
स्वावलंबी…..ट्रेन में दोनों पैर कट जाने के बावजूद हार नहीं मानी…आज हैं सफल उद्यमी…संस्कारधानी के दिव्यांग दिनेश टांडेकर की प्रेरणादायी कहानी
कमलेश यादव;कई बार आपको लगता है कि जिंदगी आपके साथ इंसाफ नहीं कर रही है और आप अपनी मंजिल को पाने से पहले ही हार मान लेते हैं. लेकिन, कुछ ऐसे इंसान भी होते हैं जिनके हौसलों की कहानी आपको फिर से अपनी मंजिल की तरफ उठ खड़े होने के लिए मोटिवेट करती है. कुछ ऐसी ही कहानी आज हम यहां आपके लिए लेकर आए हैं.हमारे आस पास असल जिंदगी के कुछ ऐसे हीरो हैं जो दिव्यांग होने के बाद भी थके नहीं, हारे नहीं। उन्होंने ऐसे उदाहरण पेश किए जो सामान्य इंसान के लिए भी नामुमकिन सा है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव जिले में दिव्यांग दिनेश टांडेकर का छोटी सी गुमटी है जिसमे वह जूते चप्पल बेचने के साथ रिपेरिंग का कार्य करते है।2010 में एक ट्रेन हादसे में अपने दोनो पैर गंवा चुके है।सत्यदर्शन लाइव को उन्होने बताया कि “जो नही है उसके शोक में डूबे रहने से अच्छा,जो है उसका जश्न मनाते हुए कार्य करने से सफलता की गारंटी बढ़ जाती है”।अपनो का साथ हो तो मुश्किल घड़ी भी आसान बन जाती है।
सुबह 10 बजे से वह अपनी दुकान में पहुंच जाते है और देर रात तक खूब मेहनत करते है।शुरुआत में ऐसा कई बार हुआ है कि एक भी ग्राहकी नही हुई फिर भी चेहरे में थोड़ा भी शिकन नही और ऊपर वाले के लिए सदैव धन्यवाद की भाव ने हमेशा उत्साहित रखा हुआ है।आज परिवार का जीवकोपार्जन बेहतर तरीके से इस छोटी सी दुकान के भरोसे हो जाती है।
अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना और हौसला हो तो अक्षमता भी आड़े नहीं आती है।दिनेश टांडेकर जैसे स्वावलम्बी युवक कभी रुके नहीं, थके नहीं और दुनिया को बताया दिव्यांगता आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।अक्सर देखने को मिला है कि “छोटे शहरों में हर कोई बस यहीं सोचता है कि लोग क्या बोलेंगे।”इन्ही चीजों से ऊपर उठकर ही बेहतर उद्यमी की राह बन सकती है।