
लोक कलाकार की प्रेरणादायी सफर…सांस्कृतिक विरासत के संवाहक बने ताकि आने वाली पीढियां वास्तविक स्वरूप को जाने समझे..गोविंद प्रसाद साहू(साव)
कमलेश यादव,रायपुर:-हमारा देश महान कलाकारों की भूमि रहा है। फिर चाहे बात चित्रकला की हो, संगीत की हो या फिर नृत्य की।आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ की माटी के लिए संकल्पित ऐसे लोक कलाकार की जिसने अपनी पूरी जिंदगी कला को समर्पित कर दिया है।छतीसगढ़ के अनेक लोक सांस्कृतिक मंचों व प्रमुख संस्थाओं में संगीत निर्देशन व बेंजो वादन में अपनी अलग पहचान बनाने वाले गोविंद प्रसाद साहू (साव)।छत्तीसगढ़ में सुप्रसिद्ध चंदैनी गोंदा में सहभागिता बतौर निर्देशन एवं बैंजो वादन।आज भी दिन की शुरुआत कला से होती है।राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों के साथ जैसे अनूप जलोटा जी के भजनामृत आडियो कैसेट में बैंजो वादन,मशहूर फिल्मी पार्श्व गायक / गायिकाओं के साथ काम कर चुके है।
संस्कारधानी राजनांदगांव की वो स्वर्णिम सुबह 04-09-1971 जब गोविंद साहू जी का जन्म हुआ था।किसी ने सोचा भी नही था दैवीय आभा से आलोकित यह बालक एक दिन लोक कला के क्षेत्र में कीर्तिमान रचेगा।पिताजी स्व.डा.धनेश राम साहू आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी के रूप में राजनांदगांव में पदस्थ थे।शिक्षा इलेक्ट्रिक डिप्लोमा में हुई है चूकिं बचपन से एक ही ख्वाब था माइनिंग इंजीनियर बनने की लेकिन 12वी के बाद स्व.खुमान साव के सान्निध्य में चंदैनी गोंदा मंच से संगीत का सफर शुरू हुआ।
स्वर्णिम संघर्षों का दौर
अतीत की यादें चाहे संघर्ष भरा क्यो न हो लेकिन जब भी याद करता हु रोमांचित हो जाता हूं।आज भी मुझे वह दिन याद है राजनांदगांव शहर की कृष्णा टाकीज जिसमे कर्मा फ़िल्म लगा हुआ था।कर्मा फ़िल्म का वह गाना दिल दिया है जान भी देंगे में बैंजो वादन मेरे दिलोदिमाग में रच बस गया।उस दिन से मेरी जिंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ।छत्तीसगढ़ से सफर की शुरुआत हुई और मुंबई की तंग गलियों में संघर्षों का दौर।मशहूर बेंजोवादक स्व. गिरजाशंकर सिन्हा ने मार्ग प्रशस्त किया।मुंबई में 2001 से संघर्ष करते रहे।वहां भीड़ में स्वयं का अलग पहचान अपनी मेहनत के दम पर बनाया।पर पारिवारिक कारणों के वजह से छत्तीसगढ़ की धरती में फिर से आना हुआ।अब तक छत्तीसगढ़ के साथ मुंबई व कटक के रिकार्डिंग स्टूडियों में अनेक ख्याति प्राप्त गायक/गायिकाओं के 3000 हजार से अधिक फिल्मों व एलबमों में संगीत पक्ष में अपना सक्रिय योगदान दे चुके है।
मूलरूप में लोक कला लोकगाथाएँ सम्पन्न है।जीवंतता बनाये रखने के लिए प्रयासरत है।वर्तमान में पाश्चत्य शैली की ओर लोगो का रुझान होने से मौलिकता भंग हो रही है।हमे अपनी संस्कृति के ऊपर गर्व होनी चाहिए।सांस्कृतिक विरासत के संवाहक बने ताकि आने वाली पीढियां वास्तविक स्वरूप को जाने समझे….गोविंद साहू
सम्मान
साक्षरता लोक कला महोत्सव, जांजगीर संगीत शिखर सम्मेलन एवं मानस मेला ज्ञान यज्ञ महोत्सव,नेहरू युवा केन्द्र राजनांदगांव, सामुदायिक विकास विभाग, बालको क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक परिषद एवं कल्याण विभाग,राज्य युवा महोत्सव,छत्तीसगढ़ी लोक कला उन्नयन मंच,प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज,अखिल भारतीय दलित साहित्य अकादमी के अलावा हजारो मंचो पर सम्मान प्राप्त हो चुका है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक कलाकारों लक्ष्मण मस्तुरिया ,मुकुंद कौशल, जीवन यदु राही, पवन दीवान, के गीतों में बेंजोवादन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।संगीत अथाह का सागर है छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के लिए समर्पण एवं सहभागिता में खुशी होती है।वर्तमान में नवोदित कलाकारों को एक मंच प्रदान करना ताकि छत्तीसगढ़ी साहित्य संस्कृति जीवंत रहे।
युवाओ को सन्देश
मैंने 30 वर्ष का संगीत का स्वर्णिम सफर तय किया है अपने जिंदगी का निचोड़ बताना चाहूंगा हमेशा मूल स्वरूप को बचाकर रखे।संगीत का कोई विरासत नही होता है जो इसे साधता है उसी का हो जाता है।इसीलिए साधना में ध्यान दे।क्योकि संगीत के अनेकानेक फायदे है जिसे शब्दो मे बता पाना मुश्किल है।स्वास्थ्य से लेकर हमारे दिनचर्या में संगीत की अहम भूमिका है।प्रसिद्ध तानसेन और बैजू बावरा जब संगीत का तान छेड़ते थे तो आसमानों में मेघ आ जाया करता था।बुझी हुई दीपक में लौ आ जाता था।ईश्वरीय शक्ति संगीत में समाहित है।
संगीत है शक्ति ईश्वर की हर सुर में बसे है राम,रागी जो सुनाए रागिनी रोगी को मिले आराम।लोक कलाकार होना अपने आपमे गर्व की बात है।नवोदित कलाकारों के लिए भी अपने जीवन को समर्पित कर दिए है,छत्तीसगढ़ की धरती में रचे बसे गोविंद प्रसाद साहू (साव)को सत्यदर्शन लाइव का सलाम।
कहानी पर आप अपनी प्रतिक्रिया satyadarshanlive@gmail.com भेज सकते हैं और पोस्ट अच्छी लगी तो शेयर अवश्य करें।