*नीसा नाश चो जड़ आय,खेल लो ने होड़,होउक होउ आय नीर खोर,…* जीवना ने उदिम करतोर होले निसा पान आरू होड़ के छांडतोर आय..जीवना सरग होयसे,,,,,गांव चो बीहता लेका बुदरू चो…जीवना चो गुपलो मुर ले चट ने कमया होतोर चो कहनी……आजी हल्बी कहनी ने पड़ुआं छत्तीसगढ़ बस्तर चो उदेया तारा जुवान साहितकार *विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर* चो कलम चो हिंडा ले…..करम कमई चो नवा उजर कहनी….. *बेर उदली….*

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*बेर उदली*
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गांव चो मुखिया सवकार,मंदहा के बलूआत मतवार,गरीब चो काइं चिन्हा नहीं,काचोय पेट ने बाना नहीं,फेर करम कमई आपलो मांय चो ना बाप चो, जे दिन ले चिपड़ी धरूक सीकलो घर नरक होली,सांगले कहनी,कोन दयसे बनी |
मतवार बुदरू रोजे बूता के झांडून झांडून कुकड़ा हाट बाटे जायसे होड़ खेलूक मान्तर बुदरू नी जाने कि आजी असन होयदे कुकड़ा हाट ने होड़ ने जीतुक की हारूक,कितरोय बरख नाहकली मान्तर केबय असन नी हउ रली | बिधि चो बिधान के,पाहटेया ने चेतलो किसान के कोन जानुक सकेसे, आज गोठ खूबे नसली,रोजे दिन चो लालच आज फंसली | ढुसी चो धान के चोरून लुकुन नीलो आरू मसेया सवकार लगे बीकलो,जोग दखा नसतो बेरा चो बारा ठान कया,जसन लेका लेकी चो मया | फेर आजी होड़ ने पैसा के हारून गेलो,मुंड के थापुन गागलो,आपलो गलती के बिचारून बिचारून आंसू के थेबाउक नी सके,काय करसे रिस काजे थर थरे,बिगर बल चो काय करे | लालच चो घर हाना,काय करे,रिपोट लिखाले ठाना | बेमार आया चो दवई-दारु पीला मन चो सिलट-पिंगसिल,पेट काजे चाउर-कनकी काके सांगे जीव चो करलई के कंदरून-कंदरून कदरई होउन आपलो उपरे रिस होयसे ये काय फांदा ने फंसालीस भगवान महाप्रभु! एदायं मय कसन करूं आंय,हारेक तो जीताउन देउ रतीस| जीवना चो मुर गुपली,जमाय रूपया के तो हारलें कुकड़ा होड़ ने | आया किरिया माटी किरिया आज ले मय ये फांदा ने नी फंसे, कुकड़ा होड़ नी खेलें| असन बिचार बांदते मसेया सवकार लगे बोरा बोहतो हमाल बूता ने तुरते गेलो,सते गोठ आय छुचाय हात जाइ नीहोय लाफी दूर,दखा देउ आय तीन लोक तीनोंपुर| घर दुआर चो किरता ने सवकार लगे बूता करलो रूपेया ने चाउर कनकी आरू गुबी ढेटा खिडींक बंगुला धरून मुसुक ने घरे इलो | गोठ के लोक चो मन जानतोर चीतातोर काजे कांई बेरा नी लागली | आजी बुदरू बिगर सोर चो मातुन जीतलो कुकड़ा संगे झोरा भर साग भाजी, झिल्ली भर चापालाड़ू,चरबन,भजिया,काईं नी आनलो मान्तर बुदरू चो कोमलो थोतना के दखुन सब काईं नी बलत | आजी कोन मांई चो किरपा होली सांज बेरा बेर उदली | काकय काईं बले नहीं काचा किड़ला रादूंन देतो के खादलो आरू चुमुक ने सवलो बुदरू| घर चो लोग अस्तीर ने सवला आज दीयारी दिन असन लागली जमा चो मन ने भीतरे भीतरे हरिक उदिम चो बाजा मोहरी बाजेसे| पहटेया ने नांगर बाटे गेलो आरू येउन भाती पेज पीउन आज बुदरू केबे बूता ने नी जाउ मातून रहू मतवार मसेया सवकार लगे बूता ने रेंगलो | आजी सते बेर उदली |
!✍  © *मुस्कुराता बस्तर*

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