसा प्रतीत होता है
किंतु हम एक दूसरी दुनिया की ओर ले जाएंगे जहां पर बौद्ध कालीन इतिहास को जोड़ते हुए यहां के स्थानीय लोगों का क्या कहना है और वह दूसरी दुनिया में यहां के लोग प्राचीन बौद्ध चैत्य के बारे में क्या कहते हैं चलिए मैं आपको ले चलता हूं डोकरा बाबा के पास अब हम यहीं स्थल पर मौजूद हैं और बात करते हैं जिसे स्थानीय भाषा गोंडी में डोडा मुदिया उर्फ डोकरा बाबा के नाम से जानते हैं |
ग्राम भोंगापाल तमूरा नदी के तट पर बसा हुआ है,तमूरा यानी गिटार नुमा नदी और जब हम इस नदी के तट पर जाते हैं तो एहसास भी होता है कि ये गिटारनुमा है,नदी और नाले के तट पर ही डोडामुदिया विराजमान होने व प्राचीन पुरातात्त्विक इतिहास के धरोहर स्थापित होने से इस समूचे इलाके को डोडा मुदिया के पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है,बहती तमूरा नदी की कल कल जल मन को मोह लेती है,पिकनिक और अन्य पर्यटकों को लुभाने के लिये यह स्थल अपने आप में अजूबे से कम नहीं है, पूरे इलाके में शांति छाई रहती है, नदी के किनारे को स्थानीय भाषा गोडी में डोडा कहते हैं और किनारे पर बसे होने के कारण ही किनारे पर बसे बाबा अर्थात डोडा मुदिया नाम पड़ा होगा,हल्बी भाषा में डोकरा बाबा भी कहते हैं, स्थानीय ग्रामीणों और हमारी टीम ने पाया कि जहां पर डोडा मुदिया स्थापित हैं, वो शेडनुमा है जिसे ग्रामीणों ने श्रमदान से तैयार किया है, पूर्व में जहां पर मूर्ति थी वहां पर झाड़ उगे हुए थे और ईटों के जले हुए एवं की मात्रा यहां बहुतायत में है वर्तमान में जहां पर डोडामुदिया स्थापित हैं उसके करीब 30 मीटर की दूरी पर थी जिसे 70 लोगों ने उठाकर के डेढ़ दिन में स्थापित किया है, वर्ष 1990-91 में साफ सफाई होने के बाद इस मूर्ति को स्थापित किया गया और वर्ष 1990-91 में ही पुरातत्व विभाग के अधिकारियों द्वारा खुदाई का कार्य करवाया गया,वैसे हम स्थानीय जानकारों की माने और स्थानीय ग्रामीण जो उस समय में खुदाई के समय में यहां पर मजदूर के रूप में कार्यरत थे ऐसे ही शख्स श्री फूल सिंह कोर्राम पिता श्री गागुरु कोर्राम जो पेशे से खेती करते हैं डोडामुदिया के बारे में बताते हैं कि डोडामुदिया घने जंगल में हैं,और ऋषि मुनियों के जमाने से हैं,तो हम उनको भगवान ही मानते आ रहे हैं,वो कहते हैं मैं उनको 18 वर्ष की उम्र से डोडामुदिया को जानता हूं और हमारे गांव के सियान लोग उनको डोडामुदिया के नाम से जानते और नदी बहुत गहरी व घने जंगल होने के कारण यह इलाका शांत सुरम्य माना जाता रहा है जिस कारण से यहां डोकरा बाबा डोडामुदिया के शरण में लोग अपनी मन्नत लेकर आते व मनोकामना पूरी करके जाते हैं,आगे बताते हैं कि जब डोकरा बाबा उर्फ डोडामुदिया की खुदाई हुई तब हमारे गांव से लोगों को इकट्ठा करके जिसमें देवजी नाग,फुलसिंह,सनउराम नाग,और गांव के जो उस समय पद में थे,प्रमुखों ने उन्होंने पूर्वजों की छाती समझ कर डोडामुदिया को संजो कर रखा,काम वाले इस डर से इस खुदाई से दूर रहने का कोशिश कर रहे थे,कि यहां पर कोई अनहोनी ना हो जाए | बताते है कि 70 लोगों ने डेढ़ दिन में मूर्ति को नीचे से उपर ले जाकर वर्तमान स्थल में स्थापित किया | खुदाई के वक्त मौजूद मजदूर श्री फूलसिह कोर्राम और साथी बताते है कि खुदाई के दौरान में पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को एक मूर्ति प्राप्त हुई जो चमकदार था और धातुनुमा दिख रहा था,जिस पर कोई तरल जैसा पदार्थ अधिकारियों ने डाला तो आग जल रहा था किन्तु उस मूर्ति को विभाग के अधिकारियों ने अपने साथ लेकर गये,जिसे गांव के माड़िया मामा,दुकारू,और काम करने वाले गांव के सियान लोग जो अब नहीं रहे आधे रास्ते मुख्यमार्ग तक पहुंचाने में सहयोग किये, डोडामदिया की जो खंडित मूर्ति है उस संबंध में श्री फुलसिंग कोर्राम बताते हैं कि और सम्मोहन और तंत्र विद्या सीखने के लिए खंडित करके करके ले जाया जाता रहा है, जिससे यह खंडित होता गया जब स्थानीय लोगों को पता चला तो इसके संरक्षण के लिए ग्राम पंचायत एवं गांव वालों ने मिलकर एक शेड नुमा कक्ष तैयार कर दिया,डोडा मुदिया की कहानी भोंगापल के लोगों की जुबानी जो आपके सामने हम लोग पेश कर रहे हैं यह डोडामुदिया हैं और स्थानीय लोग इनको डोडा मुदिया आज भी मानते आ रहे आते हैं,हमने आपको पहले बताया है कि इस बौद्ध चैत्य प्रतिमा जिसे डोडामुदिया के नाम से क्षेत्र के लोग जानते हैं,मानते हैं, पूजते हैं, और यहां पर इनके संरक्षण के लिए बहुत कुछ करने के लिए प्रयत्नशील हैं |
हम हैं भोंगापाल में और हम आपको लेकर चलते हैं भोंगापाल के कुछ प्राचीन स्थलों की ओर
*सात रानियां…*
ऐसा माना जाता है कि इस पुराने खंडहर नुमा मंदिर के अवशेष में आप देख सकते हैं कि जो मूर्ति स्थापित है,वे डोडामुदिया की सात रानियां थी,ग्रामीणों की मान्यता है कि डोडामुदिया की वे धर्मपत्नी और बेटे थे ,और हम इतिहासकारों की माने ये खंडित मुर्तियां सप्तमातृका ओं की प्रतिमा है जिसमें एक ही शिला पर वैश्णवी कौमारी,इंद्राणी,माहेश्वरी,वाराही चामुंडा तथा नरसिंह की प्रतिमा निर्मित है,खैर कहते हैं ना कि नजरिया अपना अपना और अंदाज अपने अपने फिर भी हम डोडामुदिया की शरण में है,और हम प्रयास कर रहे हैं यहां की अनकही अनजानी अनसुलझी कहानियों को आपके पास रखने की दिखाने की |
*डोडामुदिया खोज*
जैसा कि आप देख रहे हैं हम उपस्थित हैं डोडामुदिया के पदचिन्ह स्थल पर, ग्राम से 3 किलोमीटर जो उनकी पद चिन्ह लुमा है और यह माना जाता है कि यह डोडा मोदी या के पद चिन्ह हैं |
*डोडामुदिया तड़ाय*
हम यहां पर उपस्थित हैं डोडामुदिया के तड़ाय 8 तालाब ग्राम में है और 2 तालाब अलमेर ग्राम में है और यह सभी तालाबों यह माना जा रहा है कि यह डोडा मुदिया के तालाब हैं
*बुरकाल खोज*
साथ ही यहां पर देखने लायक वन भैंसा पद चिन्ह है जिसे बुरकाल खोज के नाम से जाना जाता है.इसी स्थल के समीप जोड़ा तालाब के पास ईट का टीला नुमा ढेर है यहां खुदाई करने पर अन्य महत्वपूर्ण चीजें मिलने की प्रबल संभावनाएं हैं यहां ईंटों के टुकड़े और दीवारों के चिन्ह बने हुए हैं और वहां पर खुदाई के गड्ढे वह निशान भी बने हुए हैं,जो कि स्थल की महत्ता को रोचक बनाता है |
*शिवलिंग डोडामुदिया*
भोंगापाल की बहुत ही महत्वपूर्ण और यहां के पुरातात्विक इतिहास के बारे में हम बात कर रहे हैं और हम इस वक्त भोले बाबा की शरण में हैं और यह जो शिवलिंग आप देख रहे हैं भगवान शिव का लिंग है पुराने जमाने से जब से इलाके में लोग ने जाना तब से लेकर आज तक शिवलिंग है,और गांव वाले बताते हैं कि यहां पर डोडामुदिया शिवलिंग में प्रतिवर्ष यहां पर मेला लगता है और माना जा रहा है कि यह जो भगवान शिव का लिंग है वो दिनों दिन बढ़ती जा रही है लोगों के द्वारा सम्मोहन और तंत्र विद्या के लिए मूर्ति को खंडित कर के पत्थर के टुकड़ों को चुराकर ले जाया जाता है और दश्मदीद व ग्रामीणों की मानें तो कभी-कभी रातों में यहां पर शेर भी आते हैं ऐसी मान्यता है और यह इस बात से स्पष्ट होता है कि यहां पर शिव के लिंग ऊपर सिर के बाल चिपके रहते हैं वर्ष 1991-92 से यह स्थल सांस्कृतिक केन्द्र रहा है,ग्रामीणोॉ का कहना है कि वह इस शिव लिंग को वर्षों से देखते आ रहे हैं और शिव लिंग बढ़ रही है, स्थानीय जानकार श्री लक्ष्मण दीवान जी रामसाय नाग जी,फुलसिंह कोर्राम जी और साथी बताते हैं कि शिवलिंग दिनों दिन बढ़ रहा है,शिवरात्रि को मेला लगता है यहां पर देव जोहारनी मेला गायत्री महायज्ञ आदि बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं और यह इस इलाके का प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र है क्षेत्र की सभी देवी देवता यहां पर सम्मिलित होते हैं शीतला माता और माता गांव की देवी देवता भी बड़ी संख्या में सम्मिलित होते हैं हवन पूजन विधि विधान से किया जाता है आसपास के क्षेत्र के लोग जिसमें नारायणपुर जिले से भी कांकेर जिले से भी और कुंडा गांव जिले से भी साथ ही साथ संपूर्ण बस्तर संभाग के लोग शरीक होते हैं और यह पुरातत्व का और पवित्र स्थल माना जाता रहा है |
अब हम बात करते हैं यह इलाका हमारी नजर में क्या है यह शहर से दूर बहुत ही शांतिप्रिय स्थल है जहां पर पिकनिक के रूप में तुमरा नदी के तट की वादियों को करीब से निहारने का स्पाट मिल सकता है हम यहां पिकनिक मना सकते हैं और यहां की वादियों को निहार सकते हैं घने जंगलों के बीच में शांति और सौंदर्य की मादकता को निहारने का अच्छा पड़ाव है,भोंगापाल |