जय जवान,जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जबर्दस्त कार्यक्षमता,सत्यनिष्ठा,और विनम्र स्वभाव के लिए याद किया जाता है

आज ही के दिन 1966 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था। देश के लिए कई दशकों तक पूरे समर्पण भाव से काम करने वाले शास्त्री जी को उनकी जबर्दस्त कार्यक्षमता, सत्यनिष्ठा, और विनम्र स्वभाव के लिए याद किया जाता है।

लाल बहादुर शास्त्री ने मुगलसराय स्थित ईस्ट सेंट्रल रेलवे इंटर कॉलेज और वाराणसी के हरीश चंद्र हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। 1926 में उन्होंने काशी विद्यापीठ से अपना ग्रैजुएशन पूरा किया था। ‘शास्त्री’ का मतलब विद्वान होता है, उनके नाम के साथ ये शब्द शास्त्री नामक स्नातक उपाधि हासिल करने के बाद जुड़ा और फिर जीवन पर्यन्त उनके नाम के साथ जुड़ा रहा।

शास्त्री जी महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक से प्रेरित थे। 1920 में, वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

1930 में, उन्होंने गांधी जी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया और दो साल से अधिक समय तक जेल में रहे। 1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के बाद उन्हें 1946 तक जेल में रहना पड़ा। आजादी की लड़ाई के लिए शास्त्री जी नौ साल जेल में रहे।

पंडित जवाहर लाल नेहरू के अचानक निधन के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चलाया, जिसे ‘श्वेत क्रांति’ के रूप में जाना जाता है। साथ ही उनके कार्यकाल में हुई ‘हरित क्रांति’ के जरिए देश में अन्न का उत्पादन बढ़ा।शास्त्री ने ही ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। वो करीब 18 महीने तक प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में ही भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी।

लाल बहादुर शास्त्री की मौत की गुत्थी अभी भी नहीं सुलझी है। 1965 में पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम के बाद लाल बहादुर शास्त्री सोवियत संघ का हिस्सा रहे उज्बेकिस्तान के ताशकंद गए थे, जहां उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करना था। 10 जनवरी 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ और इस समझौते के महज 12 घंटे बाद ही 11 जनवरी को तड़के 1 बजकर 32 मिनट पर उनकी मौत हो गई।

शास्त्री जी की मौत के बाद उनके रिश्तेदारों और उनके जानने वालों ने षड्यंत्र की आशंका जताई थी। कहा जाता है कि शास्त्री जी मौत से आधे घंटे पहले तक बिल्कुल ठीक थे, लेकिन 15 से 20 मिनट में उनकी तबियत खराब हो गई। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के चंद मिनट बाद ही उनकी मौत हो गई।

शास्त्री जी की मौत को साजिश इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि उनका पोस्टमॉर्टम भी नहीं किया गया था। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा किया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। उनके बेटे सुनील का भी कहना था कि जब शास्त्री जी का शव उन्हें मिला तो उनका पूरा शरीर नीला पड़ चुका था।

जब शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद एयरपोर्ट पर ले जाया जा रहा था तो रास्ते में सोवियत संघ, भारत और पाकिस्तान के झंडे झुके हुए थे। शास्त्री के ताबूत को कंधा देने वालों में सोवियत प्रधानमंत्री अलेक्सी कोसिगिन और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी थे।”


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