
बुजुर्ग महिलाओं के सपनों को साकार करने वाली अद्भुत पहल…महिलाएं गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर, अपने किताबों और स्लेट के साथ स्कूल आती हैं, जैसे वे अपने बचपन के स्कूल के दिनों को फिर से जी रही हों
गोपी : महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक छोटे से गांव फांगणे में स्थित “आजीबायची शाला” (दादी-नानी का स्कूल) एक अनोखी पहल है, जो यह सिद्ध करती है कि उम्र कभी भी शिक्षा पाने की राह में बाधा नहीं बन सकती। यह स्कूल उन बुजुर्ग महिलाओं के लिए स्थापित किया गया है, जो अपने जीवन में कभी स्कूल नहीं जा पाईं या शिक्षा अधूरी रह गई थी। यहां 60 से 90 वर्ष की महिलाएं शिक्षा ग्रहण करने आती हैं और अपने सपनों को साकार करने के लिए एक नई शुरुआत करती हैं।
यह स्कूल, महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र बांकर द्वारा शुरू किया गया था, जिनका उद्देश्य था कि समाज के उस वर्ग को शिक्षा दी जाए जो अब तक इससे वंचित था। इस अनूठी पहल का मकसद बुजुर्ग महिलाओं को साक्षर बनाना और उनके आत्मसम्मान को बढ़ावा देना है। महिलाएं गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर, अपने किताबों और स्लेट के साथ स्कूल आती हैं, जैसे वे अपने बचपन के स्कूल के दिनों को फिर से जी रही हों।
आजीबायची शाला की कक्षाओं में पढ़ाई का माहौल पूरी तरह से अनौपचारिक और सहज होता है, जहां महिलाएं बिना किसी दबाव के अक्षरज्ञान, गणित और सामान्य ज्ञान सीखती हैं। शिक्षक उन्हें बड़ी धैर्यता से पढ़ाते हैं और महिलाएं भी बेहद उत्साह से हर पाठ में भाग लेती हैं। यह सिर्फ शिक्षा का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मार्ग भी दिखाता है।
इस पहल के पीछे एक और बड़ी सोच यह है कि बुजुर्ग महिलाएं अपने बच्चों और नाती-पोतों के साथ बेहतर संवाद कर सकें और आधुनिक दुनिया की ओर आत्मविश्वास से कदम बढ़ा सकें। यहां पढ़ने वाली कई महिलाएं कहती हैं कि वे पहले केवल अपने नाम तक नहीं लिख पाती थीं, लेकिन अब वे किताबें पढ़ने और लिखने में सक्षम हो रही हैं।
“आजीबायची शाला” ने यह साबित कर दिया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, और जीवन के किसी भी मोड़ पर शिक्षा शुरू की जा सकती है। इस स्कूल ने न केवल उन महिलाओं के जीवन को एक नई दिशा दी है, बल्कि समाज को भी यह संदेश दिया है कि इच्छाशक्ति और समर्पण के साथ हर सपने को साकार किया जा सकता है।