छत्तीसगढ़.बस्तर के बहुचर्चित युवा हस्ताक्षर साहित्यकार *विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर* का खोजी यात्रा वृतांत…..मे आज पढ़िये….. अबुझमाड़ के बीहड़ों में गरीब परिवार की बेटी……परिस्थितियों को लोहा मनवाने में माहिर नारायणपुर जिले के हाटलानार गांव की सुनती मातलाम की कहानी…. *अबुझमाड़ की आंचल,हजारों लोगों के लिये आइकन है*

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नारायणपुर:- आज जब पूरा अबुझमाड़ दौड़ रहा है,मैराथन में | देश विदेश से धावक दौड़ रहे हैं,इसी दरम्यान ओरछा से दूर बीहड़ सुनसान जंगल में भी एक बेटी जिसे आंचल कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी,दौड़ रही है,अपनी शांति के लिये सुकून के लिये,सेवा के जज्बे के लिये,ऐसी दुर्गम क्षेत्रों मे रहने वाली सेवा देने वाली असंख्य वीर वीरांगनाओं के जज्बे को सलाम है |

छत्तीसगढ़ बस्तर संभाग का नारायणपुर जिले का ओरछा ब्लॉक जो कि धुर अबुझमाड़ के नाम से भी जाना जाता है | सालवनों के दीप नें सरगी पेड़ों की झुरमुठों के बीच निहारते हुए वन वादियों से गुजरते हुए जिला मुख्यालय से 65.किमी दूर जब ओरछा पहुंचते हैं,तो फिर पहले तो मन बहुत कुछ जानने के लिये उतावला हो जाता है,फिर नजरें रूक सी जाती हैं,पलकें थम सी जाती हैं,वही लोग वही सादगी मेरे बस्तर की बालायें,भाई,बहनें मन गदगद हो जाता है,सुरम्य वादियों में जीने का मजा ही कुछ और है और वो सालवनों का द्वीप बस्तर हो तो फिर क्या कहने हैं |

अबुझमाड़ के प्रवेश द्वार नारायणपुर से जब सरपट और खुरदरी रास्तों से निकलते हैं तो रास्तों में घाटी नुमा,कुछ ग्रामीण जन,मुस्कुराती सड़कें और सड़कों पर आते जाते लोग मिल जाते हैं | गांयों के रंभाने की आवाज के साथ मांदर की थाप पर दूर बीहड़ से आती पथरीली आवाज,मन को सुकून देती राहें,सफर तय होने के बाद हम जब सुबह का ओरछा देखने पहुंचते हैं,और कस्बे नुमा शहर से कुछ चाय की चुस्कियों के साथ जब नजर दौड़ाते हैं तो हमारी नजरें स्कूटी पर वैक्सीनेशन बॉक्स रखती एक नर्स पर पड़ती है,सुबह तड़के पहली किरणों के बाद का नजारा,ठंडी हवा की मार और वो सुकून से भरी निगाहों से मुझे देखकर नमस्ते सर कहती हैं,लेकिन ये सिर्फ औपचारिक संबोधन था,मुलाकात के औपचारिकताओं के बाद मैंने पूछा | क्या आप हमें यानी की मुझे कुछ बतायेंगी,दर असल मैं पहली बार बहुत दिनों बाद सुबह पहुंच गया हूं कोई मिल नहीं रहा परिचित,तो क्या मुझे आसपास कोई पर्यटन स्थल या अपने बारे में कुछ बतायेंगी,अचानक उपर से नीचे तक सरसरी छुपी नजरों से देखकर हां,सर आप हैं,आज इधर | बोलिये ना क्या बात है,,पूछिये | आप मुझे जानती हैं…जी,हां आपके बारे में कहीं पढ़ी थी | आप आज ही पर्यटन स्थल और अपने बारे में कुछ बता सकती हैं,जी..सर बता तो सकती हूं,पर बिजी हूं,फील्ड जाना है,मलेरिया का टीकाकरण चल रहा है,कुछ फोटोग्राफ्स और थोड़ी-थोड़ी डिटेल भेज दूंगी,आप मुझे नंबर दीजिये,फिर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ विदा हो जाती हैं |

मैं कुछ देर के लिये स्तब्ध रह गया मैं तो जानता नहीं फिर मुझे कैसे जानती हैं,फिर मैं नंबर लेकर वापस आया सुबह तड़के मुझे सभी अपरिचित चेहरों में एक चेहरा जो मुझे पहचान रहा है,ऐसा कहीं नहीं लगा कि मैं कहीं और हूं मुझे असीम खुशी हुई मैं दुगनी उर्जा से ओत प्रोत होकर लौटा | फिर रोज का कार्य और शाम को आंचल जी के मोबाईल से कुछ तस्वीरें और संदेश प्राप्त हुये जो मन को सुकून और प्रेरणा देने वाला है |

हम जानते हैं ओरछा दुर्गम क्षेत्र कोडोली और आसपास के इलाकों में स्वास्थ़्य सेवायें दे रहीं,सुनती मातलाम कहानी,मेरे कलम की जुबानी,नारायणपुर जिले के नारायणपुर ब्लाक के छोटे से  हाटलानार गांव की बेटी,जिन्होंने बहुत ही गरीबी की परिस्थिति में माता पिता से दूर अपनी मौसी की जिम्मेदारी में रामकृष्ण मिशन आश्रम की शारदा विद्यापीठ में भर्ती होकर शिक्षा दीक्षा ग्रहण किया |

बुरे दौर की मार झेलती जिन्दगी के बीच कई शारीरिक,मानसिक परेशानियां |प्रारंभिक पढ़ाई 12 वी उतीर्ण की | फिर बेरोजगारी की मार दो साल झेलने के बाद,एक नई उम्मीद की किरण | 12 उतीर्ण तो थी ही पर अागे की पढ़ाई से पूर्व ही सरकारी वैकेंन्सी पर स्वास्थ्य विभाग में महिला स्वास्थ़्य कार्यकर्ता के पद पर ओरछा ब्लॉक में पदस्थ हुई | सेवायें अनवरत जारी हैं,बड़े सुकून और खुशी से सुनती जी बताती हैं कि वर्ष 2015 से वे ओरछा ब्लाक में सेवायें दे रही हैं |

उन्होने कई फोटोग्राफ्स पहले के भी भेजे हैं,जो उन्होंने लिये थे,सुनहरी वादियों के बीच भगिनी निवेदिता बनकर सेवा देने वाली सुनती मातलाम गांव गरीब और किसानों की पीढ़ा को जल जंगल और जमीन के बीच रहकर बहुत अच्छी तरह से पहचानती हैं |

वे कहती हैं कि हम तो हर तकलीफ और समस्या से भुगत भोगी हैं,हमें जब मौका मिला है तो सेवा पूरे लगन के साथ देना है,मैं प्वाइंट कर रहा था शायद यही वजह थी जिससे इन्होंने मेरा नंबर लेकर ड्यूटी पर पहले चली गयी | सेवा के इसी भाव से मैं बहुत प्रभावित हुआ,मन ही मन बीहड़ की इस मां आंचल को नमन कर रहा था,छोटे पारानार के संकुल खेल से इटाभट्टी गांव में स्कीन टेस्ट चल रही है,उन्होंने बताया कि हम 12 किमी तय करके छोटे तोंदेबेड़ा,फूलमेटा,मुसनार,से गुजरते हुए 60 किमी दूर गाताकल तक सेवांये देते हैं | बस्तर वाकई खुबसूरत है बस देखने की नजरिया होना चाहिये | अभी तक आंचल मातलाम से कोई संपर्क नहीं हो पाया है,न हीं फोटोग्राफ्स आये हैं हो सकता है वो स्वास्थ्य सेवाओं में मशगुल बीहड़ के किसी गांव में पेज और भात के साथ बीता रही होंगी |

सुनती मातलाम उर्फ आंचल की कहानी विषम परिस्थियों में उपर उठकर बेहतर जीवन की तमन्ना लिये उन हजारों लोगों के लिये आइकन से कम नहीं है |

मैं वादियों की खुबसूरती और बस्तर की जीवट और अनुपम सौन्दर्य को तस्वीरों में निहारता,यहां की मातृ शक्तियों का कारनामा हमें पुरातन संस्कृति और वैभव की याद दिलाता है,मन में सुलझे अनसुलझे सवालों के बीच,अगले संदेश के इंतजार में………चलते हुए,अपने गंतव्य पर |

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