समर्पण कर देती है वह अपना सारा जीवन…राजकुमारी जायसवाल की कविता

समर्पण कर देती है वह अपना सारा जीवन,
भले ही बनना पड़े उसे कभी मां, बेटी,तो कभी बहन।

एक पल में छोड़ आती है वह बाबुल का अंगना,
भले ही पड़ता है उसे मां-बाप और भाई-बहन से दूर रहना।

खनकाती है वह पिया का अंगना,
भले ही पहनना पड़े उसे पायल, चूड़ी और गहना।

उठा लेती है वह सबको खुश रखने की जिम्मेदारी,
भले ही पड़े उसे अकेले में आंसू छुपा कर रोना।

बांट देती है वह अपने हिस्से की भी रोटी,
भले ही पड़े है उसे भूखे पेट सोना।

देती है वह सृष्टि को एक नया उपवन,
भले ही पड़ता है उसे सौ दर्द सहना।

कुर्बान कर देती है अपना बचपना और यौवन,
क्योंकि उससे ही तो है संसार में जीवन,
उससे ही तो है संसार में जीवन।

दुनिया के समस्त नारी को “राजकुमारी” करती है सौ-सौ बार नमन,
कोटिश अभिनंदन 🙏🙏

🖊️ राजकुमारी जायसवाल 🖊️
डीएवी भटगांव,(छ.ग.)


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