
दिल तो बच्चा है जी…आओ! हम सब एक सशक्त, सुदृढ़, संस्कारयुक्त व भ्रष्टाचारमुक्त भारत निर्माण के लिए बच्चों को अपना आदर्श बनाएं…उनसे जीवन प्रबंधन सीखें
गोपी साहू :आज के दौर में हम जैसे-जैसे बड़े होते है। वैसी ही हमारी सोच छोटी होती जाती है। जिसके कारण हम अपनी जिंदगी का असली मजा लेना भूल जाते है। इतनी व्यस्त जिंदगी हो जाती है कि खुद को समझने के लिए समय नही होता है। इसके साथ ही हम अपने परिवार और सभी लोगों से दूर होते जाते हैं। एक दिन ऐसा आता है कि हम अकेले हो जाते है। फिर आपको अकेलापन घेर लेता है। समझ में नही आता कि क्या करें। यह वही व्यक्त होता है जब हम कहते है कि काश बचपन वापस आए जाए
चंचलता बच्चों का प्रमुख चरित्र है,परंतु उनका दिल वैमनस्य रहित व साफ होता है। वे स्थायी शत्रुता नहीं पालते। जितनी जल्दी कुट्टी करते हैं,उससे जल्दी मिल जाते हैं। मैंने अक्सर देखा है कि पड़ोस में बच्चों का आपस में झगड़ा होने पर उनके मां-बाप भी झगड़ा कर लेते हैं। कुछ दिन बाद बच्चे फिर भी एक हो जाते हैं। साथ खेलते हैं, बातें करते हैं, परंतु बड़ों की बोलचाल बंद ही रहती है। बच्चों से हमें सेवाभाव की भावना सीखनी चाहिए। विद्यालय में बच्चे स्वच्छता कार्यक्रमों, रैलियों, पर्यावरण गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, निर्माण कार्य, श्रमदान, आवाभगत, विद्यालय व कक्षा कक्ष की सुसज्जता, कैंपस सौंदर्यीकरण इत्यादि में पूरी तन्मयता से अपना श्रेष्ठतम देते हैं। वे अपने स्कूल अध्यापकों-सहपाठियों से निस्वार्थ प्रेम करते हैं
फीलिंग्स को जाहिर करें
बच्चें अपनी फीलिंग्स को अच्छी तरह से व्यक्त कर देते है। जब उनका रोना का मन होता है वो रो लेते है। जब हसनें का मन होता है तो हंस लेते है। उन्हें इस संसार से कोई मतलब नही होता है। इसी तरह आप बी किसी भी बात की फिक्र न करें। आप घुट-घुट कर न जिेएं। जब मन हो वो काम करें।
नकल करना सीखें
बच्चें को हम जब चिढाते है तो वह भी वैसे ही करने लगते है। उन्हें किसी बात की चिंता नही होती है कि हम क्या कर रहे है। इससे इनका दिमाग भी तेज होता है दूसरें इस बात में क्या बोलेगें। उसी तरह हमें भी करना चाहिए। इससे हमारा दिमाग भा तेज होगा। साथ ही अच्छा लगेगा
बच्चों को सभी से दोस्ती करना अच्छा लगता है। वह कभी दोस्ती में यह नही देखते कि वह कौन है, क्या करता है, अमीर है या गरीब। बस वह उस इंसान को देखते है। आप भी इसी तरह बनिए जो देस्ती के लायक है उससे दोस्ती करें न कि किसी के स्टेट्स को देखकर करें
बच्चें हर चीज हर बात को आसानी से भूल जाते है और हर भूल को माफ कर देते है। लेकिन हम लोग किसी बात को जल्दी भूल नही पाते है। हर बात करते हुए कुढ़ते रहते है। इसलिए हमें एक बच्चें की तरह बनना चाहिए। जिससे कि आप हर सभी को माफ कर सकें। और जिंदगी का मजा ले सके
बच्चों को देखा है आपने उन्हें किसी बात की टेंशन नही होती है। बीमार भी होते है तो भी एक दम फ्री होकर खेलते है। इसी तरह आप भी छोटी-छोटी बातों में टेंशन न लें। हमेशा सकारात्मक सोचें। कोई टेशन हो तो उसका बार-बार जिक्र न करें। अच्छा सुनें और हमेशा अच्छा बोलें
मुस्कराते रहे।
जब कोई बच्चा रोता है तो वह जल्द ही हंस भी देता है। क्योंकि उसका दिल खुश होता है। इसी तरह आप भी हमेशा मुस्कराते रहें। हमेशा सकारात्मक सोचें। और अपनी तरफ से सबसे अच्छा करने का प्रयास करें
जो है वही बने रहे
बच्चों को देखिए वह जिस काम को करते है। उसी में रहते है। किसी बात की उन्हें फिक्र नही होती है। उन्हे सिर्फ अपनी चिंता रहती है। वह बाहर का दिखावा नही करते है। यह बत आप उनसे सीख सकते है
आओ! हम सब एक सशक्त, सुदृढ़, संस्कारयुक्त व भ्रष्टाचारमुक्त भारत निर्माण के लिए बच्चों को अपना आदर्श बनाएं। उनसे जीवन प्रबंधन सीखें। अंत में प्रख्यात शायर मुनव्वर राणा के अश’आर पर गौर करें : ‘मेरी ख्वाहिश है कि फिर से मैं फरिश्ता हो जाऊं। मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं।’ बच्चों की मासूमियत हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। वास्तव में बच्चे किसी से वैर भाव नहीं रखते हैं। उनकी अगर किसी से लड़ाई हो भी जाती है, तो भी वे इसे जल्दी ही भूल जाते हैं। बच्चे साफ मन के होते हैं तथा नफरत-विहीन समाज के निर्माण के लिए ऐसा मन जरूरी है