शिक्षा के लिए सराहनीय पहल…गरीब बच्चों को आठ दशक से दे रहे हैं मुफ्त शिक्षा का दान…एक परिवार तीन पीढ़ियों से इस नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है

शिक्षा मनुष्य को सभ्यता की ओर ले जाती है और व्यक्तित्व का निर्माण करती है। ऐसे में शिक्षितों का धर्म है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षा दिलाने में सहयोग करें, एक सुसक्षित समाज का निर्माण करें। अपने ज्ञान का लाभ सभी को दें। समाज में ऐसे उदाहरण कम नहीं हैं जो शिक्षा के सारथी बने हुए हैं। कोई परिवार दर परिवार यह धर्म निभा रहा है तो कहीं गांव का गांव इंजीनियरों की पाठशाला बन जा रहा है। मिलिए ऐसे शिक्षा के सारथियों से।

समाज के हर वर्ग को शिक्षा पाने का अधिकार है। ऐसे में साधन संपन्न लोगों की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि धन के अभाव में कोई भी व्यक्ति शिक्षा से वंचित न रहे। यह मूलभूत अधिकार हर किसी को मिले। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद का एक परिवार तीन पीढ़ियों से इस नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है।

होशंगाबाद जिला मुख्यालय से सात किमी दूर ग्राम निमसाड़िया के एक स्कूल में गरीब बच्चों को 1939 से नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है। इस स्कूल का शुभारंभ होशंगाबाद के सेठ घासीराम डालचंद शर्मा ने किया था। उनके निधन के बाद सुशिक्षित समाज के निर्माण की जिम्मेदारी उनके बेटे पं. रामलाल शर्मा ने संभाली। पिता ने स्कूल खोला था, बेटे ने एक कदम बढ़कर होशंगाबाद में 1954 में शासकीय नर्मदा महाविद्यालय की स्थापना की। वर्तमान में स्कूल का संचालन शर्मा परिवार कर रहा है जबकि महाविद्यालय शासन के अधीन संचालित है।

एक करोड़ की लागत से कराया पुनर्निर्माण: घासीराम डालचंद शर्मा ने मझले पौत्र पं. भवानीशंकर शर्मा बताते हैं कि उन्हें 32 एकड़ पुश्तैनी जमीन मिली है। यह जमीन हर साल 6 से 7 लाख रुपये में बंटाई पर चली जाती है। बंटाई से मिले पैसों से स्कूल का संचालन हो रहा है। दो साल पूर्व ही एक करोड़ रुपये की लागत से स्कूल भवन का पुनर्निर्माण कराया है। आधुनिक भवन में कुल 15 कक्ष हैं। सभी कक्षों में फर्श, दीवार तथा शौचालयों में टाइल्स लगे हैं। इसके अलावा सुंदर बगीचा और खेल परिसर भी है। निमसाड़िया में ज्यादातर कीर, मछुआ और पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं। आजादी के पूर्व से गरीबों को शिक्षा प्रदान करने वाला जिले का यह एकमात्र निजी स्कूल है।

अब तक 8 हजार बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा: प्रधान पाठक नीतू चौरे बताते हैं कि 2017 तक यह प्राथमिक शाला थी। 2018 में माध्यमिक स्तर की मान्यता मिली। वर्तमान में नर्सरी से लेकर कक्षा 7 वीं तक 171 बालक-बालिकाएं पढ़ते हैं। बच्चों को गणवेश और किताबें भी मुफ्त में दी जाती हैं। स्कूल के संचालन में हर माह 50 से 60 हजार रुपए खर्च किए जाते हैं। अब तक स्कूल में करीब आठ हजार बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जा चुकी है


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