
हवन के दौरान मंत्रों का जाप करने से जो ध्वनि वायुमंडल में गूंजती है उससे कई तरह की ध्वनि तरंगों का संचार होता है जिनका इंसान की जिंदगी पर पॉजिटिव असर पड़ता है…यह ध्वनि शरीर में एनर्जी बढ़ाती है
नवरात्रि में हर घर में हवन पूजन चल रहा है। हिंदू धर्म में सुख-सौभाग्य के लिए हवन की परंपरा सदियों पुरानी है। औषधीय गुणों से भरपूर हवन सामग्री का धुआं हवा में मौजूद वायरस को नष्ट कर वायुमंडल को शुद्ध बनाता है। कोरोना महामारी के दौरान वैज्ञानिकों और धर्मगुरुओं ने इस पर काबू पाने के लिए हवन के महत्व को बताया था। दरअसल, जिस जगह हवन किया जाता है, वहां मौजूद लोगों पर तो उसका पॉजिटिव असर होता ही है। साथ ही वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस के खत्म होने से हवा साफ भी होती है।
हवन में क्यों कहते है ‘स्वाहा’
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही ‘हविष्य’ ग्रहण करते हैं। ‘हविष्य’ आग की लपटों को कहते हैं। इन्हीं आग की लपटों के माध्यम से हम देवताओं का यज्ञ में आह्वान करते हैं।
भगवान कृष्ण ने अग्नि देव की पत्नि स्वाहा को आशीर्वाद दिया था कि देवताओं को ग्रहण करने वाली कोई भी सामग्री बिना स्वाहा को समर्पित किए देवताओं तक नहीं पहुंचेगी। यही वजह है कि हवन के दौरान ‘स्वाहा’ जरूर कहा जाता है।
हवन पर आयुर्वेद विज्ञान की राय
आयुर्वेद विज्ञान की मानें तो हवन के दौरान मंत्रों का जाप करने से जो ध्वनि वायुमंडल में गूंजती है उससे कई तरह की ध्वनि तरंगों का संचार होता है जिनका इंसान की जिंदगी पर पॉजिटिव असर पड़ता है। यह ध्वनि शरीर में एनर्जी बढ़ाती है। इसीलिए घर में हवन करवाना बेहद जरूरी है।
क्या कहते हैं हवन पर हुए वैज्ञानिक शोध
फ्रांस के वैज्ञानिक ट्रेले ने भारत आकर हवन में आम की लकड़ी के इस्तेमाल पर शोध किया। शोध में उन्होंने पाया कि जब आम की लकड़ियां जलती हैं तो फार्मिक एल्डिहाइड गैस पैदा होती है। यह गैस पर्यावरण में खतरनाक बैक्टीरिया को मारने के लिए कारगर है जिससे हवा शुद्ध बनाती है।
हवन से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इसे प्रमाणित करने का दावा किया है। यह अध्ययन अमेरिका की जानी मानी विज्ञान पत्रिका ‘जर्नल ऑफ एविडेंस बेस्ड इंटीग्रेटेड मेडिसिन’ में प्रकाशित हुआ। पतंजलि के शोध पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यज्ञ-हवन पर्यावरण को शुद्ध करने का पारंपरिक तरीका है। हवन से जुड़ा यह पहला वैज्ञानिक प्रमाण है। आचार्य बालकृष्ण इन वैज्ञानिक निष्कर्षों को लेकर कहते हैं कि यज्ञ-हवन को नियम के साथ करने पर पर्यावरण शुद्ध होता है जो कि भारत की प्राचीन परंपरा है।
हवन से क्या फायदे होते हैं
हवन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में जड़ी बूटी, शुद्ध देसी घी, लकड़ियां, कपूर के धुएं से वातावरण शुद्ध होता है जो नेगेटिविटी को दूर करता है। हवन करने से घर को एक हफ्ते के लिए वायरस मुक्त रखा जा सकता है।
गांव में होते थे सामूहिक हवन
पूराने जमाने में गांव में सावन और फाल्गुन के महीने में सामूहिक हवन हुआ करते थे। ये इसलिए होते थे ताकि इन दोनों महीनों में ज्यादा फैलने वाले इंफेक्शन को खत्म किया जा सके। हालांकि, भारतीय परंपरा में हवन के उद्देश्य के हिसाब से हवन-सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मौसम और फसल चक्र को भी ध्यान में रखा जाता है।
गोबर के उपलों से बैक्टीरिया-वायरस होते नष्ट
हवन में गाय के गोबर से बने उपलों का भी इस्तेमाल करते हैं, जिनसे हवा में मौजूद 94 प्रतिशत बैक्टीरिया और वायरस का नष्ट हो जाते हैं। हवन करवाने से न सिर्फ घर की शुद्धि होती है बल्कि आत्मा भी शुद्ध हो जाती है। हवन करवाने से संजीवनी शक्ति का संचार होता है और कई बीमारियों से छुटकारा भी मिलता है।
औषधीय धूएं से इलाज
औषधीय धुएं से इलाज, समय, लक्षण, रोग के हिसाब से किया जाता है। आयुर्वेद में कई तरह की जड़ी बुटियों का इस्तेमाल करके इलाज किया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर यह धुआं नाक के जरिए ब्लड में घुलकर अपना असर दिखाता है।अथर्ववेद में कहा गया है कि यज्ञ मौत के मुंह से बचाने की ताकत रखता है। यज्ञ के औषधीय धुएं से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य मिलता है।
ऋग्वेद में भी हवन का जिक्र है
ऋग्वेद की मानें तो हवन एक असरदार क्रिया है जो वातावरण और इंसानों दोनों के लिए बेहद फायदेमंद है, इससे घर पवित्र और प्रदूषण मुक्त होता है। हवन करवाने से न सिर्फ दिल और दिमाग को सुकून मिलता है बल्कि शारीरिक क्षमता भी बढ़ती है। बीमारियां दूर रहती हैं।
हवन कुंड बना कर उसे गाय के गोबर से लेपन करें और आटे से चौक बना लें।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, हवन-पूजा करने से ब्रह्माण्ड में पॉजिटिव एनर्जी बहती है। वातावरण से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है। इसलिए नए घर में जाने से पहले वास्तु दोषों को दूर करने के लिए सबसे पहले हवन कराया जाता है। वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार, भवन में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों का संतुलन वहां रहने वालों को सुखी और संपन्न बनाए रखने में मदद करता है। घर में किसी तरह का कोई वास्तु दोष न रह जाए, इसलिए घर बनने से पहले भी शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और शिलान्यास में मंत्रोच्चार के साथ हवन किया जाता है। ताकि घर के अंदर और बाहर का वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहे।
हवन में तांबे के बर्तन का इस्तेमाल
पूजा पाठ में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल करना शुभ होता है। तांबे में किसी भी तरह की धातु की मिलावट नहीं की जाती है। जिसके कारण यह शुद्ध होता है। तांबे के बर्तन इस्तेमाल करने से कुंडली में सूर्य, चंद्रमा और मंगल की स्थिति मजबूत होती है। हवन के समय तांबे के बर्तन से जल चढ़ाने पर इंद्रियां एक्टिव होती हैं और तन-मन पॉजीटिव एनर्जी से भर जाता है।वैज्ञानिक शोध के अनुसार तांबा सेहत के लिए अच्छा है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरिया जैसे तत्व पाए जाते हैं जो सेहत दुरूस्त करते हैं।
पूजा में तांबे का बर्तन इस्तेमाल करने की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में गुडाकेश नाम का एक राक्षस ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा, तब राक्षस ने कहा कि मेरी मृत्यु आपके सुदर्शन चक्र से हो और मरने के बाद मेरा शरीर तांबे का हो जाए जो पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाए। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस के टुकड़े कर दिए। गुडाकेश के मांस से तांबे की धातु का निर्माण हुआ। इसी कारण भगवान विष्णु की पूजा के लिए तांबे के बर्तन का इस्तेमाल होता है।”