
माँ को खत…मेरी अस्तित्व का रोम रोम तुमसे ही बना है…मेरे सोचने से पहले ही मैं क्या सोच रहा हु यह तुम्हे पता चल जाता है…कितना विशाल ह्रदय है माँ तुम्हारा और कितना असहाय और हारा हुआ हूँ मैं
कमलेश यादव:भगवान को तो हमने कभी नही देखा जिसने जैसा पाया वैसी कल्पना करते हुए उन्हें माना है लेकिन माँ इस धरती में कुदरत का दिया वरदान है उसकी ममता की गहराई को नापना नामुनकिन है।मेरी माँ कुछ दिनों से अस्पताल के icu में एडमिट है उसके कहे गए शब्द रह रहकर मेरी अंतर्मन में गूंजती रहती है।खुद कुछ नही खाई है लेकिन वह icu में रहते हुए लड़खड़ाते जुबान से पूछ रही है खाना खाये हो कि नहीं।आंखों के सामने माँ के रूप में मैंने स्वयं ईश्वर को देखा ऐसा महसूस हुआ।माँ तुम कितनी महान हो।अस्पताल के बेड पर ऐसा तड़पता देखकर खुद से हजारों सवाल करता हूं। मेरी अस्तित्व का रोम रोम तुमसे ही बना है।मेरे सोचने से पहले ही मैं क्या सोच रहा हु यह तुम्हे पता चल जाता है।कितना विशाल ह्रदय है माँ तुम्हारा और कितना असहाय और हारा हुआ हुं मैं।
दुनिया को बनाने वाले ने सब कुछ बना तो दिया लेकिन उसके रखरखाव और पोषित करने का जिम्मा माँ को सौंपा है।तुम्हारी उपस्थिति में खुद को सुरक्षित महसूस करता हूँ माँ।आज ऐसा लग रहा है आकाश की ऊंचाइयों से जोर जोर से आवाज करूँ माँ माँ माँ माँ माँ माँ माँ ताकि ऊपर बैठे नीली छतरी वाले तक मेरी आवाज तो पहुंचे।
कितनी सहज और सरल हो माँ।तुम्हारी महानता लिखने के लिए पूरे ब्रम्हांड में कोई शब्द ही नही है।मेरे ह्र्दय की धड़कन तुमसे जुड़ी हुई है मेरा हरेक अंग तुमसे ही तो बना है।आज एकाकार हो गया हूँ।जुड़ रहा हूं तुमसे जो काफी दिनों से अलग था।इस दुनिया को जिसने रचा है उसे प्राथना करता हूं।”दुनिया को बनाने वाले ईश्वर आप तो डॉक्टरों के डॉक्टर और वैद्दो के वैद्य हो।आप जो चाहे हो सकता है।मेरी माँ को स्वस्थ कर अपनी करुणा का पात्र बना।मेरे द्वारा किये गए हर अच्छे कार्य का प्रतिफल माँ को समर्पित कर।