लुईस ब्रेल…आंखों में रोशनी नही है तो क्या हुआ जो है उसी का आनंद लेकर आगे बढ़ने वाले लोगो की ढ़ेरो कहानियों से भरी है यह दुनिया

“जो लोग देख नहीं सकते, वो भी लिखने-पढ़ने के लिए ब्रेल लिपि का यूज करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है, दुनिया को ब्रेल लिपि देने वाले लुई ब्रेल भी देख नहीं सकते थे? बचपन में उनकी आंखों की रोशनी चली गई। फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसने सभी नेत्रहीनों की दुनिया बदल दी।”

प्रत्येक वर्ष 04 जनवरी को ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुईस ब्रेल के जन्म के सम्मान में ‘विश्व ब्रेल दिवस’ मनाया जाता है. ब्रेल के आविष्कार के कारण दुनिया भर में नेत्रहीन लोग बेहतर जीवन जी रहे हैं. लुईस ब्रेल का जन्म 04 जनवरी, 1809, को पेरिस के पास कूपव्रे में हुआ. वह एक फ्रांसीसी शिक्षक थे जिन्होंने प्रिंटिंग और लेखन की एक ऐसी प्रणाली विकसित की, जिसे ब्रेल लिपि कहा जाता है. इसे बड़े पैमाने पर नेत्रहीनों द्वारा लिखने और पढ़ने के लिए उपयोग किया जाता है.

3 साल की उम्र में खोई आंखें
लुईस ब्रेल जब 3 साल के थे, तब अपने पिता की हार्नेस की दुकानों में औजारों से खेल रहे थे. इस दौरान ही एक औज़ार फिसल कर उनकी दाहिनी आंख में जा लगा और उन्‍होंने अपनी आंखें खो दीं. हालांकि, इसके बाद भी उनके जज्‍़बे में कोई कमी नहीं आई और वह आगे चलकर एक मशहूर संगीतकार बने.

उन्‍हें छात्रवृत्ति पर नेत्रहीन बच्‍चों के लिए राष्‍ट्रीय संस्‍थान में दाखिला मिला. 1819 में उन्‍होंने पेरिस में जाकर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ब्‍लाइंड चिलड्रेन में एडमिशन लिया और सन् 1826 से यहीं शिक्षक भी बन गए.

कैसे तैयार की लिखने की नई पद्यति?
स्‍कूल में वह चार्ल्स बारबियर द्वारा प्रदर्शित लेखन की एक प्रणाली से प्रभावित हो गए. इस तरीके में एक कार्डबोर्ड पर एक फोनेटिक साउंड संदेश को डॉट्स के माध्‍यम से उकेरा गया था. जब वे 15 वर्ष के हुए, तब उन्होंने दृष्टिहीनों की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए इसी तरीके को और बेहतर करने पर कार्य किया.

बाद में उन्होंने एक पूरी प्रणाली को विकसित लिया, जिसमें विभिन्न संयोजनों में 6-डॉट कोड होते हैं, और इन्‍हें म्‍यूजिकल नोटेशन के तहत ढाला. उन्होंने 1829 में अपने टाइप सिस्टम पर एक किताब प्रकाशित की और 1837 में उन्होंने एक लोकप्रिय हिस्‍ट्री स्कूलबुक का तीन-वॉल्‍यूम ब्रेल संस्करण प्रकाशित किया.

अपने जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान ब्रेल तपेदिक (टीबी) से बीमार हो गए. उनकी मृत्यु के एक सदी बाद, ब्रेल के अवशेषों को (उनके हाथों को छोड़कर, जो उनके जन्मस्थान कूपव्रे में रखे गए थे) पैंथियन में दफनाने के लिए पेरिस ले जाया गया.


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