
कठिनाइयां लेती हैं हमारे हौसले की परीक्षा…पिता दिव्यांग, मां दूसरों के घर में धोती थी बर्तन, बेटी ने अर्जुन अवार्ड पाकर नाम रौशन कर दिया
हाल ही में खेल मंत्रालय की तरफ़ से 27 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इनमें एक नाम भारतीय महिला खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका काले का भी रहा. सारिका की यह उपलब्धि इसलिए भी खास है, क्योंकि वो एक ऐसे परिवार से आती हैं, जहां से भारतीय महिला खो-खो टीम की पूर्व कप्तान तक का सफ़र आसान नहीं होता. सारिका के पिता दिव्यांग हैं. उनकी मां ने दूसरों के घर में बर्तन धुलकर उन्हें बड़ा किया.
27 साल की सारिका काले महाराष्ट्र से आती हैं. उनके पिता दिव्यांग थे, इसलिए घर का पूरा भार दादा-दादी की कमाई पर निर्भर था. परिवार की मदद के लिए उनकी मां ने घर पर सिलाई का काम शुरू कर दिया. इससे भी काम नहीं चला तो उन्होंने दूसरों के घर में बर्तन धोना शुरू कर दिया. सारिका 13 साल की थी, जब पहली बार वो अपने एक रिश्तेदार के साथ मैदान में गईं और फिर प्रेरित होकर खो-खो खेलना शुरू कर दिया.
आगे मेहनत रंग लाई और वह सफलती की सीढ़ियां चढ़ती गईं. खेल के प्रति सारिका के जूनून को देखकर परिवार ने उनका पूरा सपोर्ट किया. आर्थिक समस्याओं से जूझने के बावजूद उन्होंने सारिका के लिए वो सबकुछ किया, जो वो कर सकते थे. 2016 में सारिका ने भारतीय टीम को 12वें दक्षिण एशियाई गेम्स में गोल्ड दिलाकर अपने परिवार का नाम रौशन कर दिया. वर्तमान में वो ओसमानाबाद जिला के तुल्जापुर में खेल अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं.
हाल ही में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. बता दें, खेल दिवस पर 22 साल बाद खो-खो के किसी खिलाड़ी को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. सारिका काले के कोच चंद्रजित जाधव के मुताबिक 2016 में आर्थिक परेशानी के कारण सारिका ने खेल छोड़ने का मन बना लिया था. हालांकि, परिवार के दखल के बाद वो दोबारा मैदान पर आई और 2016 में एशियाई खो खो चैंपियनशिप की प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बनी थीं.