*सेवाभावना ऐसी की रोज अपनी बाइक से ढोते हैं जरूरी समान ताकि जरूरतमंदों की मदद कर सकें*…आदर्श शिक्षक श्रीकांत ने बदली स्कूल की तस्वीर…जहा शिक्षा के साथ-साथ खुशियां बाटते है… कोरबा जिले का प्राथमिक शाला गढ़कटरा…..

कोरबा ब्लॉक का प्राथमिक शाला गढ़कटरा में पदस्थ शिक्षक श्रीकांत एक आदर्श शिक्षक हैं। उन्होंने स्वयं के खर्च से दो दो डिजिटल क्लास शुरू किया है। कक्षा1 और 2 के लिए led टीवी तो कक्षा 3से 5 के लिए प्रोजेक्टर युक्त स्मार्ट क्लास। एक सुविधा विहीन विद्यालय को उन्होंने सुविधाओ से युक्त कर दिया है। अब तक स्कूल के लिए करीब स्वयं के 85 हजार रूपये खर्च कर चुके हैं। स्कूल में कब बुलबुल की गतिविधियाँ भी संचालित होती है। समुदाय के सहयोग से शाला को सभी सुविधाओं से सुसज्जित किया है। उन्होंने स्कूल को *क्लीन स्कूल ग्रीन स्कूल* पर विकसित किया है। स्कूल में औषधि गार्डेन भी है जहां औषधि पौधे रोपे गए हैं। शिक्षण सामग्री और स्कूल की साज सज्जा कबाड़ से किया गया है।

एक आदर्श शिक्षक के साथ ही अच्छे समाज सेवक भी हैं। स्कूल के बच्चों की कटे फ़टे कपड़ो की सिलाई के लिए समुदाय के सहयोग से एक सिलाई मशीन भी लिया है। क्योंकि गाँव में दर्ज़ी की कोई दुकान नही है और बच्चे फ़टे कपड़े पहन ही स्कूल पहुचते थे। इसलिए वे मशीन से खुद कपड़ो की सिलाई करते हैं।

चूँकि समुदाय के अधिकतर परिवार गरीब तबके के हैं जिनके पास सुविधाओं का अभाव होता है। अतः वे उनके लिए चप्पलें, कपड़े गर्म कपड़े, बच्चों को बैग बाँटते रहते हैं। इस वर्ष सर्दी में लगभग 30 कोरवा व् अन्य परिवारों को कम्बलों का वितरण किये है। ये सभी कम्बल कोरवा परिवारों और गाँव के दादा दादियों को बांटे गए। वे सभी मदद अपने दोस्तों से सोशल मीडिया के जरिये प्राप्त करते हैं। गढ़कटरा के अलावा आसपास के गाँव माखुरपानी, खोखराआमा, छातासराई, बाघमारा और अन्य गाँवों में सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।

कहाँ से मिलती है प्रेरणा
श्रीकांत बताते हैं कि उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनके पिता हैं। इस विद्यालय को उनके पिता ने ही 70 के दशक में शुरू किया था। गाँव वाले बताते हैं कि जब गाँव में अकाल पड़ता था तो वे स्कूल में रखी सभी चीजे और घर का चावल लोगों में बाँट देते थे। ताकि लोग अपनी भूख मिटा सकें। यह सब बाते मुझे यहां नियुक्ति के बाद पता चली। चूँकि मेरा बचपन इन जंगलों में ही बीत है इसलिए यहां की परेशानियों से वाकिफ हूँ। मैं भी चाहता था कि किसी ग्रामीण अंचल में अपनी सेवाएं दूं।

सुदूर अंचल में शिक्षक श्रीकांत का शिक्षा के क्षेत्र में यह कार्य निश्चित ही काबिलेतारीफ है।शिक्षा धन ऐसा धन है वह बाटने से और बढ़ता है, खासकर तब जब शिक्षक शिक्षा के साथ खुशियां लेकर आये।छोटी-छोटी जरूरत की चीजें वह स्वयं सहयोग करते है।क्यो न हम भी श्रीकांत जी के इस नेक काम मे सहभागी बनकर कुछ शिक्षा ऋण अदा करे।ताकि छोटे-छोटे बच्चों के चेहरे में मुस्कान आ जाए।क्योंकि किसी ने कितनी खूबसूरत बात कही है कि” प्रकाश की महत्ता तब बढ़ जाती है जहाँ वास्तव में इसकी जरूरत हो,उजाले में तो कोई भी रोशन कर सकता है”।सत्यदर्शन लाइव की पूरी टीम के ओर से ऐसे शिक्षादुत को बारम्बार नमन…..


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