स्वावलंबन…गांव की महिलाएं लेमन ग्रास की खेती कर ना केवल आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही है.

झारखंड में इन दिनों गांवों की तस्वीर बदल रही है. नशामुक्त गांव से लेकर स्वच्छ और स्वावलंबी गांव ने बदहाल गांव की सोच को पूरी तरह से बदल दिया है. कल तक बदहाल गांव के नाम से बदनाम गांव आज बदलाव की राह पर आगे बढ़ चले हैं. राजधानी रांची से 30 किमी दूर खूंटी जिले का गुनी गांव उन्हीं में से एक है.

खूंटी जिले का गुनी गांव, नाम के अनुरुप यह गांव हर गुण से संपन्न है. गांव में प्रवेश करते ही आपको यहां की स्वच्छता मनमोह लेगी. इस गांव में गंदगी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी. गांव में हरियाली रहे इसके लिए 108 पौधे लगाये गये हैं. एक घर को एक पौधे की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी गई है.

गांव के प्रधान सहदेव मुंडा बताते हैं कि आदिवासी बहुल इस गुनी गांव की पहचान कभी शराब के नशे में डूबे गांव के तौर पर होती थी. लेकिन 70 परिवारवाले इस गांव में आज शराब पीने और पिलाने से लेकर बनाने तक पर आर्थिक दंड का प्रावधान है. ग्राम सभा इसको लेकर काफी सजग है और खुद ग्राम प्रधान ने इस बदलाव का आगाज खुद को बदलने के साथ किया है.

रोजगार और स्वाबलंबन की बात करें, तो महज 6 माह में ये बदलाव हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रहा है. 12 से 14 एकड़ बंजर जमीन पर लेमन ग्रास की खेती से गांव की महिलाओं के चेहरे खिल उठे हैं. 6 महिला समूह से जुड़ी 76 महिलाओं ने 96 हजार की लागत से भविष्य के रोजगार का बीजारोपण किया है. महिलाओं का कहना है कि जिसका लेमन ग्रास का नाम पहले सुना तक नहीं था, आज उसी के सहारे गुनी गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल रही है.

गुनी गांव के इस बदलाव के पीछे लोकप्रेरक दीदी संतोषी और सीमा का हाथ है. दोनों दीदी गुमला जिले के सिसई गांव की रहने वाली हैं, लेकिन अपनी कोशिश से खूंटी के गुनी गांव की तकदीर बदल दी है.


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