व्यंग्य डायरी का पन्ना….अफवाह फैलाना जहर फैलाना है…संयमित आचरण एवं रचनात्मक जीवन दृष्टि आवश्यक है

कमलेश यादव:आधुनिक और आगे बढ़ने की होड़ में विषयो की प्रमाणिकता घटते जा रही है।सामाजिक व्यवस्था को बदलने वाली ढ़ेरो कहानियां हम रोज पढ़ते है आज की सुर्खियां कल भुला दी जाती है,जबकि उनमें बहुत कुछ स्थाई महत्व का होता है हालांकि बहुत सारी अफवाहो का सामना हम रोजमर्रा के जीवन मे करते है।अफवाह का विज्ञापन बाजार तगड़ा है जिसकी बुनियाद काफी मजबूत हो गया है लेकिन कालांतर में जाकर सत्य की पुष्टि जरूर होती है।एक पुरानी कहावत है अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।

समाज का कोई भी वर्ग अफवाह फैलाने वालों से मुक्त नही है।यह बीमारी ऊंचे से ऊंचे स्तरों के होटलों,छोटी सी छोटी चाय की दुकानों और हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी विभिन्न कार्यो में सम्मिलित है।इस सामाजिक बीमारी का शिकार हम सब किसी न किसी समय हो सकते है।इसलिए इससे बचने के लिए यह जरूरी है कि किसी भी अफवाह का जड़ क्या है वह समझे।यह बुरी आदत न केवल उसको ही नुकसान पहुंचाती है जिसके बारे में अफवाह उड़ाई जाती है बल्कि उसको भी उतना ही नुकसान पहुंचाती है जो झूठी खबरे बिना जांचे परखे फैला देता है।

असल मे यह आदत एक जहरीला नशा सा होता है जो हमारे अंदर निहित नैतिक ईमानदारी शक्ति व मूल्यों को नष्ट कर देता है।एक समय आता है जब ऐसे व्यक्तियों पर लोग यकीन करना छोड़ देते है।और उनकी बात का कोई मूल्य नही रह जाता ।बदनाम करने वाला भी इस तरह स्वयं बदनाम हो जाता है।।।।।

एक बात गौर करने वाली है हमारा समाज ऐसे लोगो को महत्व देता है जो धन से सम्पन्न है उनकी हर बात अच्छी और सच्ची लगती है क्योंकि वह न जाने कौन सी अफवाह के बाजार को भुना कर आपको अपना शिकार बनाया है।बदलते वक्त के साथ सोशल मीडिया ने भी हमारे जीवन को प्रभावित किया है।अब सवाल उठता है इन सबसे बचा कैसे जाए इसके लिए स्वयं की विवेक लगाने की जरूरत है। ईश्वर ने दो आंखे और प्यारा स दिल सभी को दिया है जिसके तराजू में तौलकर झूठ से बचा जा सकता है।


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