साल आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन हर साल की एक कहानी होती है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर सकती है…दृष्टिबाधित बेटियां दे रहीं दूसरों को जीवनदान, स्पर्श की शक्ति के जरिए बचा रहीं जान

गोपी साहू : साल आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन हर साल की एक कहानी होती है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर सकती है। ऐसी ही कुछ कहानियां भारत की महिला शक्ति ने रची है। देश की महिलाएं कई क्षेत्रों में अपना बेहतर योगदान दे रही हैं। हर महिला का अपना संघर्ष और कुछ चुनौतियां होती हैं। इन चुनौतियों और संघर्षों को पार कर जब वह सफलता की सीढ़ी चढ़ती है तो वह सफलता सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि कई अन्य महिलाओं की भी बन जाती है।

ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी नूरोनिशा और आयशा बानो की है। इन दोनों बेटियों ने स्पर्श करने की शक्ति को ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती चरण को जांचने के लिए उपयोग में लाया। दरअसल, नूरोनिशा और आयशा बानो दोनों ही जन्म से देख नहीं सकती हैं।

हालांकि अपनी शारीरिक कमी को उन्होंने जीवन के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया और दोनों युवा महिलाएं डिस्कवरिंग हैंड्स के जरिए एनएबल इंडिया द्वारा प्रशिक्षित मेडिकल टैक्टाइल परीक्षक (एमटीई) के तौर पर कार्यरत हैं। इस कार्यक्रम की शुरुआत जर्मनी में डॉ. फ्रैंक हाॅफमैन ने की थी, जिसमें नेत्रहीन व दृष्टिबाधित महिलाओं में स्तन कैंसर ट्यूमर के शुरुआती  लक्षणों का पता लगाया जाता है।

इस पद्धति के माध्यम से एमटीई विशेष स्पर्श कौशल का उपयोग करके प्रारंभिक चरण में स्तन कैंसर/ ट्यूमर का पता लगा सकते हैं। एनएबल इंडिया से नूर और आयशा बेंगलुरु में साइटकेयर कैंसर अस्पताल में एमटीई के रूप में काम करती हैं। इसके अलावा पांच महिलाओं को दूसरा बैच मौजूदा समय में बेंगलुरु के साइटकेयर और अपोलो अस्पताल में इंटर्नशिप कर रहा है।


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