आधुनिक समय में विलुप्त होने के कगार पर खड़ी “दुर्लभ जड़ी-बूटियों” को संरक्षित और पुनर्जीवित करने वाली अपूर्वा त्रिपाठी

कमलेश यादव : जिस तरह मां दंतेश्वरी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं, उसी तरह अपूर्वा त्रिपाठी दूरस्थ वनांचलों में रहने वाले आदिवासी परिवारों को आत्मनिर्भर बनाकर उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं। साथ ही उन्होंने आदिवासियों के साथ मिलकर प्रकृति से प्राप्त दुर्लभ जड़ी-बूटियों को संरक्षित कर पुनर्जीवित किया है, जो आधुनिक समय में विलुप्त होने के कगार पर थीं। अपूर्वा जी ने बताया कि माँ के आशीर्वाद और प्रेरणा से ‘माँ दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप’ की स्थापना हुई। ईमानदार प्रयासों के परिणामस्वरूप इसे भारत के पहले प्रमाणित जैविक हर्बल फार्म का दर्जा प्राप्त हुआ है, जिसने देश-विदेश में ख्याति प्राप्त की है। इस समूह को उत्कृष्ट गुणवत्ता के कारण सर्वश्रेष्ठ एक्सपोर्टर का पुरस्कार मिला है।

आदिवासी समाज मे बदलाव की क्रांति
गौरतलब है कि आदिवासी समाज को पारंपरिक जड़ी-बूटियों और हर्बल औषधियों का विस्तृत ज्ञान है, लेकिन उनके ज्ञान और श्रम का कोई मूल्य नहीं था। उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए 700 से अधिक आदिवासी परिवारों को माँ दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप में शामिल किया गया। ये परिवार न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि हर्बल खेती के जरिए अपनी सामाजिक स्थिति में भी सुधार किया है। आदिवासियों के प्राचीन ज्ञान और अपूर्वा की आधुनिक तकनीक ने मिलकर सतत विकास की नींव रखी है।

दुर्लभ जड़ीबूटियों का संरक्षण
अपूर्वा त्रिपाठी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। ‘माँ दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप’ द्वारा दुर्लभ जड़ी-बूटियों का संरक्षण किया गया है जो रेड डाटा बुक में सूचीबद्ध हैं और विलुप्त होने के कगार पर हैं। अपूर्वा जी का उद्देश्य न केवल हर्बल उत्पादों को बढ़ावा देना है बल्कि उन जड़ी-बूटियों का संरक्षण करना भी है जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।

समर्पण और परिश्रम का पुरस्कार
अपनी लगन और मेहनत के कारण अपूर्वा त्रिपाठी को 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उनके नेतृत्व कौशल और प्रयासों ने ‘माँ दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप’ को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। यह सम्मान न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि का प्रतीक है, बल्कि इस समूह से जुड़े सभी आदिवासी परिवारों के समर्पण का भी प्रमाण है।

समाज सेवा में योगदान
देश के सबसे पिछड़े आदिवासी क्षेत्र कहे जाने वाले बस्तर कोंडागांव की अपूर्वा त्रिपाठी कृषि के क्षेत्र में एक युवा रोल मॉडल और नई प्रेरणा बनकर उभरी हैं।उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो समाज के सबसे वंचित तबके के उत्थान के लिए काम करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी सफलता को केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। सही दिशा में प्रयास और दृढ़ संकल्प समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

अपूर्वा त्रिपाठी ने न केवल हर्बल उत्पादों के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, बल्कि सीमित संसाधनों वाले आदिवासी परिवारों के जीवन को भी बदल दिया है। उनका काम इस बात का उदाहरण है कि जब कोई व्यक्ति अपने समाज की बेहतरी के लिए काम करता है तो बड़े बदलाव कैसे संभव हो सकते हैं।

 


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