सत्यदर्शन विशेष…आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ऐसी शख्सियतों की कहानी जिन्होंने समाज में नई मिशाल पेश किया है | छत्तीसगढ़ बस्तर के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित लेखक युवा हस्ताक्षर *विश्वनाथ देवांगन* उर्फ *मुस्कुराता बस्तर* की खास खोजी बातें *उनकी सफलता की कहानी उनकी ही जुबानी*…..

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नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

विश्वविख्यात विद्वान जय शंकर प्रसाद कृत ‘कामायनी’ की इन पंक्तियों से नमन करते हुए….

आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘बैलेंस फॉर बेटर’ की थीम के साथ उन अरबों खरबों आदि मातृशक्ति को नमन जिनके दम पर दुनिया टिकी है | जिनकी वजह से आज मैं आप लोगों तक पहुंच सका हूं,आज हम बात करेंगे ऐसी शख्सियतों के बारे में उनकी कहानी उनकी ही जुबानी,जिन्होंने रात दिन मेहनत और लगन से जीवन में एक नया मुकाम हासिल किया है | इनके बारे में सबकुछ लिख पाना तो संभव नहीं है,पर मेरी नन्ही सी कलम के माध्यम से यही बताना चाहूंगा कि,,,, आज हम जिन मातृशक्तियों के बारे बात कर रहें हैं वो आम नहीं बेहद खास हैं,हमारे समाज,देश और दुनिया के लिये….जिन्होंने दुनिया के सामने एक नई मिशाल पेश की है,और नया रास्ता बनाया है उन लोगों के लिये जो यह सोंचते हैं कि पाबंदियां आयाम नहीं गढ़ती,कमजोरियों को ताकत और हथियार बनाकर करोंडों लोगों के लिये नये रोल करने वाली इन जांबाज कमाडों नियंत्रण रेखा पर नहीं बल्कि जीवन की रेखा पर लड़कर दुनिया को जलवे दिखा रहीं हैं कि सब कुछ संभव है,जहां चाह हो,वहां राह है….,
मेरी कुछ पंक्तियां…

जब सोने लगता हूं तो,
मुझे वो लोरियां सुनाने लगती है |
सोकर उठता हूं तो,
वो मंद-मंद मुस्कुराने लगती है |
उसकी गोदी में होता हूं तो,
वो मन ही मन गुनगुनाने लगती है |
मुझे देखकर वो मुस्कुराने लगती है |

इन्होंने कम और सटीक सरल शब्दों कह दिया है,कि मन भाव विभोर होकर नतमस्तक हो जाता है | गागर में सागर इनकी जुबानी,कह जाती हैं बहुत कुछ कही अनकही कहानी यही है,इन देवियों शक्तियों की निशानी…..चलते हैं उनकी सफलता की कहानी,उनकी ही जुबानी……

1-मंदाकिनी श्रीवास्तव
(गृहिणी एवं कवियित्री)
किरंदुल
जिला- दंतेवाडा़,छत्तीसगढ़
बचपन से ही लिखती रही हूँ। सन् 1995 के आसपास  वागर्थ में पहली बार नई कलम स्तंभ में मेरी तीन कविताएँ छपीं, इस अखिल भारतीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिका से शुरू हुआ न थमने वाला सिलसिला। लगातार कविताएँ छपीं, काव्य गोष्ठियों में बहुत हिस्सा लिया, आकाशवाणी में सक्रिय रही, गणित में शिक्षण भी किया, शास्त्रीय संगीत, फाइन आर्ट पेंटिंग सब कुछ सीखा और पूरे मन से सीखा मेरी किताबों में स्केचेस और चित्र  मेरे अपने ही बनाए हुए हैं | कवर पेज भी खुद ही बनाए सभी किताबों में । मैंने हर किताब की जैसी कल्पना की, उसे वैसा ही रूप दिया। बैतूल में पली बढ़ी, वहाँ सबसे बहुत प्यार और सम्मान  मिला । फिर,बस्तर के किरंदुल से नाता जुड़ गया और फिर बैतूल से शुरू हुई यह काव्य यात्रा या यों कहें कि साहित्यिक  यात्रा  जीवन में एक नया मोड़ लेकर  अनवरत् चलती  रही। शादी के बाद घर परिवार संभालना, गृहिणी की ज़िम्मेदारियाँ और बच्ची का पालन पोषण, यही प्राथमिकता रही।
मेरी  दृष्टि में नारी को अपनी पहचान बनानी चाहिए लेकिन स्वार्थी होकर नहीं। कर्त्तव्य को परे हटाकर  कोई भी कार्य सही नहीं हो सकता।
लेकिन कलम  मेरे साथ रही हर परिस्थिति में।
सन् 2005 से संग्रह निकले ,इस यात्रा में पांच किताबें और कुछ मानपत्र पोटली में लेकर लगातार चल रही हूँ,पर लोगों से मिलने वाला प्रेम और उनके दिलों में जो सम्मान  होता है,वह इस दुनिया के किसी भी सम्मान से बढ़कर है, मेरी निधि है।
बस्तर विश्वविद्यालय का मैंने जब कुलगीत लिखा तो साथ ही साथ उसकी धुन भी बनाई और फिर कुछ विद्यार्थियों के साथ  उसे गाया भी, जो आज भी वहां बजाया जाता है।यह अनुभूति बड़ी ही सुखद है, अनोखी है। अपने ही सृजन को  गुरुकुल में गूंजते हुए देखना मुझे भावुक कर देता है । कितनी ही मुश्किलें आयें,सृजन कभी न रुके यही कोशिश होनी चाहिए।
कविताओं में मेरी आत्मा है, जो मैं हूँ, वही लेखन में है। मेरे विचार से यह ईमानदारी होनी ही चाहिए।
मैं एक सुंदर राष्ट्र की कल्पना करती हूँ और यह तभी संभव है जब लोगों का मन सुंदर हो ।एक बात और ख़ासकर महिलाओं से,,,,किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी है,स्वयं को ऊपर उठाना है,आगे बढ़ाना है।और जब हम सोचते हैं कि सब कुछ पा लिया , बहुत  कर लिया तो अपने अंदर बहुत सारी संभावनाओं का गला घोंट देते हैं।तो यात्रा चलती रहे अंतिम सांस तक।

2-माया देवांगन
(युवा व्यवसायी,कवियित्री)
रायपुर,छत्तीसगढ़  
मेरा जन्म कोरिया जिले के एक छोटा सा शहर मनेंद्रगढ़ में हुआ शिक्षा दीक्षा वही पूर्ण हुई, एम.ए(राजनीति शास्त्र ) की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरा विवाह हुआ | मैं बचपन से ही प्रकृति के बहुत करीब रही हूं क्योंकि मनेंद्रगढ़ अप्रतिम सौंदर्य से भरा हुआ है और इन्हीं कारणों से मेरी हर कविताओं में कहीं न कहीं प्रकृति जुड़ी होती है |शादी के बाद मैं रायपुर में रहने लगी | पढ़ाई का शौक मुझे शुरू से रहा है… कंप्यूटर से खासा लगाव रहा इसीलिए पीजीडीसीए भी कर लिया | एक गृहिणी होने के साथ-साथ मैं अपने घर के व्यवसाय में भी हाथ बताती हूं बच्चों को पढ़ाना, घर के काम.. इन सभी से फुर्सत निकालकर लिखने के लिए बमुश्किल समय निकाल पाती हूं | लिखने का जुनून ऐसा है एक बार मन में कविताएं आ गई तो आधी रात को भी उठ कर लिख लेती हूं |मैंने अभी तक कई कविताएं लिखी  जिसमें से अधिकांश कविताएं  प्रकृति की अनुपम छटा को दर्शाती हुई हैं |

मेरी कविताएं अक्सर किसी न किसी पत्रिकाओं में छपती रहती हैं मुझे देवांगन समाज द्वारा सम्मानित भी किया गया जो कि मेरे और मेरे परिवार की अत्यंत हर्ष का विषय था  मै हमेशा से चाहती थी कि समाज में मेरी अलग पहचान बने… लोग मुझे मेरे नाम से जाने और आज यह कुछ हद तक सच होता दिखाई देता है, लोग मुझे एक कवयित्री के रूप में पहचानते हैं |
मैंने कविता लिखना शौक से शुरू किया था पर नहीं मालूम था कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगी …विभिन्न  पत्रिका में अपने लिए ही स्थान देखकर बहुत ही खुशी होती है और यही कि सीमाओं में रहकर भी पहचान बनाई जा सकती है,मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है |

3-आरती सिंह “एकता”
(गृहिणी एवं साहित्यकार)
नागपुर,महाराष्ट्र
मेरा जन्म बस्तर अंचल के एक छोटे से शहर जगदलपुर में हुआ। हालांकि हमारा पैतृक निवास वाराणसी, उत्तर प्रदेश  है पर पिताजी वन विभाग में परिक्षेत्र अधिकारी  थे तो  मेरा सौभाग्य रहा कि बस्तर की उन्मुक्त वादियों में पली , बढ़ी।  मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया और रविशंकर विश्वविद्यालय टाप किया।
मैं बचपन से ही प्रकृति प्रेमी रही  और बहुत जंगल घुमी, पिताजी की जहां भी पोस्टींग होती मैं बहुत खुश होती थीं कि अब एक बार फिर नये जंगल से ,स्वयं का और उनका साक्षात्कार होगा।
(भोपालपटनम, बीजापुर, छिंदगढ़,  दोरनापाल, नारायणपुर, भानुप्रतापपुर,कापसी, और भी कई गांवों) मुझे कविताएं, लघुकथाएं और हाइकु लिखना पसंद है |
चुंकि प्रकृति का सान्निध्य बहुत रहा तो मेरी कविताओं में कहीं न कहीं प्रकृति का उल्लेख मिलता ही  है। मेरी शादी नागपुर में एक संयुक्त परिवार में हुई। मैंने संयुक्त परिवार से भी बहुत कुछ सीखा और मेरी रचनाओं में पारिवारिक जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव भी रहते हैं घर गृहस्थी की जिम्मेदारी  से जब भी फुर्सत मिलती तो लिखने का प्रयास करती हूं  मेरा लिखने पढ़ने का काम अर्घ रात्रि में होता है क्योंकि उस वक्त किसी की कोई फरमाइश नंही होती, वह समय मेरा खुद का होता है।
मेरी रचनाएं  देश-विदेश की पत्रिकाओं में छपती रहती है। मुझे  कुछ सम्मान भी प्राप्त हुएं हैं। हालही में मेरा पहला काव्य संग्रह “बारिश में भीगती नदी” प्रकाशित हुई है ।
जिसके लिए राजपूत ज्येष्ठ फोरम नागपुर द्वारा मुझे सम्मानित किया गया। यह मेरे व मेरे परिवार के लिए एक गौरवशाली पल था।मां वागेश्वरी से यही प्रार्थना है कि अपनी लेखनी के माध्यम से साहित्य के लिए, समाज, राष्ट्र के लिए कुछ कर सकूं।

4-देशवती पटेल”देश”
(शिक्षिका,लोक गायिका,कवियित्री)
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़
मेरा जन्म कांकेर जिले में ग्राम सरंगपाल में हुआ | पालनपोषण,शिक्षा दीक्षा,नौकरी कोंडागांव में संभव हो सका | 1995 में 12वीं प्रथम श्रेणी में उतीर्ण करते ही शिक्षाकर्मी बनी | और शिक्षकीय सेवा में रत हूं |  बचपन से  लेकर अब तक मेरा जीवन खासा उथल पुथल से भरा हुआ है|
मेरी रचनाओं में वेदना का पुट  झलकता है, और सच कहूं तो वेदनाओं से ही मेरी हृदयकुंड से कविता प्रस्फुटित होती है | मेरी लालन पालन बस्तर अंचल में होने के वजह से मैं प्रकृति प्रेमी हूं,निराशाओं से घिरे होते भी मैं आशाओं की कामना लिए समाज में प्ररेक भूमिकाओं के साथ मेरी लेखनी आगे बढ़ती है| मैं हिंदी की व्या्ख्याता हूं लेकिन साहित्य की अच्छी जानकार नहीं हूं,मेरे मन की उ्दगार को ही कविता रूप देती हूं| मुझे मरार पटेल  एवं सर्व समाज के द्वारा मां सावित्रीबाई फुले जयंती के अवसर पर सम्मानित किया गया |
बस्तर की लोक संस्कृति और वादियां मनको लुभाती हैं | बस्तर की माटी के प्रति लगाव मन को सूकून देता है |

5-पुष्पा मिश्रा”छोटी”
(गायिका,मानस व्याख्याकार)
परसदा,बालोद,छत्तीसगढ़
मेरा नाम पुष्पा मिश्रा पर शादी से पहले पुष्पा पांडे थी।मेरा जन्म मेरी नानी गांव ( देवरी ) में 23-7- 83 को हुआ।मेरा बचपन बहुत संघर्ष पूर्ण रहा।जन्म के बाद मेरे माता-पिता का सम्बंध टूट गया।जिसके चलते मेरी परवरिश मेरे नाना-नानी ने ही की।।
मैं प्राथमिक और माध्यमिक पढ़ाई परसदा (वर्तमान निवास) में की,चौथी कक्षा पढ़ रही थी कि नाना जी नही रहे।फिर मेरी नानी ने मेहनत मजदूरी करके मुझे पढ़ाया।हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 5किमी दूर पैदल मतवारी नाम के गांव में की,सिर्फ 10वी तक पढ़ पाई।मेरी रुचि गायन में पहली कक्षा से थी।जिसे मेरे गुरुजनों ने समझा।और जब मुझे माइक पकड़ना भी नहीं आता था तो,गुरुजी लोग माइक पकड़ के मेरे साथ स्टेज पे खड़े रहते थे,मेरे गाते तक।
कक्षा 6वीं में पहली बार हारमोनियम और तबले के साथ *काबर समाये रे मोर बैरी नैना म* गीत गाई। जो मेरे लिए *प्लस पॉइंटप* सिद्ध हुआ।मेरी आवाज़ मेरे आदरणीय गुरुजी *श्री खुमान लाल जी साव (चंदैनी गोंदा के संचालक)* के कानों में गई और वे मुझे अपनी संस्था में गवाने ले गए। 2साल मेरी शादी के पहले और 1साल शादी *(2000)* के बाद उनके सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारी को निभाते हुए मैंने सास्कृतिक संस्था को छोड़ दिया।

2003 से मेरी मानस मण्डली की शुरूआत हुई,तब मेरे बेटे का जन्म हो चुका था।मण्डली में मैं सिर्फ गाती थी,फिर ईश्वर कृपा हुई तो मानस की व्याख्या करने का सुअवसर मिला। जिसमें (व्यख्यान में)5अलंकरण मिले। 3बार *मानस शक्ति वाहिनी* (कुंवा गोंदी से) ,1बार *मानस मणि* (गंगा मैया झलमला से) और 1बार *मानस मन्दाकिनी* (अर्जुनी डोंगरगांव से) मिली।
आज मेरे परिजनों को मुझपर गर्व होता है।मेरे श्री मान जी और मेरे 2 बच्चों का भरपूर सहयोग मुझे मिलता है।गायन और व्याख्यान करटे हुए ताउम्र जीना चाहती हूँ।और ईश्वर से प्रार्थना है, कि मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित करते रहें।ब्राह्मण समाज में *नारी प्रकोष्ठ की अध्यक्ष* फिर  *संयोजक* के पद में काम कर रही हूँ।

6-सुश्री लक्ष्मी करियारे
(शिक्षिका,लोक गायिका,कवियित्री)
जांजगीर-चांपा,छत्तीसगढ़
मैं लक्ष्मी करियारे शिक्षिका,लोक गायिका,कवियत्री
मेरा जन्म जाँजगीर ज़िले के एक छोटे से गाँव कचन्दा में हुआ.. मेरे पिता जी स्व श्री पी एल करियारे कोरबा NTPC में नौंकरी करते थे इसलिए मेरी पढ़ाई कोरबा ज़िले में हुई… मेरे पिता जी के मृत्यु के समय मैं केवल 10 वी कक्षा थी… उनके जाने के बाद बड़ी बहन होने के नाते घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ मुझ पर आ गई गाने का शौक बचपन से ही था… साथ ही लिखने भी लगी…ज़िम्मेदारियाँ निभाते लिखते और गाते कब इतनी कामयाबी मिली कि पता ही नहीं चला… आप सबका बहुत धन्यवाद,अपना स्नेहिल आशीर्वाद यू ही सदा मुझ पर बनाए रखे.. कि और अच्छा लिखती एवं गाती रहुं |

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