जिस उम्र में लोग अपने काम से रिटायरमेंट ले लेते हैं,उस उम्र में डॉक्टर साहब हर रोज 16 से 18 घंटे काम करते हैं…यही नहीं, ये अपने मरीजों के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं… जरूरत पड़ने पर ये रातभर जाग कर अपने मरीजों की सेवा करते हैं

लोगों को ठीक करने और उनकी जान बचाने के कारण डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है। बदलते दौर में इस भरोसे को कायम रखना मुश्किल है। अब भगवान का दर्जा कम ही डॉक्टरों को मिल पाता है। डॉक्टर की मोटी फीस और महंगे इलाज के कारण अब उन्हें भी दूसरे प्रोफेशनल के जैसा ही समझा जाने लगा है, लेकिन आज भी कुछ ऐसे डॉक्टर हैं जो अपने पेशे से समाज सेवा करते हैं।

उन्हीं में से एक हैं बिहार के शेखपुरा के डॉ. रामनंदन सिंह। वे पिछले 35 सालों से पूरी तरह से समाज के लिए समर्पित हैं। दुनिया इन 35 सालों में कहां से कहां पहुंच गई, लेकिन डॉक्टर साहब की फीस में मामूली बदलाव ही हुआ। जिस उम्र में लोग अपने काम से रिटायरमेंट ले लेते हैं, उस उम्र में डॉक्टर साहब हर रोज 16 से 18 घंटे काम करते हैं। यही नहीं, ये अपने मरीजों के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। जरूरत पड़ने पर ये रातभर जाग कर अपने मरीजों की सेवा करते हैं।

मरीजों के लिए भगवान से कम नहीं
डॉ. रामनंदन जनरल फिजिशियन हैं। वे सभी नॉर्मल बीमारियों का इलाज करते हैं। इनकी क्लिनिक में हर दिन काफी लंबी भीड़ रहती है। जो मौसम के अनुसार बढ़ती-घटती रहती है।68 साल के डॉ. रामनंदन सिंह पटना से 100 किलोमीटर दूर, शेखपुरा जिला के बरबीघा के रहने वाले हैं। उन्होंने राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज रांची से मेडिकल की पढ़ाई 1982 में पूरी कर ली थी। पढ़ाई पूरी होने के बाद डॉ. रामनंदन अपने मूल निवास वापस आ गए। जब क्लिनिक ओपन किया तब इनकी फीस मात्र 5 रुपए थी।

डॉ. रामनंदन बताते हैं, ‘डॉक्टरी की पढ़ाई मैंने लोगों की सेवा करने के लिए ही की थी। पढ़ाई पूरी हुई तो मेरे कई जानने वाले बड़े शहरों में शिफ्ट हो गए। मैं अपने लोगों की मदद करना चाहता था इसलिए मैं उनके बीच रहने वापस आ गया। जब मैंने बरबीघा में क्लिनिक खोली तब मेरी फीस 5 रुपए ही थी। धीरे-धीरे मेरे पास काफी मरीज आने लगे तो मुझे क्लिनिक पर काम करने वाले स्टाफ को बढ़ाना पड़ा। 15 साल के बाद मेरी फीस 5 से 20 और फिर 35 और अब 50 रुपए हुई। कई बार तो जरूरत पड़ने पर मैं फीस भी नहीं लेता हूं, क्योंकि मेरे लिए मरीजों की तकलीफ के आगे पैसे कुछ नहीं हैं।’इतनी कम फीस क्यों है, पूछने पर डॉक्टर साहब का कहना था कि यहां लोगों के पास पैसा नहीं है। यहां सुविधाएं भी कम हैं इसलिए वे चाहते हैं कि पैसों के कारण कोई तकलीफ में न रहे।

हर दिन 150 से 200 मरीजों का करते हैं इलाज
डॉ. रामनंदन कहते हैं, ‘मैं सामान्य रूप से सभी बीमारियों का इलाज करता हूं। हर दिन मेरे पास 150 से 200 मरीज आते हैं, लेकिन गर्मियों में इनकी तादाद बढ़ जाती है। गर्मियों में इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है जिस वजह से मेरे पास हर दिन करीब 300 मरीज होते हैं, सर्दियों में थोड़े कम हो जाते हैं। मैं अपने मरीजों के लिए सुबह 8 बजे से लेकर रात के 10 बजे, कभी-कभी 12 बजे तक मौजूद रहता हूं। इसके बाद भी यदि कोई गंभीर रूप से बीमार मरीज आधी रात को आता है, तो रात को भी जाग कर कई बार इलाज करता हूं। मेरी क्लिनिक पर आसपास के 40 से 45 गांव के मरीज आते हैं।’

डॉक्टर साहब गांव-गांव घूमकर लोगों को करते हैं जागरूक वैसे तो डॉक्टर साहब काफी बिजी रहते हैं, लेकिन जब भी समय मिलता है लोगों को जागरूक करने के लिए गांव- गांव जाकर कैंप लगाते हैं। बीमारी का इलाज करने के अलावा लोगों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग देते हैं।

रामनंदन बताते हैं, ‘जहां मैं रहता हूं वहां के आस-पास के लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है। उसमें भी सब छोटे-छोटे किसान हैं। यहां के लोगों के पास न तो ज्यादा पैसा है न ही वे स्वस्थ से जुड़ी बुनियादी बातों से अवगत हैं।

इसी वजह से यहां लोगों के लिए फीस के अलावा और भी कई बातें मायने रखती हैं। गांव में काफी बुजुर्ग मरीज हैं जो आसानी से कहीं आ जा नहीं सकते हैं। उनके लिए गांव में कैंप लगता हूं और उनका इलाज करता हूं। कैंप के दो मकसद होते हैं एक तो लोगों को उनकी सेहत के लिए जागरूक करना, फर्स्ट ऐड का इस्तेमाल करना और संक्रामक बीमारियों से बचने का तरीका बताना। दूसरा उन्हें ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या मोतियाबिंद जैसी बीमारियों में ख्याल रखने का तरीका बताना।’

कम पैसों में घर और क्लीनिक कैसे चलता है?
क्लीनिक पर 15 से 20 लोगों का स्टाफ है। उनकी सैलरी कैसे मैनेज कर पाते हैं?ये पूछने पर डॉक्टर साहब ने बताया, ‘अमूमन खर्चा तब ज्यादा होता है जब आपकी जरूरतें भी ज्यादा होती हैं। जरूरतों को समेट लिया जाए तो खर्च भी कम हो जाता है। यही कहानी है मेरी। गांव में मेरी 5 एकड़ जमीन है जिस पर खेती होती है। इससे भी कुछ इनकम हो जाती है। मेरे दो लड़के हैं, बड़ा लड़का कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में मेडिकल ऑफिसर है और दूसरा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। इस तरह हमारा परिवार स्वास्थ्य सेवा और सादा जीवन में विश्वास रखता है। जो भी कमाई होती है उससे हमारा घर और क्लिनिक अच्छे से चल जाता है।’

कोरोना काल में घर जाकर की लोगों मदद
उम्र की इस दहलीज पर भी डॉक्टर साहब लोगों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। उनका मानना है की जब हम दूसरों के लिए अच्छा करते हैं तो भगवान हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।डॉक्टर साहब तब भी लोगों की मदद से पीछे नहीं हटे जब पूरी दुनिया में कोरोना ने तबाही मचा रखी थी। डॉ रामनंदन कहते हैं, ‘अगर मेडिकल की बाते करें तो बिहार में दूसरे राज्यों के मुकाबले कम सुविधाएं हैं। यहां कोरोना में लोग डरे-सहमे हुए थे। कोई कहीं जाना पसंद नहीं करता था। मैंने अपनी सेवा पहली लहर या दूसरी लहर में बिना किसी बात की परवाह किए जारी रखी। इस दौरान हमेशा पूरी सतर्कता बरती, ताकि मेरी वजह से मेरे परिवार को कोई खतरा न हो। बाकी भगवान ने साथ दिया।’

डॉ. रामनंदन के एक मरीज प्रमोद कुमार सिंह बताते हैं, ‘मैं डॉक्टर साहब को पिछले 30 सालों से जानता हूं। पहली बार मैं उनसे बुखार का इलाज कराने आया था। तब से किसी भी परेशानी में इन्हें ही मिलता हूं। डॉक्टर साहब लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसे कम ही डॉक्टर होते हैं जो महामारी जैसी आपदा में अपनी परवाह किए बगैर दूसरों के बारे में सोचें और लोगों के घर जाकर भी उनकी मदद करें।’


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