पुण्यतिथि पर विशेष…महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन और भारत के रिश्ते…सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत ने पूरी दुनिया मे नाम अमर कर दिया….

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कमलेश यादव:-पुरानी कहावत है ज्ञान सीमाओं से भी परे है यह सिद्ध किया महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने।समूचे मानव जाति के विकास के लिए उन्होंने कई शोध किये जो इतिहास में दर्ज हो गया है।अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म, 14 मार्च 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था।बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण विज्ञान रोचक विषय रहा है।विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही अल्बर्ट आइंस्टीन सामान्य विज्ञान के अच्छे-ख़ासे ज्ञाता बन गए थे।18 अप्रैल 1955 के दिन उन्होंने प्रिन्स्टन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।

महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक
अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे.1924 में उन्होने भारत के भौतिकशास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस के सहयोग से ‘बोस-आइंस्टीन कन्डेन्सेशन’ नाम की पदार्थ की एक ऐसी अवस्था होने की भी भविष्यवाणी की थी, जो परमशून्य (– 273.15 डिग्री सेल्सियस) तापमान के निकट देखी जा सकती है. यह भविष्यवाणी, जो मूलतः सत्येन्द्रनाथ बोस के दिमाग़ की उपज थी और उन्होंने उसके बार में अपना एक पत्र आइंस्टीन को भेजा था, 1955 में पहली बार एक प्रयोगशाला में सही सिद्ध की जा सकी. उसके बारे में 1905 मे लिखे लेख की पांडुलिपि बेल्जियम के लाइडन विश्वविद्यालय में मिली है

1905 : एक साथ कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष
अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. 1905 एक साथ उनकी कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष था. उसी वर्ष उनके सर्वप्रसिद्ध सूत्र E= mc² ऊर्जा= द्रव्यमान X प्रकाशगति घाते2) का जन्म हुआ था. ‘सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों’ संबंधी उनकी खोज के लिए उन्हें 1921 का नोबेल पुरस्कार मिला. 17 मार्च 1905 को प्रकाशित यह खोज अल्बर्ट आइंस्टीन ने स्विट्ज़रलैंड की राजधानी बेर्न के पेटेंट कार्यालय में एक प्रौद्योगिक-सहायक के तौर पर 1905 में ही की थी।15 जनवरी 1906 को उन्हें ड़ॉक्टर की उपाधि मिल भी गयी

सापेक्षता सिद्धांत
अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी). उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है. आइंस्टीन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की ‘निरपेक्ष गति’ या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके. गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है. 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ कहा जाने लगा.

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