अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की चौकसी कर रहे लाखों जवानों तक पीने का स्वच्छ पानी की दिक्कत…

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देश की विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की चौकसी कर रहे लाखों जवानों तक पीने का स्वच्छ पानी नहीं पहुंच पा रहा है। ‘बॉर्डर आउट पोस्ट’ पर जवानों को पेयजल की दिक्कत है, इस मामले में गृह मंत्रालय के मामलों के लिए गठित संसद की स्थायी समिति (डिपार्टमेंट-रिलेटेड पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑफ होम अफेयर्स) ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह जानकर बहुत पीड़ा हुई है कि बीएसएफ की 16 फीसदी, आईटीबीपी की 82 फीसदी, एसएसबी की 87 फीसदी और असम राइफल की 43 फीसदी ‘बॉर्डर आउट पोस्ट’ पर अभी तक साफ व सुरक्षित पेयजल नहीं मुहैया कराया जा सका है।

बॉर्डर पर इस तरह की सुविधाएं प्रदान करने के लिए गठित एम्पावर्ड कमेटी ऑन बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर (ईसीबीआई) की अध्यक्षता खुद कैबिनेट सचिव ने की थी। इतना कुछ हो गया, मगर जवानों के लिए स्वच्छ पेयजल का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है।

नहीं पहुंच सका पेयजल, कमेटी की सिफारिश
दिसंबर 2019 में राज्यसभा में पेश की गई डिपार्टमेंट-रिलेटेड पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑफ होम अफेयर्स की रिपोर्ट के अनुसार,बॉर्डर की रक्षा करने वाले जवान, खासतौर पर वे जो कि रिमोट एरिया में तैनात हैं, उन्हें स्वच्छ पेयजल मिले,यह मामला प्राथमिकता से हल होना चाहिए।यदि कोई जवान सीमा पर लंबे समय से दूषित पानी पी रहा है,तो वह उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। कमेटी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को दी अपनी सिफारिशों में कहा,वह सभी सुरक्षा बलों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना सुनिश्चित करे।इसके साथ ही यह भी कहा गया कि सभी बीओपी पर पानी पहुंचा है या नहीं, इसकी जांच के लिए मंत्रालय को एक तंत्र विकसित करना चाहिए।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिया ये जवाब
19 मार्च 2018 को एम्पावर्ड कमेटी ऑन बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर (ईसीबीआई) की बैठक, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन कैबिनेट सचिव ने की थी, उसमें यह निर्णय लिया गया है कि जिन बीओपी पर पीने का पानी अभी तक नहीं पहुंचा है, वहां तुरंत एक्शन लिया जाए।हालांकि अभी तक इन बीओपी के निकट पेयजल का कोई न कोई प्राकृतिक स्रोत है। कई जगहों पर स्वच्छ पेयजल के लिए आरओ सिस्टम लगाया गया है। इसके अलावा यह मामला मिनिस्ट्री ऑफ ड्रिंकिंग वाटर एंड सैनिटेशन (एमओडीडब्लूएंडएस) के समक्ष उठाया गया है।

मालूम हुआ कि ये बीओपी जल मंत्रालय की स्कीम जैसे नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (एनआरडीडब्लूओ) के तहत कवर नहीं होती। इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान करना होगा। गृह मंत्रालय ने कहा, बीओपी की औचक जांच के लिए वे तंत्र विकसित कर रहे हैं।

प्राकृतिक जल स्रोत से लेना पड़ता है पानी
बॉर्डर पर पेयजल के स्रोत अलग-अलग हैं। मैदानी हिस्से पर दूर से भी पानी लाया जा सकता है, लेकिन 14 हजार फुट की ऊंचाई वाले बॉर्डर की परिस्थितियां अलग हैं। जैसे लद्दाख में पीने के पानी का स्रोत बर्फ है।आईटीबीपी प्रवक्ता विवेक पांडे बताते हैं कि वहां तो ग्लेशियर ही पानी का मुख्य स्रोत है। उसे उबाल कर पिघलाया जाता है। उसके बाद छानकर वह पानी पीते हैं। कई गांवों के लोग भी यही करते हैं।

हमारा प्रयास है कि जवानों को जल्द से जल्द साफ पानी मिले। इस योजना पर काम चल रहा है। इसी तरह भारत-नेपाल बॉर्डर और भूटान बॉर्डर पर कई हिस्से हैं जहां पेयजल संकट है।वहां भी जवानों को साफ पेयजल नहीं मिल रहा। जुगाड़ से ही काम चलाया जाता है। असम राइफल और बीएसएफ की कई बीओपी पर भी प्राकृतिक संसाधनों की मदद ली जा रही है।

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